क्या उत्तराखंड
में भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ मनाना अपराध है और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का जन्मदिन
मनाने की छूट है ? प्रश्न
यह भी हो सकता है कि उत्तराखंड सरकार और पुलिस की नजर में क्या भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का जन्म लेना अत्याधिक महत्वपूर्ण है और भारत
छोड़ो आंदोलन को याद करना दोयम ?
यह प्रश्न 09 अगस्त को देहारादून में हुए दो कार्यक्रमों और उनके
प्रति देहारादून पुलिस के रवैये के कारण उपजे हैं.
09 अगस्त 1942 को देश की आजादी के लिए गांधी जी की अगुवाई
में अंग्रेज़ो भारत छोड़ो के नारे के साथ आंदोलन के नए दौर का आगाज़ किया गया था. इस दिन
को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में पूरे देश में याद किया जाता है और विभिन्न कार्यक्रम
आयोजित किए जाते हैं.
इस 09 अगस्त को देश की केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भारत
बचाओ दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया था. यह आह्वान इसलिए किया गया था क्यूंकि
केंद्र की मोदी सरकार रेलवे,बैंक,बीमा,कोयला खदान,रक्षा,दूरसंचार,हवाई अड्डे समेत तमाम राष्ट्रीय महत्व के सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों
में सौंपने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है.
ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय आह्वान के तहत देहारादून
में दीनदयाल उपाध्याय पार्क में धरना दिया गया.
लेकिन देहारादून की पुलिस को यह धरना
बेहद नागवार गुजरा और उसने सीटू के महामंत्री कॉमरेड लेखराज,इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट, भाकपा के राज्य
सचिव कॉमरेड समर भंडारी समेत 28 लोगों के खिलाफ
मुकदमा दर्ज कर दिया.
इसी कार्यक्रम के समानांतर एक कार्यक्रम देहारादून के
ऐन बीचों-बीच यानि घंटाघर पर हो रहा था. यहाँ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के
जन्मदिन के मौके पर भाजपाई इकट्ठा हुए और केक काटा,माइक पर भाषण
दिये,सब एक दूसरे से सट कर खड़े थे.
पर यहाँ कोई मुकदमा दर्ज नहीं
हुआ. पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर का बड़ा मासूम बयान अखबार में छपा है कि घंटाघर के कार्यक्रम
के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं है और न ही कोतवाली में कोई सूचना आई. जहां
पर हर समय पुलिस मौजूद रहती है,वहाँ पर बेचारी पुलिस को पता ही
नहीं चल सका कि कोई कार्यक्रम हो रहा था ! इस भोलेपन पर निसार होने को जी चाहता है
!
दो कार्यक्रमों के प्रति पुलिस के नजरिए से लगता है कि
भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ का कार्यक्रम उनके लिए फिजूल का है और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष
का जन्मदिन अत्याधिक महत्व का है. यह धारणा भी उसी भोलेपन की एक और बानगी है,जिसका विवरण ऊपर दिया जा चुका है !
वैसे यह पहले मौका नहीं है,जब कि पुलिस कार्यवाही में ऐसे दोहरे मानदंड अपनाए गए हैं. कोरोना काल में
यह चलन बन गया है कि सत्ता पक्ष पर कोई कार्यवाही नहीं होगी और अन्य लोगों पर तत्काल
मुकदमा दर्ज होगा. उत्तराखंड में पुलिस के इस दोहरे रवैये को देख कर प्रश्न उठता है
कि क्या उत्तराखंड में अलग-अलग राजनीतिक
संबद्धता के लिए अलग-अलग आई.पी.सी, सी.आर.पी.सी और महामारी
अधिनियम,त्रिवेंद्र रावत जी की सरकार द्वारा तैयार करा लिया
गया है ? इनमें एक सेट कानून ऐसा है,जो
सत्ता पक्ष के लिए है,जिसमें कुछ भी करने की खुली छूट है और
कानून का दूसरा सेट अन्य पक्षों के लिए है,जिसमें किसी बात
के लिए तत्काल मुकदमा दर्ज करने का प्रवाधान है ? या
उत्तराखंड सरकार और पुलिस की ऐसी समझदारी
है कि सत्ता पक्ष लोग कोरोना-प्रूफ हैं ?
भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ के कार्यक्रम को भाजपा प्रदेश
अध्यक्ष के जन्मदिन से कमतर हम तो नहीं समझ सकते और हर मोर्चे पर संघर्ष करने वाले,कानून लागू करने के इस दोहरे रुख से भी संघर्ष करने में पीछे तो हटने से रहे
!
-इन्द्रेश मैखुरी
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उफ्फ
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