रंगीली बिंदी घागर काई
होई-होई-होई रे मिजाता
लहराता हुआ सा सुरीला गीत कानों में पड़ा. यह नब्बे
के दशक का उत्तरार्द्ध था. रामनगर में प्रगतिशील पर्वतीय सांस्कृतिक समिति द्वारा आयोजित
होने वाले बसंतोत्सव में नृत्य नाटिकाओं की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए कला
दर्पण,उत्तरकाशी
की टीम के साथ गया था. वहीं किसी प्रतियोगी को मंच पर इस गीत को गाते सुना. बोल तो
बहुत पकड़ में नहीं आए,न यह पता था कि गीत किसका है. पर गीत की
मीठा सुरीली धुन कानों के रास्ते दिल-दिमाग में रच-बस गयी.
उसके बाद बहुतेरे मौकों पर इसे अलग-अलग लोगों के मुंह
से सुना और हर बार सुन कर मन नहीं भरता था. लगता था कि तुरंत ही एक-आध-दो बार और भी
सुन लिया जाये तो कुछ तृप्ति हो. बहुत बाद में पता चला कि यह तो उत्तराखंड के प्रसिद्ध
कुमाऊँनी गायक हीरा सिंह राणा का गीत था. राणा जी के मुंह से सुना,बिना साज-बाज के भी सुना. सुन कर लगा कि अब तक क्या सुना था इसे ? अपनी खरखराती सुरीली आवाज़ में क्या खूब गाते थे राणा जी इसे. वैसे खरखराहट
और सुरीलापन एक दूसरे के विपरीत चीजें हैं. लेकिन राणा जी की आवाज़ में एक सुरीली खरखराहट
थी. और हर बार गाते हुए जब वे :
आई-हाई-हाई रे मिजाता
पर पहुँचते थे तो जिस अंदाज में इसे गाते,वह मदमस्त कर देने वाला होता.
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आभार- गुल्लक टी वी
इस गीत के बोल सुन कर लगता है कि श्रृंगार का गीत है,रूप सौंदर्य का वर्णन करने वाला गीत है. लेकिन खुद राणा जी इस गीत के बारे
में कहते थे कि एक बार वे मुंबई से आ रहे थे,रामनगर से पहाड़ की
ओर जा रहे थे. कालाढूंगी से जब गाड़ी पहाड़ को चढ़ने लगी तो तराई-मैदान खूबसूरत दिख रहा
था. सूर्य पूरी तरह उगा नहीं था तो उसकी रौशनी हल्की पड़ रही थी. वहीं से
उस गीत का रचा जाना शुरू हुआ.
“हल्का सूर्य-रंगीली बिंदी,श्यामलता-घागर काई और सूर्य की लालिमा-धोती लाल किनर वाई !” प्रकृति की सुंदरता
को नजरों में भर कर कवि के मुंह से फूटे सौन्दर्य से लबरेज गीत के बोल. यह गीत,काव्य का ही तो कमाल है कि वहाँ प्रकृति और उसके अनुपम नजारे,स्त्री सौन्दर्य और प्रेमिका के प्रतिबिंब हो सकते हैं.
इस गीत की इतनी चर्चा इसलिए कि यह गीत एक तरह से हीरा
सिंह राणा जी का “सिग्नेचर गीत” है. स्वयं वे कहते थे कि यह गीत इतना लोकप्रिय हुआ
कि इस गीत के बिना कोई मंच,कोई महफिल पूरी नहीं होती थी.
75 वर्ष की उम्र में 13 जून को इस दुनिया से रुखसत होने
वाले हीरा सिंह राणा लगभग पाँच दशक से अधिक वक्त तक उत्तरखंडी लोक गीत-संगीत के क्षेत्र
में सक्रीय रहे. इस दौरान प्रेम के,बिछोह के,पीड़ा के और संघर्ष के गीत उन्होंने रचे और गाये.
विभिन्न जन आंदोलनों के लिए उन्होंने गीत रचे और आंदोलनों
के मंच पर जा कर गाये भी.
लसका कमर बांधा,हिम्मत का साथा,
फिर भोला उज्याली होली,कां ले रौली राता
उनका यह गीत तो उत्तराखंड के आंदोलनों,संघर्षों का निरंतर ही सांझी रहा.आखिरकार
कठिन से कठिन समय में भी रास्ता तो कमर कस कर एकजुट हो कर लड़ने का ही रास्ता है और
अंधेरे से अंधेरे वक्त में भी लड़ते हुए यह आस तो सर्वाधिक बलवती है ही कि रात का साम्राज्य
आखिर कब तक रहेगा, कल तो सवेरा
होगा,कल तो उजाला होगा ही.
गीत-संगीत
की तरह ही हमारे लोक कलाकार भी सीधे-सरल,निश्छल ,भोले-भाले होते हैं. हीरा सिंह राणा जी भी ऐसे थे. उनकी
निश्छलता कई बार उनके छले जाने का कारण बनी.बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले
कतिपय आयोजक, बाकी सब पर खर्च करना चाहते हैं,लेकिन कलाकारों को पैसा देने में उनका हाथ यकायक तंग हो जाता है. राणा जी को
भी कई बार ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ा था.
2014 में उमेश डोभाल स्मृति
समिति ने गैरसैंण में आयोजित कार्यक्रम में
हीरा सिंह राणा जी को “गिरीश तिवारी गिर्दा
जनकवि सम्मान” से नवाजा था.
उस कार्यक्रम के दौरान रीजनल रिपोर्टर के संस्थापक संपादक
भवानी शंकर थपलियाल और मैंने हीरा सिंह राणा जी से खूब
सारे विषयों पर चर्चा की. अफसोस कि भाई भवानी शंकर उस बातचीत के कुछ वर्षों बाद ही
दुनिया से विदा हो गए.
उस दौरान ही हीरा सिंह राणा
जी की जमीन पर भाजपा के लोगों द्वारा कब्जा करने की चर्चा कई साथी लोग सोशल मीडिया
में करते रहते थे. उनसे जब इस बारे में पूछा तो जमीन कब्जे के पूरी दास्तान उन्होंने
सुनाई. यह भी बताया कि एस.डी.एम और डी.एम. के यहाँ से मुकदमा जीत चुके हैं. लेकिन कब्जा
करने वाले कमिश्नर के यहाँ अपील में चले गए हैं. इसी प्रसंग में स्थानीय विधायक का
नाम बड़े आक्रोश और अजनबीपन से लेते हुए,उन्होंने कहा-सुना है कोई जीना है.
तत्कालीन
मुख्यमंत्री हरीश रावत के सलाहकार,जिनकी तब हरीश रावत से दाँत कटी रोटी थी और अब सुनते
हैं कट्टी हो गयी है यानि रणजीत रावत,उनका जिक्र भी इस चर्चा
में आया. राणा जी बोले-अब रणजीत तो अपना ही बच्चा ठैरा फिर ! लाख कोशिश करके भी विशाल
आकार-प्रकार और आक्रामक रुख वाले रणजीत रावत की बच्चे वाली छवि,मैं अपनी आँख में नहीं गढ़ पाया. इस मामले में दिमाग ने साथ देने से इंकार कर
दिया. बहरहाल राणा जी से मैंने कहा कि फिर जमीन के मामले में “बच्चे” से नहीं कहा आपने
? बड़े भोलेपन से वे पूछने लगे-वो क्या कर सकता है,इसमें ? यह भोलापन ही है,जिसका
राजनीतिक चकड़ैत फायदा उठाते रहते हैं. उनका उपयोग अपनी राजनीति चमकाने में करते हैं
और उनके कष्टों को झेलने के लिए,उन्हें अकेला छोड़ देते हैं.
लेकिन
यह भी दीगर बात है कि व्यक्तिगत दुख,तकलीफ और परेशानियों की परवाह किए बगैर हीरा सिंह
राणा पहाड़ के,पहाड़ के सुख-दुख और पीड़ा-वंचना के गीत गाते रहे.
त्यौर पहाड़,म्यौर पहाड़
रौय दुखों कु ड्यौर पहाड़
बुजुरगूं लै ज्वौड़ पहाड़
राजनीति लै ट्वौड़ पहाड़
ठेकेदारुं लै फ़्वौड़ पहाड़
नानतिनू लै छ्वौड़ पहाड़
ग्वल न गुसैं,घेर न बाड़
त्यौर पहाड़,म्यौर पहाड़....
रौय दुखों कु ड्यौर पहाड़
बुजुरगूं लै ज्वौड़ पहाड़
राजनीति लै ट्वौड़ पहाड़
ठेकेदारुं लै फ़्वौड़ पहाड़
नानतिनू लै छ्वौड़ पहाड़
ग्वल न गुसैं,घेर न बाड़
त्यौर पहाड़,म्यौर पहाड़....
(तेरा पहाड़, मेरा पहाड़
रहा दुखों का डेरा पहाड़
बुजुर्गों ने जोड़ा पहाड़
राजनीति ने तोड़ा पहाड़
ठेकेदारों ने फोड़ा पहाड़
नौजवानों ने छोड़ा पहाड़
ग्वाला न खैरख़्वाह, घेर न बाड़
तेरा पहाड़, मेरा पहाड़)
पहाड़ की पीड़ा बयां करता
यह गीत कुछ साल पहले राणा जी ने रचा और इसे वे निरंतर गा रहे थे. बंजर होते पहाड़ की
तस्वीर सामने ला रहे थे :
बांज कूड़ों में जम गो
झाड़
(बंजर मकानों में जम गए
झाड़)
सूअर,बंदर,बाघ,भालू से त्रस्त पहाड़ के कष्ट को स्वर दे रहे थे.
विकास के नारों की हकीकत
बता रहे थे :
कैक तरक्की कैक विकास
हर आँखा में आंस ही आंस
जे.ई
कैजां बिल के पास
ए.ई
मारूँ पैसों गास
(किसकी तरक्की,किसका विकास
आँसू ही आँसू बहते हर
आँख
जे.ई करे बिल पास
ए.ई गटके पैसे का ग्रास
)
और इसके अंत में वे कहते
हैं :
अटैच्यूं में
भौरो पहाड़
(अटैची में भर ले गए पहाड़)
राज्य बनने से पहले भी
पहाड़ में यही कहा जाता था कि यहाँ अफसर एक लोहे का सन्दूक ले कर आता था और तबादले के
समय ट्रक भर कर ले जाता था.
राज्य बनने के दो दशक
होने पर भी तस्वीर लगभग वैसी ही है कि लुटेरे,तस्कर,भ्रष्ट नेता और नौकरशाह यही कर रहे हैं :
अटैच्यूं में भौरो पहाड़
लेकिन इस लूटे के खिलाफ
लड़ना ही होगा. संघर्षों के गीतों का शस्त्रागार जो हमारे पास है,उस जखीरे में राणा जी के गीत उनके दुनिया से विदा
होने के बाद भी हमारे साथ बने रहेंगे. और राणा जी तो आस जगाते हैं :
पाणि की सीर वैं
फुटैलि, जां मारूंला लाता
तो उम्मीद के नए पानी के सोते भी निकालेंगे
और काली रात के बाद के सवेरे तक
भी हम जाएँगे.
अलविदा राणा जी,आपके गीत इस लड़ाई में हमारे साथ,हमारी पीढ़ियों के साथ चलते जाएँगे.
इन्द्रेश
मैखुरी
2 Comments
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि 💐
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