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आम जन को मनुष्य क्यूँ नहीं समझते, सरकार ?


नैनीताल जिले के बेतालघाट ब्लॉक में तल्ली सेठी स्थित क्वारंटीन सेंटर में साँप के डसने से चार साल की बच्ची की मौत हो गयी. इस क्वारंटीन सेंटर में लोगों को जमीन पर सोना पड़ रहा है.



क्वारंटीन सेंटर में मौत की घटना भले ही यह पहली हो,लेकिन क्वारंटीन सेंटरों की दुर्दशा की कथाएँ आए-दिन सामने आ रही हैं. देहारादून से लेकर सुदूर अस्कोट तक और ऋषिकेश से लेकर गैरसैंण तक क्वारंटीन सेंटरों की दुर्व्यवस्थाओं के चर्चे रोज-ब-रोज सामने आ रहे हैं.

देहारादून में महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स स्टेडियम में गंदे,पानी भरे वॉश रूम्स के विडियो सामने आए हैं. चादर तक बदलने की व्यवस्था न होने की बात सामने आई है.


 दो दिन पहले ऋषिकेश के एक क्वारंटीन सेंटर में खाने में कीड़े पाये गए. खाने के खराब होने की शिकायतें,कुछ दिन पूर्व गैरसैंण के क्वारंटीन सेंटर से भी आई थी. गैरसैंण पॉलीटेकनिक में बनाए गए क्वारंटीन सेंटर के बारे में कहा जा रहा है कि वहाँ ढाई सौ लोगों के लिए एक ही टॉइलेट है. बागेश्वर जिले के कपकोट में गंदी सी बाल्टी में क्वारंटीन किए लोगों को चाय बांटने की तस्वीर सोशल मीडिया में तैर रही है. 


पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट में उस आई.टी.आई के छात्रावास को क्वारंटीन सेंटर बना दिया गया जो कि बीस सालों से शौचालय न होने के कारण बंद था.

जिन स्कूलों को क्वारंटीन सेंटर बनाया जा रहा है,बीते वर्षों में उनकी ऐसी हालत हो गयी है कि वे अंतिम साँसे गिन रहे हैं और सरकारी अमला ताला लेकर तैयार खड़ा है कि कब इनमें छात्र-छात्राओं की संख्या कम हो और वो कब उन पर ताला लगाए ! 

स्कूल हो या पंचायत घर,वे आवासीय जगहें नहीं हैं,न वे ऐसे बनाए जाते हैं कि उनका रिहायशी उपयोग हो सके. लेकिन अब बाहर से लौटने वालों के झुंड के झुंडों को इनमें रखा जा रहा है. ये क्वारंटीन सेंटर कम और कैदखाने अधिक हैं. गांवों में क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था का जिम्मा ग्राम प्रधानों के हवाले कर दिया गया. सरकार द्वारा बिना एक धेला भी प्रधानों को दिये बगैर उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वे सब इंतजाम कर दें. यह  दरअसल प्रधानों के हाथ में व्यवस्था देना नहीं है बल्कि सरकार द्वारा व्यवस्था करने से हाथ खींचना है. 

तल्ली सेठी स्थित क्वारंटीन सेंटर में साँप के डसने से बच्ची की मौत के मामले में राजस्व उपनिरीक्षक,ग्राम विकास अधिकारी और एक शिक्षक पर मुकदमा दर्ज किया गया है. सवाल यह है कि क्या ये इतने शक्तिशाली हैं कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को किसी प्रकार प्रभावित कर सकें? यह फिर ज़िम्मेदारी छोटे कर्मचारियों पर थोपने की कोशिश है.



तल्ली सेठी का क्वारंटीन सेंटर अपवाद नहीं है.  लगभग पूरे प्रदेश में ऐसी दुर्दशा और दुर्व्यवस्था वाले क्वारंटीन सेंटर आम जन के प्रति सरकार और उसकी प्रशासनिक मशीनरी के नजरिए को दर्शाते हैं. सरकारी मशीनरी की नजर में आम लोगों की हैसियत भेड़-बकरियों से ज्यादा नहीं है. इसलिए भेड़-बकरियों की तरह वे अंधेरी,असुविधायुक्त जगहों पर गुठ्याये” जा रहे हैं. इसीलिए कीर्तिनगर में एस.डी.एम./संयुक्त मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात आई.ए.एस अफसर सीधे कह देता है कि “...ला फालतू बैठी है क्या गवर्नमेंट तुम लोगों के लिए ! ” सवाल यह है कि गवर्नमेंट अगर आम लोगों के लिए नहीं है तो फिर वह बैठी किसके लिए है ?शराब,जमीन और रेत-बजरी के तस्करों और माफियाओं के लिए या फिर अमनमणि त्रिपाठी और पुलकित आर्य जैसों की सेवा-सुश्रुषा के लिए है ?

-इन्द्रेश मैखुरी 


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