पहले
एक किस्सा सुनिए. सोशल मीडिया में एक विवाद हो गया. आजकल वाद-संवाद-विवाद सब सोशल मीडिया
में ही हो रहा है. तो ऐसा ही विवाद हुआ. एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर
कह दिया.यह बहुत कम लोगों को पता चला. पर जिसके बारे में कहा गया,उसे
लगा कि सोशल मीडिया में कहे जाने से सारी दुनिया को पता लगा गया है कि उसके बारे में
ऐसा कहा गया है ! फिर
क्या था ! दूसरे व्यक्ति का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया. उसने पहले दिन, सोशल मीडिया में लिखा “फलाने
ने मुझे चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर
कहा,मैं उसे छोड़ूंगा नहीं,उसके खिलाफ पुलिस
में रिपोर्ट लिखवाऊंगा.” अगले दिन फिर स्टेटस अपडेट किया : “फलाने ने मुझे
चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर कहा,मैं
उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने जा रहा हूँ.” शाम को लिखा “फलाने ने मुझे चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर कहा,मैंने
उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.” अगली सुबह पुनः स्टेटस अपडेट हुआ, “फलाने
ने मुझे चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर कहा,मैं उससे बहुत नाराज हुआ,मैंने उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. लेकिन सब मुझसे कह रहे हैं कि मैं
उसे माफ कर दूँ और रिपोर्ट वापस ले लूं.” अगले दिन का स्टेटस अपडेट, “फलाने
ने मुझे चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर
कहा,मैंने उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पर मेरी पत्नी और
बाकी सब कह रहे हैं कि मैं रिपोर्ट वापस ले लूं. तो मैं रिपोर्ट वापस लेने जा रहा हूँ.”
और इस सीरीज़ का आखिरी स्टेटस अपडेट था, “फलाने ने मुझे चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर कहा,मैंने
उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कारवाई. पर सब ने मुझसे कहा कि रिपोर्ट वापस ले लो. मैंने
रिपोर्ट वापस ले ली पर अभी भी मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ है,आखिर फलाने ने मुझको चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर कैसे कह दिया !”
इस कथा
का सार क्या है ? सार यह है कि फलाने ने तो एक बार अलाने को चिरकुट-चंपू-टुकड़खोर कहा,लेकिन अलाने
ने फलाने की इस उपमा को दोहरा-दोहरा कर कई बार कहा,बार-बार कहा और उपहास का पत्र बना.
ऐसा ही प्रशांत भूषण मामले में सुप्रीम कोर्ट में हो गया.
प्रशांत भूषण ने एक बार ट्वीट किया और अंग्रेजी में किया हुआ ट्वीट तो अंग्रेजी बोलने-बतियाने
वाले दायरे में ही रहता और बात आई-गयी हो जाती. पर जैसे ही अवमानना का चर्चा हुआ,वैसे ही चर्चा शुरू हुई कौन सा ट्वीट ? फिर ट्वीट का
हिन्दी अनुवाद भी आ गया. बाइक वाले कई कार्टून भी बन गए और वे निरंतर प्रसारित भी हो
रहे हैं. अवमानना के मामले में ट्विटर इंडिया को उच्चतम न्यायालय ने बरी कर दिया क्यूंकि
ट्विटर ने तर्क दिया कि अदालत के संज्ञान लेने के बाद उसने ट्वीट निलंबित कर दिया है.
ट्वीट निलंबित है और उसका स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया में लगातार घूम रहा है.उच्चतम न्यायालय
चूंकि मामले की सुनवाई कर रहा था तो ट्वीट का फैसले में उद्धरित होना स्वाभाविक ही
था. कम से कम दो बार दोनों ट्वीट प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी करार देने वाले फैसले
में उद्धरित हैं. इंतहा तो
यह हो गयी कि कल सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल
ने तक वही बात कह दी,जिस बात के लिए प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी करार दिया जा चुका है. अटॉर्नी
जनरल ने सुनवाई के दौरान कहा कि उनके पास उच्चतम न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की सूची
है,जिन्होंने कहा था कि उच्चतम न्यायालय में लोकतंत्र विफल हो
गया.उन्होंने कहा कि उनके पास सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के बयानों के उद्धरण हैं,जिनमें कहा गया कि ऊपरी न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है. यह प्रशांत भूषण के
दूसरे ट्वीट को सही ठहराना ही तो है.
अटार्नी जनरल ने तो यहाँ तक कहा कि प्रशांत भूषण को सजा
नहीं दी जानी चाहिए क्यूंकि उन्होंने जनहित के बहुत से काम किए. इस पर न्यायमूर्ति
दीपक मिश्रा ने कहा कि आप बहुत सारे अच्छे काम कर रहे हो, यह तथ्य आपकी गलती को तटस्थ नहीं कर देता. परोक्ष रूप से यह प्रशांत भूषण
के अच्छे कामों की स्वीकारोक्ति तो है.
अवमानना का दोषी करार देने के बाद उच्चतम न्यायालय
ने प्रशांत भूषण को दो दिन का वक्त दे दिया,विचार करने के लिए. प्रशांत भूषण अपनी बात पर दृढ़ता
से कायम हैं कि उन्होंने जो कहा,वैसा कहना उनका आवश्यक नागरिक कर्तव्य था. जो बातें ट्विटर पर आई गयी हो गयी
थी,अब देश-दुनिया में उन पर चर्चा हो रही है. सिर्फ वकील,लोकतंत्र पसंद नागरिक ही नहीं सेवानिवृत्त न्यायाधीश भी लामबंद हो रहे हैं
कि प्रशांत भूषण के खिलाफ मामला चलाना गलत है. तीन न्यायाधीशों की बेंच के फैसले के
विरुद्ध वकील,पूर्व न्यायाधीश एकजुट हो जाएँ और अटॉर्नी जनरल
भी अवमाननाकारी बताए गए ट्वीट का समर्थन कर दें तो अब कोर्ट इस प्रकरण में ज्यादा “स्कैंडलाइज” नहीं हो गया ? क्या सेल्फ-गोल करा बैठे, मी लॉर्ड ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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