cover

कर्नाटक, रिलायंस और कृषि कानून

 

तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन और उस पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणीयों की चर्चा के बीच एक और खबर पर गौर कीजिये. खबर यूं है कि कर्नाटक में रिलायंस,किसानों से 1000 क्विंटल धन सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से 82 रुपया अधिक पर खरीदेगा. अंग्रेजी मीडिया में इसकी खूब चर्चा की जा रही है. संघी विचार की वैबसाइट-ओप इंडिया ने तो इस खबर के बहाने कृषि क़ानूनों को बड़ा हितकारी बताया है.



खबर का लिंक : https://timesofindia.indiatimes.com/india/reliance-seals-karnataka-rice-deal-to-pay-above-msp/articleshow/80193932.cms


तो पहले रिलायंस द्वारा एमएसपी से अधिक पर धान खरीद की पूरी खबर को जान लेते हैं. खबर के अनुसार रिलायंस रिटेल लिमिटेड, कर्नाटक के रायचूर जिले के सिंधानूर तालुक में स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी(एसएफ़पीसी) से 1000 क्विंटल सोना मसूरी धान, खरीदेगा. एसएफ़पीसी, रायचूर जिले के सिंधानूर में स्थित एक कृषि आधारित फ़र्म है. अब तक एसएफ़पीसी तेल के कारोबार में मुख्यतया शामिल थी पर इस साल से धान खरीद में यह शामिल हुई है.  एसएफ़पीसी के पास 1100 धान उत्पादक किसान पंजीकृत हैं. रिलायंस रिटेल राज्य सरकार द्वारा घोषित धान के समर्थन मूल्य 1868 रुपये से 82 रुपया अधिक यानि 1950 रुपया प्रति क्विंटल की दर से खरीद करेगा. लेकिन शर्त यह है कि धान में 16 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए. नमी की जांच थर्ड पार्टी करेगी. बोरों  का खर्च और एसएफ़पीसी के गोदाम तक लाने का खर्च किसान को स्वयं वहन करना होगा. एसएफ़पीसी के गोदाम में ही गुणवत्ता परीक्षण होगा,उसके बाद रिलायंस ऑनलाइन एसएफ़पीसी को ऑनलाइन भुगतान करेगा और एसएफ़पीसी किसानों के खातों में पैसा डालेगा. किसानों और एसएफ़पीसी के बीच समझौते के अनुसार किसान की ओर से हर 100 रुपये के लेनदेन पर एसएफ़पीसी को किसान 1.5 प्रतिशत कमीशन देगा.




इस खबर से कृषि क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार और रिलायंस के कई दावों की धज्जियां उड़ते हुए, अभी कानूनों के लागू होने की शुरुआत में ही देखा जा सकता है. केंद्र सरकार का यह दावा कि ये कानून बिचौलियों को खत्म कर देंगे और किसानों की उपज की खेत से सीधे खरीद होगी. लेकिन कर्नाटक के उक्त प्रकरण में देख सकते हैं कि सीधी खरीद का कोई मसला नहीं है. किसान एक कंपनी को बेच रहा है,रिलायंस उस कंपनी सी खरीद रहा है और किसानों को उस कंपनी को कमीशन भी देना है. सरकार के घोषित एमएसपी से 82 रुपये अधिक देने की डुगडुगी, इस खबर के शीर्षक में ही लगभग सब समाचार माध्यमों ने बजाई है. लेकिन पूरी खबर पढ़ने के बाद उसकी हकीकत भी सामने आ जाती है. खबर में साफ लिखा है कि धान को रखने के लिए बोरों की व्यवस्था और ढुलाई का खर्च किसान को स्वयं वहन करना पड़ेगा. जाहिरा तौर पर रिलायंस द्वारा एमएसपी से जो 82 रुपये अधिक दिये जा रहे हैं,उनसे तो इसकी पूर्ति होने से रही.


अभी ज्यादा दिन नहीं  हुए जबकि पंजाब में जियो के टावरों को नुकसान पहुंचाए जाने के मामले में रिलायंस ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की और उसमें शपथ पत्र दे कर कहा कि कृषि क़ानूनों से उसका कोई लेना-देना नहीं है और वह इनका लाभार्थी भी नहीं है. रिलायंस के इस शपथ पत्र को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने झूठ का पुलिंदा करार दिया था. एआईकेएससीसी ने कहा था रिलायंस का यह दावा झूठा है कि वह फसल बाजार में प्रवेश नहीं करने जा रहा है और न कृषि भूमि ले रहा है. एआईकेएससीसी ने कहा कि इस तरह के झूठे दावे करने से पहले महाराष्ट्र के रायगढ़ और अन्य जगहों पर बड़े पैमाने पर ली गयी कृषि भूमि रिलायंस को किसानों को वापस लौटा देनी चाहिए.


केंद्र सरकार और इन क़ानूनों के समर्थक लगातार दावा करते हैं कि किसान इन कानूनों को समझ नहीं रहे हैं. कर्नाटक में रिलायंस द्वारा 1000 क्विंटल किसानों की धान खरीद की खबर लिखते हुए ओप इंडिया ने फिर किसानों के आंदोलन को अफवाहों पर आधारित बताया. लेकिन कर्नाटक का मामला और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में रिलायंस के शपथ पत्र के मामले में एआईकेएससीसी की प्रतिक्रिया से एक बार फिर स्पष्ट हुआ कि किसान इन क़ानूनों की हकीकत और उनके पीछे के मंसूबों को अच्छी तरह समझ रहे हैं. यही दरअसल सरकार, इन क़ानूनों के लाभार्थियों और पैरोकारों की असल परेशानी की वजह है ! 

 

-इन्द्रेश मैखुरी

Post a Comment

0 Comments