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रेल में मरने वालों की संख्या ज्ञात पर मुआवजा नहीं !

 


अभी कुछ दिन पहले की बात है,जब संसद में केंद्र सरकार ने कह दिया कि उसे लॉकडाउन में मरने वाले मजदूरों की संख्या के बारे में कुछ नहीं पता. ऐसे ही बहुत सारे सवालों के बारे में सरकार यही कहती रही कि उसे नहीं पता !


 

सरकार को क्या-क्या नहीं पता,यह पता लगाने के लिए यह लिंक को क्लिक कीजिए  :


https://www.nukta-e-najar.com/2020/09/government-does-not-know-anything-.html




 

लेकिन गनीमत है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में मरने वालों के बारे में मोदी जी के रेल मंत्री ने ऐसा नहीं कहा कि उन्हें नहीं पता कि कितने लोग मरे या फिर सरकार की जवाब देने की जो खास शैली है, उसका इस्तेमाल नहीं किया. उस शैली में सरकार संसद में पूछे जाने वाले सवालों को एक लाइन में यह कह कर हवा में उड़ा देती है कि “ केंद्रीय स्तर पर इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता.” बस यह एक लाइन मंत्री उठ कर बोल देते हैं और सारे सवाल अपनी मौत आप ही मर जाते हैं !


श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के मामले में सरकार ने सवालों के खात्मे का यह अचूक नुस्खा नहीं आजमाया,यह राहत की बात है. पर इस मामले में भी सरकार ने संख्या बात कर ही हाथ झाड़ लिए.

21 सितंबर को लोकसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि लॉक डाउन के दौरान राज्य सरकारों के अनुरोध पर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें संचालित की गयी. इससे रेलवे ने राज्य सरकारों से 433 करोड़ रुपया किराया वसूल किया.  रेल मंत्री ने अपने जवाब में कहा कि इन ट्रेनों के परिचालन में रेलवे को आर्थिक हानि हुई पर यह हानि कितनी है,यह उन्होंने नहीं बताया.



इसी तिथि पर एक अन्य अतारांकित प्रश्न के उत्तर में रेल मंत्री ने बताया कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 97 मौतें हुई. इनमें से 87 मामलों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भेजा.




क्या इन मौतें के लिए कोई मुआवजा दिया गया ? इस संदर्भ में रेल मंत्री ने दिलचस्प जवाब दिया. उन्होंने बताया कि रेल में मृत्यु और घायल होने के मामले में मुआवजे का प्रावधान है. मृत्यु के मामले में अधिकतम आठ लाख रुपया और घायल होने की स्थिति में 64000 रुपये से 08 लाख रुपये तक का मुआवजा,रेलवे द्वारा दिए जाने का प्रवाधान है. तो क्या मरने वाले 97 लोगों को मुआवजे का भुगतान हुआ ? इस संदर्भ में रेल मंत्री ने कहा कि किसी ने क्षतिपूर्ति के लिए कोई दावा ही दाखिल नहीं किया तो इसलिए कोई मुआवजा नहीं दिया गया !



हुजूर मंत्री जी,रेल में जो मरे वो साधारण मजदूर थे. उनके कुछ भाई बंधु तो रेल के नीचे कट कर मरे. अब ये साधारण मजदूर और उनके परिजन क्या जाने कि मरने का मुआवजा हासिल करना भी इतना पेचीदा तकनीकि मामला है ! मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले और मजदूरी के अवसरों के लॉकडाउन होने के चलते हैरान-परेशान ये हतभागे मजदूर कहाँ जानते थे कि यदि मर गए तो उससे पहले उन्हें या उनके परिजन को अंग्रेजी दां रेल मंत्री की तरह “रेल अधिनियम, 1989 क धारा 123 के साथ पठित धारा 124 और 124ए” जाननी होगी ताकि उनके मरने की दशा में मुआवजे का दावा लगाया जा सके और मुआवजा पाया जा सके !



बलिहारी है सरकार आपकी और आपकी संवेदनहीनता की !


-इन्द्रेश मैखुरी   

 

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