आज 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस है. किसान दिवस पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की याद में मनाया जाता है. हर बार की तरह, इस बार भी किसान दिवस की सरकारी रस्म अदायगी के तहत प्रधानमंत्री और अन्य सत्तासीनों ने किसान दिवस पर बधाई संदेश और अन्नदाताओं के आभार के संदेश जारी किए हैं. लेकिन इस बार का किसान दिवस उस ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बीच में आया है जो देश की सत्ता के नाभिस्थल को लगभग महीने भर से घेरे हुए है और सत्ता को कठपुतली की तरह नचाने वालों पर निशाना साधे हुए है.
यह सही मायने में किसान दिवस है, बल्कि पिछले एक
महीने से किसान आंदोलन, हर दिन को किसान दिवस बनाए हुए है. देश की महाशक्तिशाली
सत्ता और उसके 56 इंची मुखिया के हालत,उस आंदोलन के सामने “साँप-छछूंदर” हुई पड़ी है ! अफवाहबाजी और तमाम दुष्प्रचार को धता बताते हुए किसान
कड़कड़ाती ठंड के बीच मुस्तैदी से डटे हुए हैं.
प्रचंड बहुमत के घमंड में चूर केंद्रीय सत्ता को किसान
आंदोलन ने इस हाल में ला दिया है कि नाममात्र के विपक्ष वाली संसद के शीतकालीन सत्र
पर ताला लगा कर प्रधानमंत्री गुरुद्वारे में शरणागत हो गए हैं. किसान आंदोलन ने ही
प्रचंड बहुमत के मद में उन्मत्त सत्ता को यह बताया कि बहुमत के दम पर, बहुमत देने वाली जनता की उपेक्षा नहीं की जा सकती. असल ताकत बहुमत में नहीं
बल्कि बहुमत देने वाली जनता में है.
मोदी शासन के छह साल में पहली बार है कि वार्ता करने का
इच्छुक होने और अत्याधिक विनम्रता का प्रदर्शन, उस सरकार को करना पड़
रहा है,जो अन्यथा की स्थिति में चरम दंभ और अहंकार से भरी हुई
है. पिछले छह साल में हर आंदोलन के हिस्से केवल दमन आया,वार्ता
का प्रस्ताव तो कतई नहीं आया. लेकिन दमन के तमाम हथकंडों के बीच किसान आंदोलन है,जिससे वार्ता की गयी और अभी भी वार्ता की गुहार निरंतर की जा रही है. 08
दिसंबर को किसानों के अखिल भारतीय बंद के आह्वान की शाम को स्वयं गृह
मंत्री अमित शाह किसानों से वार्ता करने के प्रस्ताव के साथ उपस्थित हुए. जब अमित शाह
के बैठक में वर्चुअल तौर पर उपस्थित रहने की बात हुई तो अखिल भारतीय किसान महासभा और
पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष रुलदु सिंह मानसा बैठक से उठ कर बाहर आने लगे. मजबूरन
अमित शाह को बैठक में सशरीर उपस्थित होना पड़ा. यह किसान आंदोलन की ही ताकत है कि वार्ता
में किसान नेता अपनी शर्तों के साथ थे, किंचित मात्र भी अमित
शाह के दबाव में न आते हुए,वे अपनी मांगों पर डटे रहे और जरा
भी नहीं झुके. अपने अहम पर किसान आंदोलन की यह चोट अमित शाह आसानी से नहीं भूल पाएंगे
!
एक ताकतवर सत्ता के दमन के दांवों का मुक़ाबला जिस तरह
किसानों ने किया है,वह अभूतपूर्व है. सत्ता ने राष्ट्रीय राजमार्ग
खुदवा दिये, भारी भरकम बेरिकेड और तारबाड़,ऐसे लगवा दी गोया अपने किसानों से नहीं विदेशी आक्रांताओं से मुक़ाबिल हो,किसानों पर पानी की बौछारें चलवायी गयी. किसानों खुदे हुए राजमार्ग को फांद
गए,भारी शीत में भी पानी की बौछारों को सीने पर झेल गए और भारी
भरकम बैरिकेडों के टुकड़े कर, उन्होंने चूल्हे बना दिये !
किसानों की राह में खड्डे खुदवाने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री
मनोहर लाल खट्टर को बीते रोज अंबाला में किसानों के प्रचंड विरोध का सामना करना पड़ा.
सत्ताधारी पार्टी लड़ते किसानों के बजाय दूसरे किसानों की तलाश में देश भर में भटक रही
है. पर किसानों की खुशहाली के विज्ञापन में
तक उस किसान का फोटो लग रहा है जो दिल्ली में कृषि क़ानूनों के खिलाफ संघर्ष में डटा
हुआ है ! सत्ता की गोद में बैठे मीडिया के दुष्प्रचार को अपने ट्रैक्टर- ट्रॉलियों के पहियों तले कुचलते हुए,किसानों ने अपना अखबार- ट्रॉली टाइम्स- दिल्ली की सड़कों
पर से शुरु कर दिया. भाजपा के आनुषंगिक संगठन की तरह काम करने वाले फेसबुक इंडिया ने
जब किसान आंदोलन के फेसबुक पेज- किसान एकता मोर्चा- को सस्पैंड कर दिया तो किसान आंदोलन के ताप ने फेसबुक
को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और पेज बहाल हुआ.
किसान आंदोलन
ने इस देश में लुटेरी पूंजी के मरकज पर सीधा निशाना साधा है. किसान आंदोलन ने अंबानी
और अडानी के उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया है. पहले-पहल अचरज में डालने वाली
इस बहिष्कार की अपील का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है. अंबानी इसे प्रतिस्पर्द्धी
कंपनियों की साजिश कह कर ट्राई की शरण में पहुंचे हैं और अडानी अपनी सफाई में अखबारों
में पूरे पन्ने का विज्ञापन देने को विवश हुए. जिस विपक्ष का नाम लेकर मोदी सरकार इस किसान आंदोलन
को “भ्रमित” और “भड़काया हुआ” घोषित करना
चाहती है,उस विपक्ष के पूंजी निर्भर हिस्से में से, किसमें ऐसा साहस है कि वह अंबानी-अडानी के खिलाफ चूँ
भी कर सके !
सरकार तो केवल बिचौलियों को हटाने का जबानी जमा खर्च ही
करती रही,लेकिन अंबानी के एंटीला को घेर कर किसानों ने बता दिया कि वे समझ रहे हैं कि
नीतियों के मामले में असली मालिक कौन है और बिचौलिया कौन !
देश की शक्तिशाली हुकूमत को अपनी लूट को कानूनी जामा पहनाने
के लिए बिचौलिया रखने वाली पूंजी की आंखों में आंखें डाल कर,उसे सांसत में डाल देने वाले, इस किसान आंदोलन का खैरमकदम
करना ही असली किसान दिवस मनाना है. यह किसान आंदोलन देश में नीति के नाम पर उग आई तमाम
लुटेरी खरपतवार पर “हल” चला कर, जनपक्षधर नीतियों की फसल बोने
वाली राजनीति के लिए खेत तैयार करेगा,यही उम्मीद है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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जिंदाबाद
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