उत्तराखंड में सरकार चलाने वाले लोग बेहद भोले-भाले
हैं.अबके और इससे पहले वाले भी. उनके “माननीय”
होने पर ठेस न लगती हो तो गढ़वाली की लोकप्रिय शब्दावली में यह भी कह सकते थे कि बड़े लाटे-काले हैं बेचारे !
चूंकि जैसा कहा ही गया है कि ऐसा कहने से उनके “माननीय”
पन पर ठेस लगने की गुंजाइश है,इसलिए ऐसा नहीं कहते,भोले-भाले से ही काम चला लेते हैं. तो हमारे यहाँ सरकार
चलाने वाले बहुत भोले-भाले हैं. इतने भोले कि उन्हें पता ही नहीं रहता कि उनसे पहले
सत्ता में बैठने वालों ने क्या निर्णय लिया या उनके समय में ही दूसरे संवैधानिक पदों
पर बैठे लोग क्या कर रहे हैं !कई बार इस भोलेपन में वे अपने ही फैसलों से गाफ़िल हो
जाते हैं.
इस भोलेपन की एक बानगी देखिए. 03 जुलाई को विधानसभा के अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल ने देहारादून के रायपुर में प्रदेश के एक और विधानसभा निर्माण के मामले में अब तक की स्थिति को जानने के लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की. बैठक के अगले दिन यानि 04 जुलाई को सारे अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी. छपनी ही थी. एक तो विधानसभा अध्यक्ष ने बैठक ली. दूसरा यह प्रदेश में तीसरी विधानसभा और तीसरे सचिवालय के निर्माण के मामले में हुई बैठक थी.
लेकिन इस मामले में न्यूज़ चैनल-हिन्दी खबर ने मुख्यमंत्री
त्रिवेंद्र सिंह रावत से पूछा तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि उन्हें इस बारे में
कोई जानकारी नहीं है.
विधानसभा अध्यक्ष प्रदेश में एक और विधानसभा के निर्माण के संदर्भ
में अफसरों के साथ बैठक करते हैं और वो भी उस विभाग के अफसरों के साथ, जो विभाग मुख्यमंत्री के पास ही है और फिर भी मुख्यमंत्री को बैठक का पता
ही न चले ! यह कतई मारक किस्म का भोलापन ही तो है.
मुख्यमंत्री जी तो उस पार्टी से संबद्ध हैं,जिसके आई.टी.सेल के पास नेहरू के दादा के बारे-बारे में ऐसी जानकारियां हैं,जैसी स्वयं नेहरू और उनके पिता के पास भी नहीं रही होंगी ! और मुख्यमंत्री
जी को अपने अधीनस्थ विभाग के अफसरों के साथ हुई विधानसभा अध्यक्ष द्वारा की गयी बैठक
का ही पता नहीं ! हाय-हाय भोलापन,उफ़्फ़-उफ़्फ़
ये भोलापन !
लेकिन भोलापन सिर्फ भाजपा के पास ही हो ऐसा नहीं है. कॉंग्रेस
के पास भी भोलेपन की कमी नहीं है. इस प्रदेश में जो कुछ है,भाजपा-कॉंग्रेस का साझा है ! यहाँ तक कि मंत्रिमंडल तक
साझा टाइप का ही है. देख लीजिये नौ मंत्रियों में से पाँच वो हैं,जो पिछली बार कांग्रेस के साथ थे. दरअसल भाई लोग किसी पार्टी के साथ नहीं हैं,सत्ता के साथ हैं. इसलिए दोनों पार्टियों की साझा मिल्कियत हैं,वे ! रायपुर में विधानसभा भवन बनाने का आइडिया भी साझा टाइप है. 2013 में विजय
बहुगुणा कॉंग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री थे तब रायपुर में विधानसभा भवन बनाने का
फैसला प्रदेश मंत्रिमंडल ने लिया था.
विजय बहुगुणा और उनके अधिकांश मंत्री भाजपा में
हैं. अब विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल ने रायपुर में विधानसभा भवन बनाने की
खोज खबर शुरू की है. इस तरह साझा परियोजनाओं की श्रेणी में एक और परियोजना का नाम दर्ज
हुआ.
जब सत्ता साझा,मंत्री साझा यहाँ तक
कि कारनामें भी एक जैसे तो भोलापन एक ही के पास कैसे होगा ! भोलापन भी दोनों ओर होना
मांगता है !
वैसे भी कॉंग्रेस के पास हरीश रावत हैं,उनके रहते कॉंग्रेस को भोलेपन की कमी होना मुमकिन ही नहीं है.बीते दिनों अपने
लबालब भोलेपन के साथ रावत जी ने रायपुर में विधानसभा भवन बनाए जाने की आलोचना कर दी.
रोचक यह है कि हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए ही जुलाई 2016 में एन.बी.सी.सी. ने
रायपुर में विधानसभा भवन,सचिवालय और लैंड डेवलपमेंट का टेंडर
निकाला था !
हमने किया सो किया पर तुम क्यूँ करोगे ! यही भोलापन है !
कल ही सोशल मीडिया में हरीश रावत जी ने इस बात पर तंज़
कसा है कि वर्तमान सरकार ने भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन
को क्वारंटीन सेंटर बना दिया. विधानसभा को क्वारंटीन सेंटर बनाना चाहिए या नहीं बनाना चाहिए,यह तो अलग बहस है. लेकिन यह बात हरीश रावत कहें तो उनके भोलेपन पर फिदा होने
को जी चाहता है. जिस विधानसभा भवन को हरीश रावत क्वारंटीन सेंटर बना देख कर आहत हैं,उसी विधानसभा भवन को उनकी सरकार ने राजकीय अतिथिगृह घोषित कर दिया था. इसका
बाकायदा शासनादेश हुआ था. 17-18 नवंबर 2016 को भराड़ीसैंण
में हुए विधानसभा सत्र में जब इस मसले पर हो-हल्ला हुआ तो मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हरीश
रावत ने कह दिया-गलती से जारी हो गया,शासनादेश ! यही हरीश रावत
जी का ट्रेडमार्क भोलापन है !
इस मामले में भी भाजपा-कॉंग्रेस का साझा है. करते अपनी
बारी में दोनों एक-जैसा हैं. लेकिन विपक्ष में रहते हुए दूसरे
का वैसे ही कामों के लिए विरोध करते हैं,जैसे कामों को सत्ता
में रहते हुए खुद वे बेधड़क करते रहते हैं. भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए भराड़ीसैंण
की विधानसभा को राजकीय अतिथिगृह बनाने का ज़ोर-शोर
से विरोध किया पर उसी विधानसभा को क्वारंटीन सेंटर बनाने में उसे कोई दिक्कत नहीं है.
हरीश रावत को भराड़ीसैंण
की विधानसभा राजकीय अतिथिगृह के रूप में मंजूर है पर क्वारंटीन सेंटर बनाया जाना, उन्हें अखरता है ! हाय रे मेरे भोलेपन के जॉइंट वेंचर !
भाजपा के कर-“कमल” में या कॉंग्रेस के “हाथ” रहेगा तो गैरसैंण का यही सफरनामा
रहेगा और यही नियति रहेगी - राजकीय अतिथि गृह से क्वारंटीन सेंटर तक !
-इन्द्रेश मैखुरी
4 Comments
काम ऐसे करो कि दूसरे हाथ को भी पता ना चले यही चल रहा डबल इंजन में...
ReplyDelete😀😀😀
Deleteकमाल का।लिखा है इंद्रेश।तुम कब लिख लेते हो ऐसा मारक पटन्ही नहीं चलता।waahnke सिवाय क्या कहूं
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
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