2002 में लॉर्ड्स के मैदान पर नैटवेस्ट ट्रॉफी का फ़ाइनल मैच क्रिकेट के चाहने वालों को भारत की इंग्लैंड पर दो विकेट से जीत के लिए तो याद रहता ही है,यह मैच इसलिए भी याद किया जाता है क्यूंकि मैच जीतने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली ने जीत का जश्न मनाने के लिए बेहद आक्रामक अंदाज चुना. सौरव गांगुली ने लॉर्ड्स की बाल्कनी में खड़े हो कर अपनी कमीज उतार कर लहरा दी. एक कप्तान का यह आक्रामक अंदाज दुनिया भर में क्रिकेट के चाहने वालों के बीच खासा चर्चा का विषय बना था.
2002 के कप्तान सौरव गांगुली, आजकल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष हैं. अब वे लॉर्ड्स के मैदान
वाली आक्रामकता के साथ नहीं बल्कि वर्तमान सत्ता प्रतिष्ठान के साथ सामंजस्य बैठा कर
भारतीय क्रिकेट के प्रशासकीय बोर्ड के सर्वोच्च पद पर हैं. गौरतलब है कि गांगुली उसी
बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं,जिसके सचिव पद पर गृह मंत्री अमित शाह
के बेटे जय शाह, एक दिन भी गेंद-बल्ले को हाथ लगाए बिना ही काबिज
हो गए !
तो गांगुली के मुंह से आक्रामकता छोड़िए,सही और गलत की स्थिति में सही के पक्ष में कमजोर आवाज सुनने की अपेक्षा भी
करना अतिशयोक्ति होगा. पिछले साल सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जामिया मिलिया
इस्लामिया विश्वविद्यालय,नयी दिल्ली की लाइब्रेरी पर पुलिस हमले
के बाद जब उनकी बेटी सना गांगुली ने अंग्रेजी लेखक खुशवंत सिंह की किताब- एंड ऑफ इंडिया-
का एक अंश अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया तो घबराए गांगुली ने उस पोस्ट को ही
फर्जी करार दे दिया और कहा कि उनकी बेटी बहुत छोटी है,उसे राजनीति
में न घसीटा जाये. उनकी बेटी 18 वर्ष की उम्र पूरी कर चुकी थी और इस तरह पोस्ट करते
वक्त बालिग थी.
लेकिन आजकल भारतीय क्रिकेट के एक और पूर्व कप्तान हैं
जो क्रिकेट में भ्रष्टाचार,मनमानी और परिवारवाद को खुलेआम चुनौती
दे रहे हैं. उन पूर्व कप्तान का नाम है- बिशन सिंह बेदी, एक समय
में इरापल्ली प्रसन्ना, बीएस चन्द्रशेखर के साथ भारतीय स्पिन
आक्रमण के प्रमुख गेंदबाज रहे हैं.वे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान और कोच भी रहे हैं.
बेदी की पहचान बेबाक बयान देने वाले व्यक्ति के रूप में रही है.
बीते दिनों जब दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन(डीडीसीए)
ने फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम का नाम दिवंगत
अरुण जेटली के नाम पर करने और फिर उक्त मैदान में जेटली की मूर्ति लगाने का ऐलान किया
तो इस फैसले के खिलाफ बिशन सिंह बेदी खुल कर खड़े हो गए. डीडीसीए के वर्तमान अध्यक्ष
और दिवंगत अरुण जेटली के पुत्र रोहन जेटली को लिखे पत्र में बिशन सिंह बेदी ने लिखा
कि डीडीसीए में अरुण जेटली का कार्यकाल भ्रष्टाचार
से भरा हुआ था. कोष में भारी धांधली के मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं. अपने एक ट्वीट
में बेदी ने लिखा कि पिछले 5 साल में अपने भीतर की मुक़दमेबाज़ी में डीडीसीए 15 करोड़
रुपये खर्च कर चुका है,खिलाड़ियों पर इतने पैसे कभी नहीं खर्च
किए गए. डीडीसीए में अरुण जेटली के काल में व्याप्त भ्रष्टाचार पर तंज़ करते हुए अपने
पत्र में बेदी कहते हैं कि असफलताओं को भुला दिया जाना चाहिए,मूर्तियाँ बनवा के उनका जश्न नहीं मनाया जाना चाहिए.
उन्होंने अपने
पत्र में उदाहरण सहित लिखा कि दुनिया भर में स्टेडियम में खिलाड़ियों की मूर्तियाँ लगाने
की परंपरा है. क्रिकेट प्रशासकों की जगह उनके “ग्लास केबिनों के भीतर है.” उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि
यह समझने की जरूरत है कि खेल प्रशासक,स्वयं की सेवा करने वाले
लोग नहीं होने चाहिए. वे लिखते हैं कि यदि जेटली काबिल राजनेता थे तो उनकी मूर्ति संसद
में लगनी चाहिए,क्रिकेट स्टेडियम में नहीं.
इन तमाम बातों के साथ बिशन सिंह बेदी ने लिखा कि चूंकि
डीडीसीए क्रिकेट की विश्वव्यापी संस्कृति को ही नहीं समझता,इसलिए वे(बेदी) खुद को उसकी सदस्यता से अलग कर रहे हैं और वे चाहते है कि उक्त
स्टेडियम के एक स्टैंड का नाम जो उनके नाम पर किया गया था,उससे
उनका नाम हटा दिया जाये. गौरतलब है कि फिरोज़शाह कोटला के एक स्टैंड का नाम 2017 में
बिशन सिंह बेदी और मोहिंदर अमरनाथ के नाम पर किया गया था.
बिशन सिंह बेदी के पत्र का लिंक:
23 दिसंबर को भेजे इस पत्र के बाद डीडीसीए की तरफ से कोई
प्रतिक्रिया न आने के बाद बेदी ने कल फिर डीडीसीए के अध्यक्ष रोहन जेटली को पत्र लिख
कर कहा कि यदि उनका(बेदी का) नाम स्टैंड से नहीं हटाया गया तो वे कानूनी कार्यवाही
करने को बाध्य होंगे. बेदी ने लिखा कि वे एक दिन क्या एक मिनट के लिए भी ऐसे स्टेडियम
का हिस्सा नहीं रहना चाहेंगे,जिसमें ऐसे व्यक्ति की मूर्ति लगी
हो जिसने क्रिकेटीय मूल्यों का क्षरण किया हो. डीडीसीए अध्यक्ष पर टिप्पणी करते हुए बेदी ने लिखा
है कि वे इस पद पर सिर्फ अपने परिवार के कारण हैं और उनकी खामोशी उस अपराधबोध को भी
प्रदर्शित करती है. बेदी ने कहा कि वे उनसे(जेटली से) किसी हित की फरमाइश नहीं कर रहे हैं बल्कि सिर्फ इतना
चाहते हैं कि उनकी क्रिकेटीय सत्यनिष्ठा अक्षुण्ण रहे.
एक जमाने में लॉर्ड्स में कमीज लहराने वाले गांगुली भले
ही इस समय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष हैं पर क्रिकेट प्रशासन और क्रिकेटीय
मूल्यों के मसले पर वे खामोशी ही बरते हुए हैं. ऐसे में 74 साल के बिशन सिंह बेदी ने
जिस दमखम के साथ क्रिकेट और उसके मूल्यों के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद की है,उसे देख कर कहा जा सकता है कि असल ज़िंदगी में गलत के खिलाफ कमीज ही नहीं परचम
भी बिशन सिंह बेदी ही लहरा रहे हैं.
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
मशहूर क्रिकेटर स्वर्गीय श्री जेटली जी को श्रद्धांजलि 😃
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