7 फरवरी को आई जल प्रलय को आज पाँच दिन पूरे हो चुके हैं.
तपोवन में बैराज साइट को जाने वाली सड़क पर इक्का-दुक्का वाहनों, मीडिया वालों और आम लोगों की आवजाही दिख रही है. शाम ढल रही है और ढलती शाम
के साथ फंसे हुए और लापता मजदूरों के परिजनों और रिश्तेदारों की उम्मीदों भी ढल रही
हैं.
आपदा स्थल पर आने वाली तमाशाई और सेल्फी खिंचाने वाली
भीड़ तो छंट ही गयी है. लेकिन लापता मजदूरों और अन्य कार्मिक भी हताश हो कर वापस लौट
रहे हैं. जो मौजूद हैं,उनकी भी उम्मीदें पस्त हो रही हैं. उनकी
आंखों का सूनापन और आंखों के कोरों पर जमा पानी,उनके दर्द की
गवाही दे रहा है. 7 फरवरी को मिले एक हाथ की शिनाख्त परिजनों द्वारा किए जाने की खबर
है. अपने आत्मीय जनों के लापता होने से परेशान स्थानीय निवासी संजय हों या फिर सहारनपुर
से आए रागिब हों,सबकी पीड़ा एक जैसी है. वे कसमसा रहे हैं,मन मसोस कर रह जा रहे हैं कि खोज अभियान सिर्फ सुरंग पर ही अटका हुआ है. सहारनपुर
के रागिब बताते हैं कि उनका भाई वैल्डिंग का काम करने दो-तीन दिनों के लिए सहारनपुर
से यहाँ आता था. अब की बार जिस मालिक-धीमान के साथ वह आया,उसके
साथ ही सुरंग में फंस गया. मालिक तो स्कॉर्पियो गाड़ी समेत फंस गया. बिहार के इंजीनियर
लापता हैं तो उनके भाई यहां आए हैं, जिनके लिए बिहार के पालीगंज से भाकपा(माले) के विधायक संदीप
सौरव ने भाकपा(माले) के उत्तराखंड राज्य कमेटी सदस्य कॉमरेड अतुल सती से बात की. लापता
इंजीनियर के भाई धनंजय,आंखों में भर आए आंसुओं के साथ कहते हैं
कि कुछ तो पता चले.
इससे सबसे गाफिल तंत्र है,जो यंत्रवत है. बड़ी से बड़ी पीड़ा भी उसकी यांत्रिकता को नहीं भेद पाती है और न उसमें कुछ संवेदना जगा पाती है. पांचवें दिन भी सारा ज़ोर केवल तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की बैराज साइट पर सुरंग के अंदर से मलबा बाहर फेंकने में है. इसके अतिरिक्त सुरंग में फंसे लोगों को बचाने का कोई रास्ता आपदा से निपटने वाले तंत्र को नहीं नजर आ रहा है. एक जेसीबी खराब हो गयी तो मलबा सुरंग से बाहर फेंकने का काम केवल एक ही मशीन कर रही है,जो अंदर से मलबा लाती है और नदी के किनारे फेंकती है,जहां से उसे नदी में ही बहना है.
उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य आयीं
और कह गयी कि मुंबई और हिमाचल से मशीनें आ रही हैं. काश प्रशासनिक अमले में से कोई
राज्यपाल को बता पता कि जोशीमठ क्षेत्र में तो जलविद्युत परियोजना कंपनियां थोक के भाव हैं और उनके
पास सैकड़ों मशीनें हैं. अफसरों को जिस कड़े निर्देश देने का दावा राज्यपाल महोदया ने
किया तब शायद वे उस कड़े निर्देश में तत्काल इन कंपनियों से मशीनें हासिल करने का निर्देश
भी उतनी ही कड़ाई से दे पाती !
पांच दिन बाद भी सारा खोज अभियान सिर्फ तपोवन में सुरंग
तक ही केन्द्रित है. सुरंग के बगल के मलबे के ढेर में तक जल प्रलय में लापता लोगों
को ढूँढने की कोई कोशिश नजर नहीं आ रही है. सुरंग पर भी जो मंथर गति है, उससे कुछ हासिल भी होगा या नहीं,कहा नहीं जा सकता.
अपनों के लापता होने का दर्द झेल रहे लोगों की दुख,पीड़ा और अवसाद से रेसक्यू कैसे होगा,कौन जाने ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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