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उत्तराखंड के वन गूजरों पर क्यूँ हमलावर है वन विभाग ?


जिस समय सब लॉकडाउन है,उसी समय वन विभाग जंगलों में रह रहे वन गूजरों को उजाड़ने का अभियान चलाये हुए है. बीते दिनों तो इस संघर्ष ने हिंसक रूप ले लिया. वन गूजर पीढ़ियों से वनों में रहते आए हैं. वनों के भीतर रह कर पशुपालन करके वे अपनी आजीविका चलाते हैं.पीढ़ियों से वनों पर आश्रित लोगों को अधिकार दिलाने के लिए 2005 में देश में वनाधिकार कानून बना था.




लेकिन जैसे वनों में रहने वालों पर वन विभाग की तिरछी नजर रहती है,उसी तरह वन अधिकार कानून से भी वन विभाग खार खाये रहता है और मौके-बेमौके इस कानून की धज्जियां उड़ाने से भी नहीं चूकता.


बीती 16-17 जून को भी वन विभाग ने ऐसा ही कारनामा अंजाम दिया. उस दिन राजाजी नेशनल पार्क की रामगढ़ रेंज की आशारोड़ी बीट में वन गूजरों के डेरे तोड़ने वन विभाग की टीम पहुंची. गूजरों ने वन अधिकार कानून के तहत दिये गए अपने दावों का हवाला दिया. परंतु वन विभाग किसी सूरत में मानने को राजी नहीं हुआ. वीडियो में दिख रहा है कि एक गूजर बुजुर्ग सुप्रीम कोर्ट के स्टे का हवाला दे रहे हैं,लेकिन उन्हें उजाड़ने आए वन कर्मी कुछ भी सुनने से इंकार कर रहे हैं.



जो वीडियो सामने आए हैं,उसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वन विभाग के कर्मचारी स्वीकार कर रहे हैं कि डेरों को उन्होंने गिराय. घटनाक्रम का वीडियो बनाने वालों को भी वे निरंतर धमका रहे हैं. सवाल यह है कि अगर वन विभाग की कार्यवाही कानून सम्मत है तो उसे वीडियो बनाए जाने से आपत्ति क्यूँ है ? वीडियो में गंभीर रूप से घायल महिला को चारपाई पर उठा कर एंबुलेंस में डालते भी देखा जा सकता है.





इस घटनाक्रम में वन विभाग ने पुलिस में 80 साल के बुजुर्ग से लेकर महिलाओं तक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया. लेकिन गूजरों ने जब अपने साथ मारपीट की रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की तो पुलिस ने उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी. गूजरों ने अपनी शिकायत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक,देहारादून को सौंपी है. इस बीच गूजरों की गिरफ्तारी और उनके साथ मारपीट की भी खबरें हैं. सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2019 के स्टे और उत्तराखंड के मुख्य सचिव द्वारा गूजरों को डेरों में ही रोके रखने के आदेश के बावजूद डेरे तोड़े जाना और मारपीट की घटना बेहद गंभीर और आपत्तिजनक है.




इस मामले में समाचार पत्रों का रवैया भी गूजरों के प्रति शत्रुतापूर्ण रहा. उनका पक्ष किसी ने नहीं छापा और वन विभाग का पक्ष अतिरंजित तरीके से प्रकाशित किया गया. अमर उजाला ने घायल वन कर्मियों की संख्या पाँच बताई तो हिंदुस्तान ने इससे तीन गुना अधिक यानि 15 वन कर्मियों के घायल होने की बात लिखी. प्रमुख वन संरक्षक जय राज, बाइट में चार वन कर्मियों के घायल होने की बात कह रहे हैं. तब अखबारों ने पाँच से लेकर पंद्रह तक घायलों तक की यह संख्या कहाँ से ईजाद की,ये अखबार नवीस ही जाने ! 



           वीडियो  सौजन्य -https://uttarakhandgazetteer.com/






वन गूजर घुमंतू पशु चारक लोग हैं. लॉकडाउन ने गूजरों पर गहरी मार की है. अब तक वे गर्मियों के मौसम में उच्च हिमालयी क्षेत्रों को आपने जानवरों के साथ चले जाया करते थे. परंतु 28 अप्रैल को उत्तराखंड के मुख्य सचिव द्वारा आदेश जारी किया गया कि गूजरों को किसी सूरत में अपने डेरों से निकलने की अनुमति नहीं होगी.




 डेरों में रह रहे हैं तो वन विभाग डेरे तोड़ने चला आ रहा है. उनके पशु जिन्हें गर्मियों के मौसम में ऊंचाई वाले स्थानों पर रहने की आदत है,वो बीमार पड़ रहे हैं. नतीजतन उनका उत्पादन घट रहा है और जीवन यापन मुश्किल हो रहा है. मुख्य सचिव द्वारा जारी आदेश में तो यह भी कहा गया था कि गूजरों के पशुओं को चारा वन विभाग उपलब्ध करवाएगा और आँचल द्वारा उनके दुग्ध उत्पादों की खरीद की जाएगी. परंतु धरातल पर ऐसा होता दिख नहीं रहा है. यदि कुछ दिख रहा है तो वो है- वन विभाग का हमलावर रवैया !


-इन्द्रेश मैखुरी 

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