राजस्थान के रण में दांव-पेंच जारी हैं. सबने अपने
घोड़े खोल दिये हैं,सरकार
बचाने और सरकार गिराने के लिए. दांव-पेंच में सब घोड़े भले खोल दिये गए हों, पर जिसे अंग्रेजी में कहते हैं ना, हॉर्स ट्रेडिंग,उससे बचाने के लिए घोड़े बंद करके रखे
जाते हैं ! घोड़ा खुला नहीं कि वह सरपट कुलांचे भरता हुआ ट्रेडिंग में पहुंचा नहीं
!
हालांकि यह भी समझ से परे है कि विधायक-सांसदों की खरीद-बिक्री
के खेल को हॉर्स ट्रेडिंग क्यूँ कहते हैं ? आपने आज तक कोई घोड़ा
देखा है,जो खुद ट्रेड किए जाने यानि अपना व्यापार किए जाने को
प्रस्तुत हुआ हो कि मेरी बोली लगा लो ! या फिर ऐसा खतरा किसी घोड़े से हुआ है कि यदि
वह खुला छूटा तो वह सरपट दौड़ता हुआ विपक्षी खेमे में चला जाएगा ! जी नहीं,घोड़े ऐसे नहीं होते,वे अपनी मर्जी से ट्रेड यानि खरीद-बिक्री
में शामिल नहीं होते. और यहाँ जिन हजरातों के लिए आए दिन हॉर्स ट्रेडिंग शब्द इस्तेमाल
होता है,वे निरीह पशु नहीं घाघ मनुष्य हैं. वे उस श्रेणी के मनुष्य
हैं जिनके बारे में बाबा नागार्जुन कहते हैं- परम चतुर हैं,अति
सुजान हैं ! उनकी प्रवृत्ति नागार्जुन के शब्दों में : बादल-बदल कर चखें मलाई ! तो
ऐसे बदल-बादल कर मलाई छखने को उद्यत परम चतुर-अति सुजान जो खुशी-खुशी मंडी में खुद
की बोली लगाए जाने को प्रस्तुत हैं,उनकी खरीद-बिक्री को हॉर्स
ट्रेडिंग कहना बेसिकली हॉर्स की मानहानि है. यह इन परम चतुर,अति
सुजानों के खुद की बोली लगाने के हुनर को भी कमतर आंकना है !
कार्टून : कप्तान, साभार : सोशल मीडिया
इस रण में,वैसे इसे रण कहना भी
अतिशयोक्ति ही है ! यह तो विशुद्ध रूप से सत्ता की छीना-झपटी है,जिसे छीनने-झपटने के निरंतर उपक्रम में लगे हुए परम चतुर,अति सुजान मनुष्य,जन सेवा बताते हैं. मारामार मची है, जनसेवा के लिए और जन के हिस्से इस मारामार में हर बार सिर्फ मार ही आती है
!
इस मारामार और थुक्का फजीहत में जिनका हाथ, “हाथ” से छिटग गया और हाथ में जो कुछ था,वो मरु भूमि
की रेत की तरह फिसल गया,उनको कुछ तो करना था. तो “समय बिताने के लिए करना है
कुछ काम” की तर्ज पर उन्होंने डायलॉग उछाला-सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं !अरे कौन सा सत्य बाबू ? सत्य की लड़ाई है
क्या ये ? जी नहीं सत्य नहीं सत्ता की लड़ाई है ! सत्ता और सत्य कोई पर्यायवाची या समानार्थी शब्द
नहीं हैं. बहुदा तो विलोम हैं,दोनों. सत्ता
हमेशा सत्य को अपने खिलाफ पाती है. जो रात-दिन,उठते-बैठते, सत्ता के ही ख़्वाब देखते हों,उनके लिए मुमकिन है कि सत्ता ही एकमात्र सत्य हो. यही सच-इन (in) है और यही सच-आउट यानि बाहर भी है,उनके लिए !
हाय रे, उनके सत्य की लड़ाई
! सत्ता पाना सत्य है,सत्ता का जाना,सत्य
की परेशानी है और सत्ता की बटेर आज नहीं तो कल हाथ लगेगी,यही
आस कहला रही है कि सत्य पराजित नहीं हो सकता !
सत्य देखे तो चीत्कार कर उठे - अरे भाई तुम्हारी सत्ता की लड़ाई है,लड़ो ! टांग खींचो
या कुर्सी खींचो पर मुझे न घसीटो ! तुम्हारा सत्य यदि सत्ता है तो जिससे तुम सत्ता
छीनना चाहते हो उसका सत्य भी यही है. वह अपने सत्य यानि सत्ता के लिए पिला पड़ा है और
तुम सत्य उससे छीनना चाहते हो !
पर प्यारे सच-इन,पार्टी-आउट, यह जान लो सत्य कोई म्यूज़िकल चेयर रेस नहीं है,चूहा
दौड़ और परम-चतुर,अति सुजानों की बिकवाली भी नहीं है,यह ! सत्ता की उठा-पटक में रात-दिन एक करने वालों,अपने
काम में लगे रहो पर खामखाँ सत्य को इस लफड़े
में न घसीटो.तुम्हारे सत्ता के प्रपंच में बिना बात कुचला जाएगा बेचारा सत्य ! झूठ
के फलने-फूलने के लिए उर्वर इस दौर में वैसे ही कुम्हलाया हुआ है,बेचारा ! बेचारा वैसे ही दर-बदर है,आजकल ! सत्ता के लिए
हाथ काले करने वालों की कालिख और लग जाएगी तो कहीं का न रहेगा बेचारा !
सत्ता को सत्य समझने वालो,फिलहाल तुम राहत इंदौरी साहब की पंक्तियों का ताप झेलो :
"झूठों ने झूठों से कहा
सच बोलो
सरकारी फरमान हुआ है
सच बोलो
घर के अंदर झूठ की मंडी है
दरवाजे पे लिखा है- सच बोलो."
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
दुनिया कोरोना का इलाज खोज रही है
ReplyDeleteसाब राजस्थान में विधायक खोज रहे हैं