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यह देश मरीजों के लिए नहीं डॉक्टरों के लिए चर्चा में है !


इस समय जब दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देशों की चर्चा कोरोना वाइरस के चलते फैली महामारी के लिए हो रही है,तब दुनिया में एक देश ऐसा भी है,जिसकी चर्चा डॉक्टरों के लिए हो रही है. यह कोई विश्व शक्ति नहीं है,ना आर्थिक रूप से न सामरिक रूप से ! पर जब दुनिया की आर्थिक एवं सामरिक शक्तियाँ कोरोना के हमले के सामने असहाय नज़र आ रही हैं,तब यही देश है,जो दुनिया भर में उपचार का अगुवा बना हुआ है.




उत्तर कैरेबिया में स्थित एक करोड़ से थोड़ा अधिक आबादी वाला यह देश है-क्यूबा.दुनिया भर में कोरोना के हाहाकार के बीच क्यूबा ने 14 देशों में अपने 593 स्वास्थ्य कार्यकर्ता भेजे हैं. इनमें कोरोना की मार से सर्वाधिक प्रभावित इटली भी शामिल है. आर्थिक संपन्नता के मामले में इटली के सामने क्यूबा कहीं नहीं ठहरता. लेकिन कोरोना के सामने सारी आर्थिक ताकत धरी रह गयी. क्यूबा ने 21 मार्च को इटली के निवेदन पर कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र लोमबारडी में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का दल भेजा.

और यह पहली बार नहीं है कि क्यूबा अंतरराष्ट्रीय आपदाओं में अपने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के जरिये मदद पहुंचा रहा है. अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स में 03 अप्रैल को छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया के 67 देशों में क्यूबा के 37000 स्वास्थ्य कार्यकर्ता काम कर रहे हैं. अल जजीरा में 01 अप्रैल को छपी एक रिपोर्ट बताती है कि पैन अमेरिकन हैल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक 2005 से 2017 के बीच क्यूबा ने प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़,भूकंप,समुद्री तूफान और महामारियों से प्रभावित 21` देशों के 3.5 मिलियन लोगों को चिकित्सीय मदद पहुंचाई. यह अनुमान है कि बीते 50 सालों में क्यूबा ने मेडिकल सहायता के लिए लगभग चार लाख डाक्टरों को विभिन्न देशों में भेजा. यह सिलसिला 1960 में यानि क्यूबाई क्रांति के पहले साल में शुरू हो गया था. इस साल क्यूबा ने भूकंप से तबाह चिली में अपना चिकित्सा दल भेजा.1963 में क्यूबा ने अल्जीरिया में 56 डॉक्टरों का दल भेजा.

यह प्रश्न स्वाभाविक तौर पर उठता है कि आखिर वह क्या चीज है,जिसने इस छोटे से देश को,मेडिकल पावर हाउस में तब्दील कर दिया,जबकि उसके पड़ोस में स्थित शक्तिशाली अमेरिका ने उस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध थोपे हुए हैं ? आर्थिक प्रतिबंधों के अतिरिक्त अमेरिका भरसक प्रयास करता है कि क्यूबा के डाक्टरों की मदद लेने वाले देशों को ऐसा करने से रोके या हतोत्साहित करे. बीते कुछ सालों में ब्राज़ील,इक्वाडोर आदि देशों में अमेरिका अपने मंसूबों में कामयाब भी रहा है. लेकिन कोरोना की मार झेलती दुनिया का ध्यान एक बार फिर क्यूबा और उसके डॉक्टरों की तरफ गया है. क्यूबा पर तमाम तरह के प्रतिबंध थोपने वाले अमेरिका के अखबार भी तमाम तरह के किन्तु-परंतु के बीच दुनिया भर में क्यूबा के डॉक्टरों के काम का लोहा मान रहे हैं.

1959 में क्यूबा में फुलगेनसिओ बतिस्ता की तानाशाही हुकूमत के खिलाफ  फिदेल कास्त्रो की अगुवाई में क्रांति हुई और क्रांतिकारी कम्युनिस्ट सत्ता स्थापित हुई. तब से क्यूबा ने सामाजिक न्याय हासिल करने के लिए जो रास्ता चुना उसमें शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करने का लक्ष्य सर्वोपरि था. क्यूबाई क्रांति के नेताओं की यह दृढ़ मान्यता थी कि सफल समाज वही है,जिसमें सबको शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा हासिल है.  
चिकित्सा क्षेत्र को सरकार द्वारा प्राथमिकता बनाए जाने का ही नतीजा है कि क्यूबा में प्रति एक हजार की आबादी पर लगभग आठ डाक्टर हैं. यह औसत दुनिया में सर्वाधिक है. क्यूबा मेनिनजाईटिस बी जैसे रोगों के खिलाफ टीके विकसित कर चुका है.

2016 में दुनिया से रुखसत होने वाले क्यूबाई क्रांति और समाजवादी गणराज्य के रूप में क्यूबा की अगुवाई करने फिदेल कास्त्रो(13 अगस्त 1926-25 नवम्बर 2016) का एक पुराना भाषण सोशल मीडिया में कोरोना काल में पुनः वाइरल हो रहा है. उक्त भाषण में फिदेल कहते हैं, “हमारा देश दूसरे देशों के खिलाफ बम नहीं गिराता या फिर शहरों पर बम गिराने के लिए हजारों बम वर्षक विमान नहीं भेजता. हमारे देश के पास परमाणु या रासायनिक अथवा जैविक  हथियार नहीं हैं. हमारे देश के पास जो दसियों हजार वैज्ञानिक और डॉक्टर हैं,उन्हें जीवन की रक्षा करना सिखाया गया है. यह उस अवधारणा के पूरी तरह खिलाफ होगा कि कोई वैज्ञानिक या डाक्टर कोई ऐसा पदार्थ,बैक्टीरिया या वाइरस बनाए जो कि दूसरे मनुष्यों की जान ले ले. हमारे देश में हम इस बात का अन्वेषण करते हैं कि जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक से ईजाद टीकों से  मेनिनगोकोक्कल मेनिनजाईटिस और हैपेटाइटिस का उपचार कैसे करें. ...... दसियों हजार क्यूबाई डॉक्टरों ने अत्याधिक दूरस्थ और सुविधाहीन स्थलों पर   अंतरराष्ट्रीय सेवाएँ दी हैं. एक दिन मैंने कहा कि हम कभी भी दुनिया के किसी अंधेरे कोने पर आत्मरक्षा के नाम पर,अनायास आक्रमण नहीं करेंगे.बल्कि हमारा देश दुनिया में डॉक्टर भेजेगा,जिनकी जरूरत दुनिया के सर्वाधिक अंधेरे कोनों में भी होगी. बम नहीं डॉक्टर ! जो अचूक निशाना लगाए,वह स्मार्ट हथियार नहीं डॉक्टर !...”

मनुष्यता के लिए हथियारों के बजाय डाक्टरों पर ज़ोर देने वाला यह भाषण ही क्यूबा का मर्म है. यह मनुष्यता का भाव ही है,जो अमेरिका जैसी माहाशक्ति के तमाम आर्थिक प्रतिबंधों और छल प्रपंचों के बीच भी क्यूबा को मजबूती से खड़ा रखे हुए है. इस मनुष्यता के भाव के कारण ही क्यूबा ने कोरोना से संक्रमित होने के अंदेशे के बावजूद ब्रिटेन के समुद्री जहाज को अपने बन्दरगाह पर रुकने दिया,जिसमें 1000 के करीब यात्री और क्रू के सदस्य थे. इन सब को चार्टेड फ्लाइट से ब्रिटेन वापस भेजा गया. क्यूबा द्वारा इन्हें अपना बन्दरगाह इस्तेमाल करने की अनुमति देने से पहले ब्रिटेन के कई मित्र देश इस जहाज को अपने बन्दरगाह पर रुकने की अनुमति देने से इंकार कर चुके थे. न केवल क्यूबा की सरकार ने इन्हें अपने तट पर उतरने की अनुमति दी बल्कि क्यूबाई नागरिकों ने भी सोशल मीडिया पर जहाज पर मौजूद लोगों को स्वागत संदेश भेजे. जहाज के क्रू की एक सदस्य एंथिया गथरिए ने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा “उनकी सहहृदयता देख कर मेरी आँखों में आँसू आ गए.उन्होंने हम भार नहीं समझा बल्कि हमारा स्वागत किया.” क्रू के सदस्यों ने बैनर लहराया “ आई लव यू क्यूबा.”

दुनिया को हथियारों की होड़ के बजाय क्यूबा के जैसी प्रबल मानवता की भावना की जरूरत है.  निवेश हथियारों के बजाय चिकित्सा सेवाओं पर किया जाना ही फलदायी होगा,यह तो इस कोरोना काल में क्यूबा की भूमिका से स्वयंसिद्ध है.

इन्द्रेश मैखुरी

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