उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत
का पिछले दिनों दिया गया एक वक्तव्य चर्चा में है. इसकी चर्चा इसलिए है क्यूंकि
राज्य में कोरोना संक्रमितों की मुख्यमंत्री
द्वारा “प्रोजेक्टेड संख्या” यदि हकीकत में तब्दील हो गयी तो उत्तराखंड देश का एक बड़ा
कोरोना हॉटस्पॉट बन जाएगा. हिलमेल के ऑनलाइन कार्यक्रम- ई रैबार में मुख्यमंत्री
शामिल हुए. उक्त कार्यक्रम में एक सवाल का जवाब देते
हुए त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि “हम ये मान कर चलते हैं कि दो-सवा दो लाख लोग वापस
आएंगे गाँव की तरफ,इसमें निश्चित रूप से हम ये मान कर चलते हैं कि पच्चीस हजार लोग
इन्फैक्टेड होंगे,ये हम मान कर चल रहे हैं,हम ये मान कर चलते हैं कि इसमें से पाँच हजार लोगों को हॉस्पिटलाइज्ड करने
की आवश्यकता पड़ सकती है और हम ये मान कर चलते हैं कि उसमें से पाँच सौ लोगों को वेंटिलेटर की भी जरूरत पड़ सकती है.’’
मुख्यमंत्री का यह वक्तव्य डराने वाला है. एक करोड़ की
आबादी के प्रदेश में सवा दो लाख लोग वापस लौटेंगे और उनमें से पच्चीस हजार
संक्रमित होंगे,पाँच हजार अस्पताल में भर्ती करने पड़ेंगे और पाँच
सौ को वेंटिलेटर चाहिए होगा,यह कल्पना करके भी सिहरन होने
लगती है. और मुख्यमंत्री इतनी सहजता से बोल रहे हैं,जैसे यह
कोई हंसी-ठट्ठा हो ! उत्तराखंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या 70 से 75 होने पर
ही लोग सोशल मीडिया में बदहवासी में दिख रहे हैं कि संख्या निरंतर बढ़ रही है. प्रश्न यह भी है कि क्या
उत्तराखंड का स्वास्थ्य का ढांचा ऐसा है कि वह उस आसन्न खतरे से निपटने में सक्षम
है,जिसकी ओर मुख्यमंत्री इशारा कर रहे हैं.
सरकारी आंकड़े ही देखें तो तस्वीर नकारात्मक ही बनती है. उत्तराखंड सरकार के योजना विभाग और मानव विकास संस्थान,नयी दिल्ली द्वारा 2018 में प्रकाशित-उत्तराखंड मानव विकास
रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के अस्पतालों में डाक्टरों की भारी कमी है. रिपोर्ट
के अनुसार राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों के 55.78 प्रतिशत पद खाली
हैं. सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में शल्य चिकित्सक यानि सर्जन के 92.77 प्रतिशत पद रिक्त
हैं तो बाल रोग विशेषज्ञों के 82.50
पद रिक्त हैं. सामुदायिक स्वास्थ्य
केन्द्रों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 91 प्रतिशत पद रिक्त हैं.एक लाख की आबादी पर
मात्र 2.58 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं,जबकि एक लाख की आबादी पर डाक्टरों की
औसत संख्या 13.91 है. इस औसत संख्या का भी अलग से विश्लेषण किया जाये तो पता चलेगा
कि मैदानी क्षेत्रों में डाक्टरों की संख्या अधिक है और पर्वतीय क्षेत्रों में
बेहद कम.उत्तराखंड मेंपलायन के अध्ययन के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा पलायन एवं ग्राम्य
विकास आयोग बनाया गया.इस आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 8.83 प्रतिशत लोग
स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण पलायन करने को मजबूर हैं. 2018
के नेशनल हैल्थ अकाउंट के अनुसार
उत्तराखंड में सकल घरेलू राज्य उत्पाद का 0.9 प्रतिशत सार्वजनिक
खर्च ही चिकित्सा पर किया जाता है.
नीति आयोग द्वारा जून 2019 में विश्व बैंक और केन्द्रीय स्वास्थ्य
एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिल कर एक रिपोर्ट जारी की गयी,जिसका नाम है.
“हैल्दी स्टेट्स,प्रोग्रेसिव इंडिया”. नीति आयोग के इस
हैल्थ इंडेक्स में उत्तराखंड उन राज्यों में शामिल था जिन्हें “लीस्ट परफार्मिंग स्टेट”
यानि न्यूनतम प्रदर्शनकारी राज्य कहा गया. आयोग की रिपोर्ट में उत्तराखंड उन
राज्यों में शामिल है,जिन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में कोई
सुधार नहीं किया है. रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में उत्तराखंड स्वस्थ्य सूचकांक में
21 राज्यों में 15 वें नंबर पर था और 2017-18 में दो स्थान नीचे
17वें स्थान पर आ गया.
स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर स्थिति की बानगी तो ये सरकारी रिपोर्टें
पेश कर रही हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री जैसी आशंका प्रकट कर रहे हैं,सोचिए यदि वैसा हो जाये तो कैसा
भयावह दृश्य होगा ! लेकिन प्रश्न तो यह भी उठता है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री
त्रिवेंद्र सिंह रावत जिस भयवाह मंजर की कल्पना कर रहे हैं,उसका
आधार क्या है ? मुख्यमंत्री विडियो में कह रहे हैं- “हम ये
मान कर चलते हैं कि ..” पर इस मान कर चलने
का आधार क्या है,यह स्पष्ट नहीं है. क्या कोई ऐसा
अध्ययन है ?यदि है तो उस अध्ययन में इस नतीजे पर किस तरह
पहुंचा गया ? सवाल यह भी है कि क्या प्रवासियों को वापस लाने
की प्रक्रिया में उनका स्वास्थ्य परीक्षण ठीक से नहीं हो रहा है,जो मुख्यमंत्री इतनी बड़ी तादाद में संक्रमित लोगों के उत्तराखंड पहुँचने
की आशंका प्रकट कर रहे हैं ? आरोग्य सेतु ऐप को प्रवासियों को अनिवार्य रूप से डाउनलोड करने को
कहा जा रहा है और उसमें व्यक्ति के स्टेटस के आधार पर यात्रा की अनुमति मिल रही है. मुख्यमंत्री द्वारा इतनी बड़ी तादाद में संक्रमितों के उत्तराखंड पहुँचने
का अनुमान क्या परोक्ष तौर पर उस आरोग्य सेतु ऐप की विफलता का ऐलान नहीं है ?
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वैबसाइट के
अनुसार आज 14 मई 2020 को सुबह आठ बजे तक भारत में कुल संक्रमितों की संख्या 49219 है, ठीक होने वालों की संख्या 26234
है और 2549 की मृत्यु कोरोना से हो चुकी है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की बात पर
भरोसा करें तो आने वाले दिनों में कोरोना के आंकड़े में उत्तराखंड की भागीदारी देश
में अब तक ठीक हुए लोगों की संख्या के बराबर होगी !
कोरोना के प्रभाव के बढ़ने को लेकर एक आकलन अंग्रेजी न्यूज़ चैनल-
टाइम्स नाउ की वैबसाइट ने 12 मई को प्रकाशित किया है. इसके अनुसार 18 जून तक कोविड भारत में अपने चरम
पर होगा. इस आकलन में महाराष्ट्र,गुजरात,उत्तर प्रदेश में
संक्रमितों की संख्या के बढ़ने का अनुमान जाहिर किया गया है और अनुमानित संख्या भी
बताई गयी है. परंतु उत्तराखंड को लेकर ऐसा कोई आकलन नहीं
है. बड़ी बात कहना और बड़ी बात कहने की चाह रखना तो अच्छी बात है. परंतु
ऐसी बड़ी बात जिसका कोई आधार नहीं और जो सिर्फ भयभीत ही करे,किस काम की मुख्यमंत्री जी ? इससे अच्छा तो यह है कि राज्य के स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ करने पर ध्यान
दे,उत्तराखंड सरकार.संख्याओं के इस डरावने खयाली पुलाव के
बजाय यथार्थ के ठोस धरातल पर खड़े हो कर लोगों की बेहतरी की योजनाएँ क्रियान्वित
करने की कोशिश हो तो ही आम जन का भला होगा.
2 Comments
हवा हवाई हो रखी है ज़मीनी संवेदनशीलता नदारद है, सटीक विश्लेषण किया है कॉमरेड
ReplyDeleteत्रिवेन्द्र चचा सब मानकर ही चलते हैं अपने हिसाब से.....बाकी जमीनी हकीकत से फिलहाल उनका उतना ही वास्ता है जितना उन्होंने खुद भी कभी सोचा नहीं होगा
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