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काश सुरंग में सरकार बन सकती !

 


गज भर लंबी जुबान वाले सत्ताधारी पार्टी के एक मुख्यमंत्री का बयान सुन रहा हूँ, जो कह रहे हैं कि अमित शाह तो श्रीलंका और नेपाल में भी भाजपा की सरकार बनाना चाहते हैं.





 देश के गृह मंत्री कितने शक्तिशाली हैं. सरकार बनाना उनका शौक है,शगल है. हर राज्य में बनाने के लिए किसी भी हद तक जाना चाहते हैं, विदेश में भी अपना शौक पूरा करने की आकांक्षा रखते हैं ! जोशीमठ के आपदा प्रभावित क्षेत्र में खड़े हो कर सोचता हूं कि इतने शक्तिशाली गृह मंत्री के रहते भी सुरंग के अंदर और बाहर मलबे में दबे हुए लोगों को दस दिन बीत जाने पर भी नहीं निकाला जा सका ! यह शक्ति ऐसे आपदा के मौके पर क्यूं नहीं दिख रही है ?


फिर सहसा ख्याल आता है कि ये सुरंग और मलबा जिसमें लोग दबे हैं, काश कि सुरंग और मलबा न हो कर कोई राज्य होता,जिसमें सरकार बनाने की संभावना होती ! जो मजदूर और अन्य कर्मचारी इसमें दबे हैं,वे मजदूर न हो कर विधायक होते या उनके विधायक होने की संभावना होती ! तब संभव है कि गति कुछ तीव्र होती. तब शायद रात-दिन एक हो चुका होता,तब शायद हर परिस्थिति में उन्हें पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश होती, उन तक पहुँचने का हर संभव प्रयास होता. अभी तो कम से कम रिस्क लेने की बात हो रही है. तब शायद हर जोखिम को धता बता कर भी उन तक पहुँच बनाने की कोशिश होती. अभी तो मलबा ही राह रोक दे रहा है,आज सुरंग के भीतर से निकलते पाने ने भी खोज अभियान के पहिये थाम दिये. तब ऊंचे से ऊंचा चट्टानी पहाड़ भी पार कर लिया जाता, विकराल से विकराल दरिया भी साध लिया जाता.


पर अफसोस ऐसा है नहीं. यह सब  खामख्याली है. भला कोई सुरंग और मलबे का ढेर, किसी राज्य की विधानसभा की गद्दी के जैसे महत्व का कैसे हो सकता है ! मजदूर और साधारण कर्मचारी- चाहे उनकी संख्या कितनी ही क्यूं न हो और चाहे वे देश के हर राज्य के ही क्यूं न हों,उनकी तुलना विधायकों से कैसे हो सकती है ! विधायक पकड़ना, उन्हें रिज़ॉर्ट-रिज़ॉर्ट में थामे रखना, फन है, कलाकारी है, विधायकों के अपहरण से चाणक्य का तमगा है ! सुरंग और मलबे के ढेर में दफन मजदूर किस काम के ! वोट उन्होंने दिया ही होगा और अब उनके निर्जीव शरीरों से वह भी मिलने से रहा ! दस दिनों से सुरंग में फंसे मजदूरों को न निकाल सके तो क्या देश को विश्वगुरु बनाना है, देश का दुनिया में डंका बजवाना है !


यह सोचना निरी कूढ़मगजी है कि सुरंग और मलबे में फंसे,गहरे तक धँसे मजदूरों को विधायकों जैसा महत्व मिले ! हम प्रयास भी करें तो भी शक्तिशाली गृह मंत्री जी का ध्यान ऐसी बेहूदा बातों से भंग न होगा. वे श्रीलंका,नेपाल तो क्या अमेरिका में भी सरकार बनाने का प्रयास जारी रखें. कुछ घर सूने हुए तो क्या, कुछ बच्चे अनाथ हुए तो क्या ! लोगों को बचाना तो उनकी विशेषता कभी न थी ! जो उनकी विशेषता थी और है,वही कर रहे हैं,वही करेंगे. पर फिर भी मन नहीं मानता,वही सोचता है कि काश सुरंग विधानसभा होती और उसमें फंसे लोगों से सरकार बनाने की गुंजाइश होती तो ....... क्या पता ..................


-इन्द्रेश मैखुरी   

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