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सिर पर भारी-भरकम बोझा लादे, पंक्तिबद्ध चलते,ये नेपाली
नागरिक हैं. कई दिनों के इंतजार के बाद ये अपने देश नेपाल वापस लौट रहे हैं.
उत्तराखंड में पिथौरागढ़
जिला का कस्बा है-धारचुला. यह नगर नेपाल से लगा हुआ है. काली नदी के पुल के इस तरफ
धारचुला है और पुल पार दारचुला,नेपाल
में है. धारचुला और दारचुला भले ही दो अलग-अलग देशों में हों,लेकिन नातेदारी-रिश्तेदारी से लेकर काम-धंधे तक में आपसी व्यवहार खूब है.
यहाँ तक कि दोनों देशों की मुद्राएँ भी दोनों कस्बों में चल जाती है.
लेकिन कोरोना के प्रभाव
ने हाथ भर के फासले को सात समंदर पार की जैसी दूरी में तब्दील कर दिया.लॉकडाउन के चलते दोनों तरफ
से आवागमन सख्ती से बंद कर दिया गया.
नेपाली नागरिक तो बड़ी तादाद में भारत में मजदूरी और अन्य कामों के लिए आते
ही हैं. लॉकडाउन से पहले रिश्तेदारी,व्यापार आदि कारणों से भारत के लोग भी बड़ी तादाद में उस पार यानि नेपाल के
दारचुला गए हुए थे,जो लॉकडाउन के चलते वहीं फंस गए.
धारचुला के स्थानीय
निवासी और भाकपा(माले) की पिथौरागढ़ जिला कमेटी के सदस्य हरीश धामी बताते हैं कि
नेपाल सरकार ने अपने नागरिकों को वापस बुलाने के लिए निरंतर प्रयास किए. काठमाण्डू
स्थित भारतीय दूतावास से लेकर दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास से निरंतर नेपाल सरकार ने
अपने नागरिकों को वापस बुलाने के लिए संवाद चलाया.
इन कोशिशों का नतीजा यह
निकला कि आज धारचुला से नेपाली नागरिकों की वापसी हो गयी. नेपाली नागरिकों की
वापसी के लिए काली नदी का पुल खुलने की खबर पता चलने के बाद सैकड़ों की तादाद में
भारतीय नागरिक पुल के दूसरे छोर पर दारचुला में जमा हो गए. उन्हें आस थी कि पुल के
दरवाजे खुलेंगे तो वे भी दूसरे देश से अपने घर वापस लौट सकेंगे. लेकिन उनके संदर्भ
में कोई आदेश ही नहीं था. जिस शिद्दत से बीते 15 दिनों से नेपाल सरकार अपने
नागरिकों के लिए प्रयास कर रही थी,ऐसा प्रयास चलाने वाला उनके लिए कोई नहीं था. फलतः ये भारतीय नागरिक काली
नदी के पुल के गेट खुलने के बावजूद भारत में प्रवेश न कर सके.
लॉकडाउन अपनी जगह है पर लॉकडाउन के चलते हाथ भर
की दूरी पर दूसरे देश में फंसे अपने नागरिकों के प्रति यह बेरुखी, लॉकडाउन से अधिक हौसले पस्त करने वाली है.
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इन्द्रेश
मैखुरी
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