13 अप्रैल को बैसाखी
का पर्व होता है.लेकिन भारत की आजादी की लड़ाई में यह ऐसी तारीख है,जिसे अंग्रेज हुक्मरानों ने सर्वाधिक खूनी तारीख में तब्दील
कर दिया था. 13 अप्रैल 1919 को क्रूर हत्यारे
डायर ने वह हत्याकांड रचा,जिसे इतिहास में जलियांवाला बाग़ काण्ड के नाम से जाना
जाता है.डायर ने 15 मिनट में निहत्थी भीड़ पर 1650 राउंड गोलियां चलवाई,जिसमे सैकड़ों लोग मारे गये और हजारों जख्मी हुए.डायर को अपने किये पर कभी
पछतावा नही हुआ.बल्कि उसने हंटर कमिशन के सामने कहा कि “मैंने कोई चेतावनी नहीं दी,सीधे गोली
चलवाई.शहर में मार्शल लॉ लगा था.मुझे लगा कि मेरे आदेशों का उल्लंघन हुआ है.अगर
मेरे आदेशों का अनुपालन नहीं होगा तो मैं तुरंत ही गोली चलाउंगा.” उसने कहा कि “यह मुमकिन था कि
मैं भीड़ को बिना गोली चलाये भी हटा सकता था.लेकिन ऐसे में वे फिर इकठ्ठा होते और
मुझ पर हँसते.ऐसे में मैंने समझा कि मैं अपने को मूर्ख सिद्ध करता.घायलों को
अस्पताल क्यूँ नहीं पहुँचाया गया,इस सवाल के जवाब
में डायर ने कहा कि ये उसका काम नहीं था.
ब्रिटिश सरकार ने
1919 में जलियाँवाला बाग कांड की जांच करने के लिए लॉर्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता
में एक आयोग बनाया. उसी साल 19 नवम्बर को डायर इस आयोग के सामने पेश हुआ. हंटर कमिशन
ने डायर के खिलाफ किसी दंडात्मक कार्यवाही की संस्तुति नहीं क्यूंकि तमाम वरिष्ठ अफसर
उसकी कार्यवाही के समर्थन में थे और एक साम्राज्यवादी मुल्क की राजनीतिक और कानूनी
मजबूरियाँ तो थी ही.
हंटर कमीशन के सामने दिए डायर के जवाब उसकी क्रूरता को पूरी
तरह सामने लाते हैं.इससे पूर्व रौलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने
वालों पर 10 अप्रैल को भी अमृतसर में गोली चलाई गयी थी,जिसमे बीस से अधिक लोग मारे गये थे.गांधी जी के पंजाब में
प्रवेश पर रोक लगा दी गयी थी.अमृतसर के दो स्वतंत्रता सेनानियों डा.सत्यपाल और
सैफुद्दीन किचलू को अमृतसर से गिरफ्तार करके धर्मशाला भेज दिया गया था.इन सब बातों
और अंग्रेजों के बेइंतहा उत्पीडन के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिवाद के लिए ही लोग
जलियांवाला बाग़ में इकठ्ठा हुए थे.
डायर 1927 में मर गया और
उक्त हत्याकांडों में उसके सहभागी,समर्थक रहे पंजाब
के तत्कालीन गवर्नर जनरल माइकल ओ’ डायर को उधम सिंह
(जिन्होंने अपना नाम- राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था) ने 1940 में लंदन में मार गिराया. माइकल ओ’ डायर ने डायर के इस क्रूर
हत्यारे कृत्य को सही कार्यवाही बताया था.
डायर को जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद हटाने के बावजूद ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने डायर का रास्ता कभी नहीं छोड़ा. जनता की वाजिब मांगों के निपटने
के तौर-तरीकों का इतिहास और वर्तमान देखा जाये ऐसा लगता है कि फैसला लेते समय, आजाद भारत के हुक्मरानों के सिर पर भी डायर का प्रेत हमेशा ही मंडराता रहा है.आजादी के बाद से आज तक देश
के विभिन्न हिस्सों में शांतिपूर्ण आन्दोलनों पर दमन के किस्से
इस बात की तस्दीक करते हैं.
1919 में घटित जालियाँवाला
बाग कांड की यह 101 वर्षगांठ है. जालियाँवाला
बाग भी इस बात का उदाहरण है कि देश की आजादी के लिए सभी धर्मावलम्बियों ने मिल कर लड़ाई
लड़ी और साथ ही सीने पर गोली खाई.हम उस साझी शहादत की विरासत के वारिस हैं और इसलिए
धार्मिक आधार पर देश को बांटने की हर कोशिश को ध्वस्त करना,उन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
देश की आज़ादी और क़ौमी एकता के लिए क़ुर्बान हुए शहीदों को
इंक़लाबी सलाम.
v
इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
बेहतरीन लेख।
ReplyDelete