देश में व्यापार,कारोबार,रोजगार सब लॉकडाउन है. यदि कुछ चल रहा है तो वो है लॉकडाउन से उपजा गरीबों-मजदूरों का हाहाकार ! इसी
बीच बिहार में आज एक ऑनलाइन रैली होने जा रही है. रैली और ऑनलाइन ! जी हाँ,ऑनलाइन रैली. रैली किसकी है,यह तो कोई बताने की बात नहीं
है. अजी, डिजिटल इंडिया का नारा जिनका है,उन्हीं की है.
इस दौर में सब कुछ ऑनलाइन हो गया. सेमिनार का वेबिनार
हो गया. पढ़ाई भी सुनते हैं ऑनलाइन हो रही है. जो गरीब बेचारे स्मार्ट फोन रखने लायक
स्मार्टनेस भी हासिल न कर सकें,उनके बच्चों को यह पढ़ाई मयस्सर
न होगी तो क्या, पढ़ाई चल तो रही है ऑनलाइन ! जहां नेटवर्क नहीं
है या नेटवर्क खोजने एक खास टीले पर जाना पड़ता है या खास कोण पर झुकना पड़ता है,वहाँ भी ऑनलाइन पढ़ाई हो जा रही है.यूं ही थोड़े कहा था “फलाने जी हैं तो मुमकिन
है !”
देश बड़ी तेजी से डिजिटल हो रहा है. इस कदर डिजिटल
हो चुका कि ठगों को भी किसी मनुष्य के पास
साक्षात नहीं जाना है,ठगी करने के लिए. बस इंटरनेट कनैक्शन
हो,स्मार्टफोन हो तो काम हो जाता है. स्मार्टनेस की तो ठगों में
कोई कमी होती नहीं.ईमानदार होने के लिए स्मार्टनेस नहीं चाहिए होती. भोंदू से भोंदू
आदमी भी ईमानदार हो सकता है. लेकिन ठग ऐसे ही नहीं हुआ जा सकता. किसी भी प्रजाति का ठग देख लीजिये,स्मार्ट होना, ठगी के पेशे की आवश्यक शर्त है, बोले तो अनिवार्य अर्हता यानि एसैन्शियल क्वॉलिफ़िकेशन है !
ऑनलाइन ठगी में पकड़े जाने का खतरा भी न्यूनतम है.
ऑनलाइन की महिमा अपरमपार है. उसने ठगी को भी अत्याधिक निरापद बना दिया है.
तो जब ठगी तक ऑनलाइन हुए जा रही है तो रैली का ऑनलाइन
होना क्या अनोखी बात है. जिसको इस देश में मुख्यधारा की राजनीति कहा जाता है,उसमें बिना ठगी के कौशल के बात कहाँ बनती है,भला ! भरोसा
यह दिलाना है कि तुम्हारे बेटे को रोजगार मिलेगा और करना अपने बेटे का कारोबार-व्यापार
पक्का है. ठगी का हुनर इस कला के आगे फीका है.उनकी तमाम स्मार्टनेस के बावजूद ठगों
को लोग अच्छी नजर से नहीं देखते. पर राजनीतिक ठग उनकी रोटी,रोजगार,जमीन यदि सब नीलाम भी कर दे तो भी लोग उसे मसीहा,माईबाप,अवतारी पुरुष ही समझते हैं !
खून की कमी यानि रक्ताल्पता,जिसे अँग्रेजी में एनीमिया कहते हैं,मनुष्य की सेहत के
लिए घातक होती है.उसी तरह भाषण अल्पता,जुमला अल्पता यानि जुमला
एनीमिया भी लच्छेदार जुमलों के आदि मनुष्यों के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकता है. खाने
की कमी एकबारगी बर्दाश्त की जा सकती है पर भाषण व जुमलों की कमी कतई सहन नहीं की जा
सकती. पेट पर पट्टी बांध कर जुमलों के सहारे पलती दीन-हीन जनता के लिए तो यही प्राणवायु
है. इसलिए आवश्यक सेवा कानून में रद्दोबदल करते हुए, अन्य आवश्यक
सेवाओं की तरह ही जुमला सप्लाइ को भी आवश्यक श्रेणी की वस्तुओं में शुमार कर लिया जाना
चाहिए ताकि हर स्थिति में इसकी निर्बाद्ध सप्लाई बनी रहे. चूंकि जुमला सप्लाई का कौशल
इस समय देश में एक ही पार्टी के पास है,इसलिए बाकी पार्टियों
को बिलकुल राजनीति नहीं करनी चाहिए.यदि वे राष्ट्र निर्माण में कुछ योगदान करना ही
चाहते हैं तो उन्हें चाहिए कि अपने सांसद-विधायकों की सप्लाई, वे,जुमला सप्लाई करने वाली पार्टी की तरफ निरंतर बनाए
रखें. इससे जुमला सप्लाई चेन निरंतर मजबूत होगी. और जुमला मजबूत तो देश मजबूत !
-इन्द्रेश
मैखुरी
3 Comments
Ji
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