cover

अन्याय की अंतहीन दस्तानें


मध्य प्रदेश के गुना में एक दलित दंपति को पुलिस द्वारा लात,घूसों,लाठियों से पीटे जाने की तस्वीरें और वीडियो पूरा देश देख रहा है.

   



         

         विलाप करते बच्चों की तस्वीरें दिल दहला देने वाली हैं. 





ये दलित लोग जिस जमीन पर खेती कर रहे थे,उस पर खड़ी फसल पर जे.सी.बी. चलाने के लिए प्रशासनिक अमला और पुलिस का लाव-लश्कर पहुंचा था. खड़ी फसल रौंदी जाती देख दलित दंपति ने कीटनाशक पी लिया. उनको पीटने से पुलिस का जी नहीं भरा तो उनपर अत्महत्या के प्रयास का मुकदमा भी दर्ज कर लिया. जबकि मेंटल हैल्थ केयर अधिनियम 2017 के अनुच्छेद 115 के अंतर्गत ऐसा नहीं किया जा सकता.



पुलिस का दावा है कि वे अतिक्रमण हटाने गए थे.पुलिस के अनुसार रामकुमार अहिरवार का परिवार उस जमीन पर गैरकानूनी रूप से खेती कर रहा था. ऐसे लोग जो भूमिहीन हैं,जिनके पास जीवन-यापन का कोई जरिया नहीं है,उनको क्या भूमि देने या उनके जीवन-यापन की व्यवस्था करना क्या सरकारों का काम नहीं है ? क्या सरकारी भूमि कौड़ियों के मोल सिर्फ बड़े पूँजीपतियों को ही दी जा सकती है ? 


गरीबों,भूमिहीनों,दलित,आदिवासियों को पुलिस का डंडा और अमीरों को सरकारी और गैर सरकारी ज़मीनें कौड़ियों के मोल ? यही दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र का विकास का मॉडल है ? मध्य प्रदेश में कोरोना काल के बीच विधायकों की तोड़फोड़ करके सरकार कायम की गयी. सरकार बनाने की उस व्यग्रता का लक्ष्य यही विकास का मॉडल था?


चलिये मान लीजिये कि जिन परिवारों को पुलिस घसीट रही है और पीट रही है,वे गैर कानूनी रूप से जमीन पर काबिज थे पर पुलिस जो करती नजर आ रही है,वो क्या कानूनी कार्यवाही है?




पुलिस कानून के दायरे में रह कर, अगर किसी गैर कानूनी कहे जाने वाले काम से नहीं निपट सकती तो फिर वह किसी और से उस कानून के पालन की अपेक्षा कैसे करती है ?


 अन्याय का यह सिलसिला मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है. बीते दिनों बिहार ने एक अभूतपूर्व किस्म की अदालती कार्यवाही देखी. बिहार के अररिया में एक अदालत ने सामूहिक बलात्कार की शिकार युवती को ही जेल भेज दिया. युवती 10 जुलाई को अदालत में दंड प्रक्रिया संहिता की दफा 164 के तहत बयान दर्ज कराने आई हुई थी.बताते हैं कि उसके बयान जब पढ़ कर सुनाये जा रहे थे तो बलात्कार पीड़ित युवती ने जन जागरण शक्ति संगठन की कार्यकर्ता कल्याणी को बुलाने की मांग की. जन जागरण शक्ति संगठन ने उक्त युवती की इस प्रकरण में मदद की है. इसके बाद के घटनाक्रम में बलात्कार पीड़ित युवती और  जन जागरण शक्ति संगठन की दो कार्यकर्ताओं को ही अदालत ने जेल भेज दिया. यह भारत के न्यायिक इतिहास का अनोखा मामला है,जब बयान दर्ज कराने आई बलात्कार पीड़िता ही जेल पहुंचा दी गयी !



अन्याय की ऐसी ही अजब दास्तान गोरखपुर के डॉ कफील खान की भी है. 2017 में गोरखपुर के बी.आर.डी. मेडिकल कॉलेज में इन्सेफेलाइटिस और ऑक्सिजन की कमी से कई बच्चों की मौत के बीच डॉ कफील का नाम अपने प्रयासों से ऑक्सिजन का इंतजाम करने और इलाज में स्वयं को झोंक देने के लिए नायक के तौर पर सामने आया. इस मामले में किरकिरी झेल रही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को यह बेहद नागवार गुजरा. कफील को निलंबित करके जेल भेज दिया गया. लंबे अरसे तक जेल में रहने के बाद अप्रैल 2018 में डॉ कफील हाई कोर्ट से जमानत पर रिहा हुए. सितंबर 2019 में विभागीय जांच कमेटी ने डॉ कफील को उक्त मामले में लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया. लेकिन इस वर्ष जनवरी में उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर गिरफ्तार कर लिया गया. फरवरी में डॉ. कफ़ील पर रासुका(राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगा दिया गया. मई में रासुका की अवधि को अगस्त तक बढ़ा दिया गया. अप्रैल से रासुका लगाने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की कोशिश की जा रही है पर जो मिल रहा है,वो है-तारीख पे तारीख ! डॉ.कफ़ील सरकार की खुंदक और पूर्वाग्रह का शिकार होने के चलते जेल में हैं.




ऐसी अन्याय की दस्तानें इस देश में बिखरी पड़ी हैं. ये दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने के दावे को बदरंग करने वाले पैबंद हैं,जो व्यवस्था के पहरूओं ने खुद लोकतंत्र के चेहरे पर चिपकाए हैं.


-इन्द्रेश मैखुरी

Post a Comment

0 Comments