मॉडल जेसिका लाल की हत्या में सजा काट रहे मनु
शर्मा को अच्छे आचरण के चलते जेल से समय से पहले ही रिहा करने के आदेश हो गए हैं.
इस पर बरबस एक किस्सा याद आ गया. वर्ष 2004 में लालकुआं
में तराई भाबर किसान सभा द्वारा चलाये जा रहे दूध उत्पादकों के आंदोलन में
गिरफ्तारी के बाद हम चार साथी- कॉमरेड गजेंद्र शाह( जो अब इस दुनिया में नहीं हैं),देवेन्द्र रौतेला,पंकज इंकलाबी और मैं हल्द्वानी जेल
ले जाये गए.कॉमरेड बहादुर सिंह जंगी वहाँ हमसे पहले गिरफ्तार करके भेज दिये गए थे.
जेल क्षमता से अधिक बंदियों से भरी थी. जेल जीवन में
जिनको सजा न हुई हो,वे कैदी संबोधित किए जाने पर नाराज
हो जाते हैं. उनका ज़ोर होता है कि उन्हें बंदी कहा जाये.
इन्हीं बंदियों में एक मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति
भी था. वह व्यक्ति निरंतर अपने-आप ही बड़बड़ाता रहता था. ऐसा लगता था कि अपने से उसकी
बातों का सिलसिला खत्म ही नहीं होता था. लेकिन अपराधी वह किसी एंगल से नहीं लगता था.
एक दिन उससे बात हुई. बोला-पाकिस्तान के दस राष्ट्रपतियों का कत्ल कर दिये मैंने. कौन
दस तो पहला नाम जो उसने लिया वो था-एल.डी.भट्ट ! उसने इसी तरह के नौ और हिन्दू नाम
गिनाए.जाहिर सी बात है,न उनमें से कोई पाकिस्तान का राष्ट्रपति
था और न उसने कोई कत्ल किया था. फिर उसने कहा
-कल वो पाकिस्तान का राष्ट्रपति सब्जी मंडी में मिला मुझे. उसने मुझे चक्कू दिखाया
तो मैंने मार दिया उसको.
इन संवादों से उसकी मानसिक दशा का सहज ही अंदाज लगाया
जा सकता है. जब अन्य बंदियों से पूछा कि यह किस जुर्म में बंद है तो बताया गया- गिरोहबंदी
में ! ऐसी मानसिक अवस्था वाला क्या खाक गिरोह बनाएगा ? दरअसल वह व्यक्ति रुद्रपुर में रिक्शा चलाता था. मानसिक रूप से अस्थिर था
ही. एकदिन उसके पीछे कुत्ता पड़ गया. वह कुत्ते से बचने के लिए भागा और एक फार्म हाउस
में घुस गया. फार्म हाउस के मालिक ने देखा कि एक पागल जैसा व्यक्ति फार्म हाउस में
घुस आया है तो उसने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस उसे थाने ले आई. पुलिस चार लोगों को
पहले से पकड़े हुए थी. लेकिन चार लोगों में गिरोह नहीं बनता. इसलिए पुलिस ने यह पाँचवाँ, उनके साथ नत्थी करके गिरोह पूरा कर दिया और पांचों को गिरोहबंदी में जेल भेज
दिया गया.
ऊपर जिस मानसिक रूप से अस्थिर रिक्शेवाले का जिक्र
है,उसका या पुलिस की गाड़ी के बगल से गुजरने मात्र से जेल पहुंचा दिये जाने वालों
का अच्छे आचरण को देखने वाला भी होता होगा कोई तंत्र ? क्या ये
भी मनु शर्मा या संजय दत्त या अजय चौटाला की तरह पैरोल पर बाहर आ पाते होंगे ?
जी नहीं,ऐसे लोग जिनका सबसे
बड़ा अपराध गरीबी है,उनके लिए पैरोल तो दूर की बात है, जमानत मिलना भी आकाश-कुसुम है. सजा माफी तो मनु शर्मा जैसों के लिए है,जिसने सरेआम हत्या की,लेकिन उसे हत्यारा सिद्ध करने में
ही पूरे कानूनी तंत्र को दांतों तले पसीना आ गया था.2006 में अदालत द्वारा उसे बारी
किए जाने पर देशव्यापी आंदोलन हुआ. तब दिल्ली
हाईकोर्ट द्वारा उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी मनु शर्मा अप्रैल के पहले हफ्ते से ही पैरोल पर बाहर
था.इस पैरोल का तर्क था-कोरोना के कारण जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए की गयी सोशल
डिस्टेसिंग ! लेकिन इसी तर्क से -सुधा भारद्वाज,गौतम नवलखा,वरवर राव,गर्भवती सफूरा जरगर को पैरोल नहीं मिल सकती.
जामिया,जे.एन.यू के कई छात्र-छात्राएँ उसी दौर में दिल्ली पुलिस
द्वारा जेल भेजे जा रहे हैं,जिस समय मनु शर्मा जैसे हत्यारे को
जेल में भीड़भाड़ कम करने के लिए पैरोल और सजा से माफी मिल रही है.
ऊपर उल्लिखित रिक्शे वाले या अन्य गरीबों के अच्छे आचरण की देख-परख
यदि वाकई को तंत्र करता तो ये जेल में होते ही क्यूँ ? तब इस देश की आधी से अधिक जेलें खाली हो जाती.
-इन्द्रेश
मैखुरी
2 Comments
Well said
ReplyDeleteNo one killed jassica...😢
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