इन प्रश्न पर गौर करने से पहले जान लेते हैं कि ब्रिटिश
पत्रिका-प्रोस्पेक्ट द्वारा घोषित दुनिया के 50 शीर्ष बुद्धिजीवियों में पहला स्थान
पाने वाली यह भारतीय महिला कौन है. इनका नाम
है- के.के. शैलजा,ये टीचर के नाम से भी जानी जाती हैं और
ये केरल में माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं.
पत्रिका ने कोरोना से निपटने में शैलजा की दूरदर्शिता
का जिक्र करते हुए लिखा है- “ जनवरी में जब कोविड 19 अभी चीन का मसला ही था,तब उन्होंने न केवल उसके अवश्यंभावी आगमन का अंदाजा लगा लिया था,बल्कि उसके परिणामों का भी आकलन उन्होंने कर लिया था.” पत्रिका ने लिखा कि
डबल्यूएचओ की ‘टेस्ट,ट्रेस,आइसोलेट’ नीति को उन्होंने राज्य में बखूबी लागू किया.
शारीरिक दूरी के सिद्धान्त को आधिकारिक बैठकों से लेकर अपने घर परिवार तक शैलजा ने
कड़ाई से लागू किया. प्रोस्पेक्ट ने लिखा कि केरल में कोरोना से मौतें ब्रिटेन के मुक़ाबले
एक प्रतिशत हैं.
पत्रिका ने इस बात का भी उल्लेख किया कि 2018 में निपाह
वाइरस के हमले का भी शैलजा की अगुवाई में केरल ने कुशलता पूर्वक मुक़ाबला किया था और
इस पर एक फिल्म-वाइरस- भी बनी थी.
प्रोस्पेक्ट पत्रिका के लेख का लिंक :
https://www.prospectmagazine.co.uk/magazine/the-worlds-top-50-thinkers-2020-the-winner
पत्रिका ने अपने पचास विजेताओं का वर्णन करते हुए लिखा
कि “हमारे जो टॉप दस हैं वे कोविड 19 काल के व्यावहारिक दिमाग के विचारक हैं और उनमें
जो विजेता हैं,वे सर्वाधिक व्यावहारिक हैं.”
हालांकि यह पहला मौका नहीं है,जबकि कोरोना से निपटने के केरल मॉडल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया
गया है. इस वर्ष 23 जून को संयुक्त राष्ट्र
संघ द्वारा सार्वजनिक सेवा दिवस के मौके पर जन सेवक कोरोना योद्धाओं को सम्मानित करने
के समारोह में के.के.शैलजा को वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया गया था. इस समारोह में
भारत से वे एकमात्र आमंत्रित थीं.
दुनिया के तमाम प्रमुख समाचार माध्यमों- बीबीसी,न्यू यॉर्क टाइम्स, गार्जियन आदि में कोरोना से निपटने
में केरल की सफलता की निरंतर चर्चा होती रही है. यदि कहीं इस पर चुप्पी है तो वह भारत
में बरती जा रही है. भारत के मुख्यधारा के समाचार माध्यम कोरोना से निपटने के अन्य
विफल मॉडलों को विज्ञापनी चमत्कार से सफल घोषित करते रहते हैं. लेकिन कोरोना से निपटने
के लिए समग्र रणनीति अपना कर सफलता हासिल करने वाले केरल का नाम वे किसी सूरत में अपने
लबों पर नहीं लाना चाहते. इसकी वजह विशुद्ध रूप से राजनीतिक है. कम्युनिस्टों को झूठ-सच गढ़ कर निरंतर लांछित करने
वाली राजनीति की गाड़ी पर हमारे समाचार माध्यम भी सवार
हैं. इसलिए उन्हें आशंका है कि यदि केरल की तारीफ कर दी तो कम्युनिस्टों के विरुद्ध
रात-दिन एक करके जो झूठ के किले बनाए हैं,वे सब भरभरा कर गिर पड़ेंगे ! इस वैचारिक द्वेष और
दुराग्रह का नतीजा है कि गर्व करने के नकली अवसरों की तलाश में रहने वाले,ऐसे मौके पर मुंह सी कर बैठे हैं,जब देश के एक राज्य
के कोरोना से लड़ने के मॉडल की दुनिया निरंतर प्रशंसा कर रही है. यह वैचारिक द्वेष और
दुराग्रह न होता तो इस बात पर खुश हुआ जा सकता था कि हमारे देश के एक राज्य की स्वास्थ्य
मंत्री, एक अन्य देश न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री को पछाड़ कर पहले
नंबर पर आई हैं. सकारात्मक राजनीति का तक़ाज़ा तो यह है कि देश में बढ़ते कोरोना के कहर
से निपटने के लिए दुनिया भर में प्रशंसा पा रहे,इस राज्य के अनुभव
की मदद ली जाए.
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
जिस देश में एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को छोड़ देना उपलब्धि की तरह पेश किया जाता है वहां कोई महिला आगे बढ़ तो चुप्पी लाजिमी है बाकी अनुभव वो अपने वालों से नहीं लेते हैं ये तो तब भी दूसरे दल से हैं
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