समी अहमद द्वारा टू सरकल्स.नेट पर लिखित अंग्रेजी लेख
का हिन्दी अनुवाद
मूल अंग्रेजी लेख का लिंक :
बिहार
: 51 वर्षीय गोपाल रविदास अपनी कानून
की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके,लेकिन अब वे बिहार विधानसभा में कानून
निर्माता हैं.
एक रेलवे कुली और दाई के बेटे,गोपाल अपने काम से बहुत नहीं कमा पाते हैं. उनकी पार्टी-भारत की
कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी)लिब्रेशन से उनको
कुछ मदद मिलती है. उनकी पत्नी कमलावती देवी एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं.
अभी हाल-हाल तक गोपाल बकरियां पालते थे. 2015 के अपने
चुनावी शपथ पत्र में उन्होंने चल संपत्ति के तौर पर 06 बकरियों का भी उल्लेख किया
था. बकरियां बढ़ कर 17 हो गयी थी,लेकिन गोपाल को उन्हें बेचना पड़ा
क्यूंकि राजनीति में सक्रियता के चलते वे बकरियों का ध्यान नहीं रख पा रहे थे और
उनमें से कुछ मर गयी.
वे अनुसूचित जाति से हैं,जिन्हें आम तौर पर दलित कहा जाता है. वे उसी जाति से हैं,जिस जाति से बसपा प्रमुख मायावती हैं. 1987 में उन्हों बीए किया और एलएलबी
में प्रवेश लिया पर गरीबी के चलते उसे पूरा नहीं कर सके.
वे वामपंथी छात्र राजनीति में शामिल हुए और फिर
इंडियन पीपल्स फ्रंट (आईपीएफ़) के सदस्य बन गए. आईपीएफ़ के भंग होने और भारत की
कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के खुली पार्टी के
रूप में सामने आने के बाद वे पार्टी में सक्रीय हो गए.
पटना जिले में अपने गृह विधानसभा क्षेत्र मसौढी से
उन्होंने चुनाव लड़ा और 2010 और 2015 में 10 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट प्राप्त करके
वे तीसरे नंबर पर रहे. उनकी पार्टी ने इस बार पटना से लगे फुलवारी शरीफ से उन्हें
चुनाव लड़वाया. इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता बड़ी तादाद में हैं.
प्रसिद्ध इमारत-ए-शरिया, फुलवारी शरीफ में स्थित है और
खानख़्वाह मुजीबिया भी यहीं स्थित है. तीसरी बार चुनाव लड़ते हुए गोपाल रविदास ने यह
सीट जीत ली. उन्हें 91124 वोट मिले जो कुल मतों का 43.57 प्रतिशत है.
गोपाल रविदास और उनके पार्टी के सदस्य फुलवारी शरीफ
के इलाके में सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलन में काफी सक्रीय थे.
गोपाल ने अपना चुनाव
अभियान “आम चंदे” से संचालित किया. बैंक से ऋण ले कर खरीदी गयी मोटर साइकल से
घर-घर जा कर उन्होंने अपने और अपनी पार्टी के लिए समर्थन की अपील की. मोटर साइकल
खरीदने के लिए लिए गए कर्ज में से पिछले पांच साल में उन्होंने 5000 रुपये चुका
दिये हैं और 27000 रुपये चुकाए जाने बाकी हैं. उनकी कुल संपत्ति 1.6 लाख है,जिसमें 630 वर्ग फीट का मकान भी
शामिल है.
भाकपा(माले) के राज्य
सचिव कॉमरेड कुणाल कहते हैं कि गोपाल रविदास आम जनता के नेता हैं. जहां कहीं भी
अन्याय की बात सुनते हैं,वहाँ
दौड़ पड़ते हैं. गरीबों के बीच उनके काम को देखते हुए उन्हें अखिल भारतीय खेत एवं
ग्रामीण मजदूर सभा का बिहार राज्य सचिव बनाया गया है. वे कई और मजदूर यूनियनों से
भी जुड़े हैं,जैसे कि ऑटोरिक्शा यूनियन आदि.
भाकपा(माले) के वरिष्ठ
नेता के.डी यादव कहते हैं कि “गोपाल का इलाके के अल्पसंख्यक समुदाय से जीवंत
संपर्क है.”
गोपाल कहते हैं कि
फुलवारी शरीफ सूफ़ी संतों की भूमि है परंतु यह अभी भी अविकसित है.
गोपाल यह भी कहते हैं
कि ट्रेफिक जाम इस इलाके में बड़ी समस्या है और इस कारण लोगों को एक जगह से दूसरी
जगह जाने में घंटों लग जाते हैं. उन्होंने कहा कि वे इस समस्या का हल निकालने की
कोशिश करेंगे.
नशूर
अजमल कहते हैं कि महागठबंधन में होने के चलते भी गोपाल की राह आसान हो गयी. नशूर
जो कि एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं,कहते हैं कि “वो(गोपाल) गरीबों के बीच काम करते
हैं और पैदल ही मेरे मोहल्ले में वोट मांगने आए थे.” उन्हें भरोसा है कि गोपाल
लोगों के लिए काम करेंगे क्यूंकि उनकी पार्टी जो कहती है,वो करती है. उन्हें उम्मीद है कि
भेदभावपूर्ण सीएए के मसले को बिहार विधानसभा में उठाएंगे.
लक्ष्मण पासवान फुलवारी
विधानसभा क्षेत्र के रानीपुर इलाके के रहने वाले हैं जो इलेक्ट्रिशियन का काम करते
हैं. वे “तीन तारीख को तीन तारा” के नारे के साथ काफी सक्रीय थे. तीन तारीख यानि
तीन नवंबर जो कि मतदान की तिथि थी और तीन तारा यानि चुनाव चिन्ह. वे खुश हैं कि
उनका उम्मीद्वार जीता और उम्मीद करते हैं कि उनका उम्मीद्वार क्षेत्र के विकास के
लिए काम करेगा. उनका कहना था कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जो कुछ
सांप्रदायिक खटास यहाँ पैदा हुई है,उसके मद्देनजर गोपाल दोनों समुदायों के बीच पुल का
काम कर सकते हैं.
मोहम्मद मसूद रजा, गोपाल रविदास के पड़ौसी हैं और
उन्हें बचपन से जानते हैं. वे गोपाल की साधारण जीवन शैली और लोगों की मदद करने की
तत्परता के कायल हैं. मसूद कहते हैं कि गोपाल एक अच्छे विद्यार्थी थे पर उनकी
पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी. उनके भाई रामचन्द्र रविदास अभी भी मजदूरी करते हैं.
फुलवारी शरीफ के
निवासियों को अपने नवनिर्वाचित विधायक से काफी अपेक्षाएं हैं.
गोपाल कहते हैं कि पहले
इस क्षेत्र में आधा दर्जन फेक्ट्रियां थी पर अब केवल एक चल रही है. “मैं नयी
फेक्ट्रियों की स्थापना के लिए काम करूंगा ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके.
रोजगार के लिए राज्य स्तर पर बिहार विधानसभा में
भी मैं संघर्ष करूंगा,” वे कहते हैं और यह भी जोड़ते हैं “भाजपा ने बिहार
में बेरोजगारों के लिए 19 लाख रोजगार का
वायदा किया था.”
गोपाल कहते हैं,वो और उनकी पार्टी इस मसले को
विधानसभा में उठाएंगे और अगर सरकार नहीं मानी तो सड़क से सदन तक की लड़ाई, सदन से सड़क तक के आंदोलन में तब्दील होगी.
अनुवाद- इन्द्रेश
मैखुरी
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