कल अखबारों में खबर थी कि उत्तराखंड सरकार ने राजकीय मेडिकल
कॉलेजों में पी.जी. नॉन क्लीनिकल
पाठ्यक्रमों(courses) की फीस घटा दी है. यह फीस पाँच लाख रुपये से घटा कर एक लाख रुपया कर दी गयी
है. इसे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की उपलब्धि के तौर पर प्रचारित करने के लिए
एक डिजिटल पोस्टर भी जारी कर दिया गया.
चिकित्सा शिक्षा में एनाटॉमी,पैथोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री,फार्माकोलॉजी,माइक्रोबायोलॉजी, फॉरेंसिक मेडिसिन आदि विषय नॉन क्लीनिकल
श्रेणी में आते हैं.
उत्तराखंड के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं फीस वृद्धि के खिलाफ
साल भर से लगातार आवाज़ उठा रहे हैं. पिछले
वर्ष हल्द्वानी और देहारादून के राजकीय मेडिकल कॉलेजों के लिए राज्य सरकार द्वारा
बॉन्ड की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी और श्रीनगर(गढ़वाल) और अल्मोड़ा के राजकीय
मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड व्यवस्था को ऐच्छिक कर दिया गया. इसके साथ ही एम.बी.बी.एस की फीस में सरकार द्वारा भारी वृद्धि की गयी. फीस पंद्रह हजार
रुपये सालाना से बढ़ा कर सीधे चार लाख छब्बीस हजार पाँच सौ रुपये
कर दी गयी. देश के किसी राजकीय मेडिकल कॉलेज में इतनी अधिक फीस नहीं है. एम्स, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी,बी.एच.यू. जैसे
संस्थानों में भी फीस एक-डेढ़ लाख रुपये से अधिक नहीं है.
एमबीबीएस में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं लगभग हर मंच से
फीस कम करने की मांग उठा चुके हैं और अभी भी लगातार उठा रहे हैं. लेकिन उनकी कहीं सुनवाई
नहीं हो रही है. मुख्यमंत्री इन छात्र-छात्राओं की मांग पर पूरी तरह से खामोशी और बेरुखी
बरते हुए हैं.
यह भी गौरतलब है कि कम किए जाने से पहले पी.जी. नॉन क्लीनिकल कोर्स
की फीस जितनी थी, एमबीबीएस
कोर्स की फीस,उस से थोड़ा ही कम है. पी.जी. नॉन क्लीनिकल कोर्स
की फीस अब तक पाँच लाख थी, तो एमबीबीएस की फीस चार लाख छब्बीस हजार
पाँच सौ रुपये है. अगर पी.जी. नॉन क्लीनिकल कोर्स की
फीस-पाँच लाख रुपया ज्यादा है और उसे कम करने की आवश्यकता महसूस की गयी तो फिर एमबीबीएस
में चार लाख छब्बीस हजार पाँच सौ रुपये फीस किस तर्क से कम है और इसे कम करने की जरूरत
क्यूँ नहीं महसूस करते मुख्यमंत्री जी ?
पी.जी. नॉन क्लीनिकल कोर्स की फीस कम करने के मामले में
अखबारों में जो तर्क प्रकाशित हुआ है,वह रोचक है. खबरों के
अनुसार इन पाठ्यक्रमों में सीटें बहुत हैं,लेकिन फीस ज्यादा होने
के चलते इनमें एडमिशन नहीं हो रहे थे.भारतीय चिकित्सा परिषद (एम.सी.आई) के नियमों के अनुसार यदि तीन साल तक सीट
खाली रहती है तो सीट खत्म खत्म की जा सकती है. पी.जी. नॉन क्लीनिकल
पाठ्यक्रमों में सीटें खत्म होने से बचाने के लिए सरकार द्वारा फीस कम करने का
फैसला लिया गया है !
इसका आशय यह है कि फीस निर्धारित करने में किसी तार्किकता
यानि reasonableness
का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि वह मनमाने तरीके से निर्धारित कर दी
जाती है. जब देखा गया कि इस मनमानी फीस के कारण एडमिशन नहीं हो रहे हैं तो उतने ही
मनमाने तरीके से फीस,एकाएक पाँच लाख रुपये से कम करके एक लाख
रुपये करने का फैसला ले लिया गया !
एमबीबीएस की फीस क्या सिर्फ इसलिए कम नहीं होगी मुख्यमंत्री
जी कि उसमें अभी एडमिशन होने बंद नहीं हुए हैं ? एमबीबीएस की
फीस कम करने के लिए क्या उस दिन का इंतजार है,जब इतनी भारी फीस
चुका पाने में असमर्थ होने के चलते,प्रवेश कम हो जाएंगे, सीट खाली रह जाएंगी और एमसीआई द्वारा उन्हें खत्म करने का खतरा पैदा हो जाएगा
? डाक्टर तो इस राज्य को एमबीबीएस वाले भी चाहिए ही मुख्यमंत्री
जी,उनकी जगह साढ़े चार लाख रुपये रख कर तो इलाज नहीं हो सकता ना! इसलिए सीटें खाली होने का इंतजार करने के बजाय पी.जी. नॉन क्लीनिकल पाठ्यक्रमों की
तरह ही एमबीबीएस की फीस भी तत्काल कम की जानी चाहिए.
-इन्द्रेश मैखुरी
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