यह तस्वीर देख रहे हैं.
यह एक विज्ञापन कंपनी के प्रचार का बोर्ड हैं. लिखा है – Our Soul is Outdoors यानि ? यानि कई प्रकार के हैं,एक
यानि वो है,जो कंपनी वालों का है,एक
यानि वो जो ध्वनित होता है और भी कई कई यानि हो सकते हैं.
पहले एक आँखों देखा विवरण सुनिए. रात के तकरीबन नौ
बजे थे या फिर बजने को थे. ऐसा ही बोर्ड लगा एक बस स्टैंड था. उसके नीचे दो भले
मानुस बैठे हुए थे. भले क्यूँ हैं आगे आप खुद ही समझ जाएँगे. तो भले मानुस,घहराती रात,सुनसान सड़क और कम रौशनी के बीच खामोशी से
बैठे हुए थे. दोनों ने पर्याप्त सोशल डिस्टेन्स यानि
कोरोना काल की जो भौतिक दूरी थी,उसका पालन किया हुआ था.
डिस्टेन्स सोशल तो कतई न था,उनके बीच. सामाजिक रूप से तो
एकजुट थे दोनों ! इस दूरी के बीच व्यवस्थित तरीके से रखे हुए थे कुछ नमकीन के
पैकेट,बिसलरी की बोतल और आंतरिक
सेनिटाईजेशन हेतु पेय पदार्थ की बोतल ! दोनों शख़्स इस कदर खामोशी से आंतरिक सेनिटाईजेशन पेय को अपने शरीर के भीतर पहुंचा रहे
थे कि घूंट की आवाज़ तक बाहर नहीं आने दे रहे थे. पहली बार जाना की आंतरिक
सेनिटाईजेशन पेय और उसके साथ ग्रहण किए जाने वाले अन्य पदार्थ,इस कोरोना काल में कितनी महति भूमिका निभा रहे हैं. बिना किसी रोकटोक के,सुनसान सड़क पर आत्मा आउटडोर वाले बोर्ड के नीचे ये दो भले मानुस कोरोना
काल की निर्धारित दूरी का अनुपालन कर रहे थे,वो यह भरोसा
दिला रहा था कि भले मानुसों की प्रजाति विलुप्त नहीं हुई है अभी इस चराचार जगत से
! वरना सोचिए तो आंतरिक सेनिटाईजेशन पेय के अंतरात्मा से मिलन होने के बाद तो
आत्मा आउटडोर वाले बोर्ड के नीचे बैठे भले मानुसों की आत्मा तो आत्मा और भी क्या
कुछ बाहर नहीं आ सकता था ! डॉट-डॉट,बीप-बीप तो ट्रोल आर्मी
के कमांडरों का टी.वी. स्टुडियो में ही बाहर आ जा रहा है ! यहाँ तो हाथ में
अँग्रेजी थी और सिर के ऊपर आत्मा के आउटडोर होने का अँग्रेजी में बकायदा ऐलान करता
हुआ बोर्ड !
तो अब इन भले मानुसों को इनकी अँग्रेजी के साथ छोड़ते
हैं और इनके सिर के ऊपर जो अँग्रेजी वाला बोर्ड है,उस पर लौटते
हैं. जैसे कि पहले बताया जा चुका कि बोर्ड पर लिखा है – Our Soul is Outdoors. कंपनी
वालों का जो आशय हो वे जाने. कंपनी से या उनके आशय से हमारा कोई लेना-देना नहीं,वास्ता भी नहीं,वे संभालें अपने प्रचार और उसके “अर्थ” को.
शब्दों के अर्थ से जरूर हमारा वास्ता है. देहारादून
जैसे शहर में इंसानी शरीरों को बसाने वाले
कदम-कदम पर मिल जाते हैं. इंसानी शरीरों को बसाने वालों की सर्वव्यापता का नमूना
देखिये. एक दिन देहारादून में अपने एक साथी से मैं उसके घर मिलने गया. गाड़ी से
उतरा,सामने से थुलथुल शरीर वाले एक सज्जन नमूदार हुए,बोले-
नमस्कार जी. मैंने कहा-नमस्कार. छूटते ही बोले-जमीन चाहिए क्या ? मैं हतप्रभ कि जमीन का मामला एक अंजान व्यक्ति के साथ कहाँ से आ गया ? बशीर बद्र साहब का शेर अलग तरह
से दिमाग में कौंधा कि ये नए मिज़ाज का शहर है,फासले से मिला
करो,जमीन थमा देगा कोई तपाक से !
अब सोचिए कि जब इंसानी शरीरों को बसाने का कार्यक्रम
ऐसा द्रुत गति से चल रहा हो, तब अचानक पता चले कि आत्मा भी
आउटडोर बस रही है तो बसने-बसाने का कारोबार करने वालों की चांदी ही चांदी ! अब तक
केवल इंसानी जिस्मों को बसाने का ठेका था,अब आत्माओं को भी
बसाने का गुरुतर भार भी इनके कंधों पर ! आत्मा आउटडोर निकल ली है ना ! ज़मीनों के दाम
आसमान छू रहे हैं,आदमी बसाने को जगह पहले ही कम पड़ रही थी,अब आत्मा भी बसानी पड़ रही है ! आत्माओं का मोहल्ला अलग बसेगा जी. अफसर
आत्माओं का आउटडोर मोहल्ला,नेता आत्माओं का आउटडोर मोहल्ला,बाबू,चपरासी,माफिया और तस्कर
सबकी आत्मा आउटडोर. कारोबार-व्यवसाय में कोई दिक्कत नहीं. अंदर से कचोटे जाने का
खतरा खत्म.
आत्मा आउटडोर और उसूलपसंदी,ईमानदारी,शराफ़त सब खुद ही आउट ऑफ डोर !
वैसे भी आत्मा इनडोर रहने
से बड़ा लफड़ा है.फर्ज कीजिये कि आत्मा
इंडोर है और बिहार वाले सुशासन चचा की तरह
जाग गयी तो वह क्या गज़ब करतब दिखाती है. इसको ठेल कर, उसके पल्ले बंध गयी,जिसके बारे में कहते थे मिट्टी में
मिल जाएँगे पर इसके साथ न जाएँगे ! इनडोर आत्मा जागी,सोयी,उछली-कूदी. कुर्सी पर फेविकोल का मजबूत जोड़ अलबत्ता कायम रहा
! ऐसा अक्सर होता है कि मंत्री,विधायक,सांसद आदि की इनडोर
आत्मा उसी अवस्था में जागती है,जबकि सामने वाली पार्टी
का प्रस्ताव बड़ा और वजनदार हो. मसलन मंत्री पद,कुछ सौ करोड़
रुपया,ठेका-टेंडर अपने प्रिय चंपूओं के
वास्ते आदि-आदि ! ऐसे ऑफर सुन कर इनडोर वाली आत्मा जागती है और लपक कर आउटडोर आ
कर उसके कांधे सवार हो जाती है,जिसका ऑफर हो !
आत्मा आउटडोर रखने का फुलप्रूफ इंतजाम हो जाये तो
आदमी रखे आत्मा को कहीं आउटडोर तिजोरी में. गाहे-बगाहे धमकाने के लिए आउटडोर आत्मा
का सहारा ले-ज्यादा बोलोगे तो इनडोर ले आएंगे आत्मा को,फिर न कहना कि बात बिगड़ गयी ! अभी सौदा कर लो जब तक कि आत्मा आउटडोर है,एक बार इनडोर आ गयी,फिर कोई गारंटी नहीं !
वैसे लफंगों,शोहदों,तड़ीपारों के इस दौर में आत्मा का आउटडोर रहना ही ठीक है,
जी ! इनडोर रहती है,तो
सुलाते-सुलाते भी जागने का अंदेशा रहता है और आदमी के “लोया” होना का खतरा पैदा हो
जाता है. दीर्घायु होने के लिए इस सूत्र को कंठस्थ कर लीजिये-
उसी की गत न होगी
“लोया” !
आत्मा आउटडोर
रख कर जो हो सोया !!
-इन्द्रेश
मैखुरी
2 Comments
Now a days no concept of truth or soul today's is just business.
ReplyDeleteआंतरिक सेनेटाइजर😂🤣
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