हजारों-हजार की तादाद में देश की सड़कों पर हजारों
किलोमीटर का पैदल सफर करने निकला मजदूर,बैलगाड़ी में बैल के साथ जुता मजदूर,ट्रक की चपेट में आ कर मरता मजदूर,ट्रेन की पटरी के
नीचे कटता मजदूर,घर पहुँचने के लिए साइकिल चुराने का
कबूलनामा और माफीनामा लिखता मजदूर,माँ-पत्नी को कांधे पर
उठाए मजदूर,पैरों में उठते फफोलों के साथ चलता,प्लास्टिक की बोतलों की चप्पल बनाए मजदूर ! ये दृश्य हैं,जो आजकल निरंतर दिखाई दे रहे हैं. थोड़ा सा भी संवेदनशील मनुष्य हो तो उसका
कलेजा बार-बार छलनी होता है,ऐसी सैकड़ों तस्वीरों को देख कर.
चित्रांकन: सुरेश लाल,रामनगर(उत्तराखंड)
इस दौर का गाहे-बगाहे दिया जाने वाला उपदेश है- सकारात्मक बनो.सकारात्मक
होना बहुत जरूरी है. तो भाई देखो,देश की सड़कों पर सकारात्मकता का
समंदर बहा चला जा रहा है. ये जो सड़कों पर चले जा रहे हैं मजदूर,इनसे अधिक सकारात्मक कौन है आखिर ? इन्होंने घर बनाए,कोठियाँ
खड़ी की,उद्योग-कारखाने चलाये,शहर तामीर
किए. और फिर एक दिन उन घरों,कोठियों,महलों
और शहरों में उनके लिए न रहने की जगह थी और खाने को भोजन. पर मजदूर सकारत्मक बने
रहे. वे अपने घरों को चल दिये. कोई गाड़ी-घोड़े का बंदोबस्त न था,बस-ट्रेन न थी तो वे पैदल ही चल दिये. बिना यह शिकायत किए कि विदेशों में
फंसे लोगों को हवाई जहाज में भारत लाने को वंदे भारत मिशन है तो भारत के बंदे घर
पहुँचें ऐसा कोई मिशन क्यूँ नहीं है ? सकारात्मकता की इंतहा
है,ये तो !
वे कटे जा रहे हैं,गिरे जा रहे हैं,मरे जा रहे हैं पर फिर भी चले जा रहे हैं. कोई सवाल नहीं पूछ रहे हैं.अपनी,अपने प्रियजनों की मौत को झेल कर भी कदम बढ़ाते चलना, वह भी ऐसी हालत में जब कि जिसे वे मंजिल समझ रहे हैं,पता नहीं उस मुकाम पर भी कुछ हासिल हो,न हो ! इससे अधिक सकारात्मकता और क्या होती है भला !
पर सकारात्मकता के उपदेशको,सत्ता के पायो, तुम्हारे पास इन सकारात्मक लोगों के
इस रेले को देने के लिए क्या है ? तुम कह रहे हो आत्मनिर्भर
बनो ! अपने और अपनों को ढोने के लिए बैल के साथ खुद को बैलगाड़ी में जोत दिया,इससे अधिक कितनी आत्मनिर्भरता की दरकार है तुमको ?ये
जो तुम्हारा “भारत निर्माण” है या “मेक इन इंडिया” है, इसमें
निर्माण यही सकारात्मक लोग करते हैं वरना बिना निर्माण का भारत भरभरा कर गिर
पड़ेगा. “मेक इन इंडिया” में ये “मेक” नहीं करेंगे तो नारा कितना ही बड़ा दे दो,जुमलों का कारोबार कितना ही चढ़ा लो पर इनके बिन “नथिंग इन इंडिया” ही हो
सकेगा !
चित्रांकन: सुरेश लाल,रामनगर(उत्तराखंड)
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😢😢😢
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