जोशीमठ में आई जल प्रलय को सात दिन पूरे हो चुके हैं.
लापता लोगों की तलाश का मामला निल बट्टा सन्नाटा ही चल रहा है. देश-विदेश
का मीडिया जोशीमठ पहुंचा है. रैणी और तपोवन में यह
मीडिया
मंडरा रहा है.
और देखिये तो क्या कमाल खबर खोजी है-मीडिया ने ! अंग्रेजीदां
मीडिया ने देश-दुनिया को बताया कि एक काला कुत्ता है जो उस टनल के सामने आ कर बैठ जाता
है,जहां लोग फंसे हुए हैं. कुत्ते का नाम भी अंग्रेजी दां मीडिया ने खोज निकाला
और देश दुनिया को ग्राउंड ज़ीरो से उन्होंने बताया कि कुत्ते का नाम ब्लैकी है ! खोजी
पत्रकारिता का ये अनुपम नमूना है. मलबे के ढेर में से सात दिनों में एक भी व्यक्ति
न तलाशा जा सका हो तो क्या, अंग्रेजी मीडिया ने मजदूरों का प्रिय
कुत्ता तो खोज निकाला !
और यह कुत्ता खोज यहीं नहीं रुकी. जब अंग्रेजी वालों ने
तपोवन में एक कुत्ता खोज निकाला तो हिन्दी वाले भला क्यूं पीछे रहते ? उन्होंने रैणी में एक कुतिया खोज निकाली, जिसके बच्चे आपदा में बह गए हैं !
कोई उचित मूल्यांकन करने वाला हो तो टनल के मुहाने पर
बैठा कुत्ता और आपदा में अपना पूरा परिवार खोने वाली कुतिया, विश्व भर में खोजी पत्रकारिता की अभूतपूर्व और अप्रतिम खोज की श्रेणी में
गिनी जाएंगी.
आश्चर्य सिर्फ इस बात पर होता है कि जिन्हें मूक जानवरों
की पीड़ा समझ में आ जाती है, जिन्होंने कुत्ते और कुतिया से तक संवाद
स्थापित करके जान लिया कि वे किसकी तलाश कर रहे हैं,उन्हें इस
आपदा में अपने प्रियजनों की तलाश में भटके लोग क्यूं नहीं नजर आ रहे हैं ? कुत्तों की बोली समझने वाले मनुष्यों की पीड़ा की जुबान नहीं सुन पा रहे हैं,यह हैरत की बात है ! तपोवन में राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर बैराज साइट तक लगभग
आधा किलोमीटर के फासले में उड़ती धूल के बीच दर्जनों स्थानीय और देश के विभिन्न हिस्सों
से आए लोग हैं,जो अपने आंसुओं को आँखों के कोरों पर थामे हुए
सुबह से शाम तक बैराज और सुरंग पर अपनों के मिलने की आस में खड़े रहते हैं. इन सात दिनों
में हर बीतते दिन के साथ उन्हें अपनी आस टूटती सी लगी और उनमें से बहुतेरे तो आँखों
में आँसू लिए वापस भी लौट गए हैं. ऐसी ही स्थिति रैणी में भी है.
अपनों की तलाश ! फोटो : अतुल सती,आइसा
कुत्तों या अन्य जानवरों से प्रेम होना अच्छी बात है.
लेकिन सात दिन में कछुआ चाल से चलता सरकारी खोज अभियान और उसके चलते हौसला और धैर्य
खोते परिजनों के दर्द को लेकर जब कलम नहीं उठती तो समझ में आता है कि कुत्तों की खबर
किसी प्रेम के चलते नहीं बल्कि सरकारी खोज अभियान की नाकामियों पर से ध्यान हटाने के
लिए लिखी जा रही है. जिस अंग्रेजी अखबार ने कुत्ता कथा सबसे पहले छापी, उसी अंग्रेजी अखबार ने दूसरी “महत्वपूर्ण” खबर यह खोज निकाली कि तपोवन में
एनटीपीसी ने स्वास्थ्य शिविर शुरू किया और खबर में एनटीपीसी के अफसरों के हवाले से
लिखा कि यह कितना जरूरी काम उन्होंने किया है ! एनटीपीसी से तो सवाल पूछा जाना चाहिए
कि किसी दुर्घटना से निपटने के लिए बोर्ड लगाने के अतिरिक्त कोई इंतजाम क्यूं नहीं
था ? जिस सुरंग के भीतर सात दिन से खोज अभियान चल रहा है, उस सुरंग की भीतर किसी भी दुर्घटना या आपात स्थिति से निपटने के लिए कोई व्यवस्था
क्यूं नहीं थी ? जो साइरन 7 फरवरी की दुर्घटना वाले दिन के बाद
के दिनों में बजने लगा, वो साइरन घटना के दिन या उससे पहले तक
अस्तित्व में क्यूं नहीं था ?
दरअसल परियोजना निर्माताओं और सरकार को किसी तरह के सवालों
का सामना न करना पड़े,उनकी काहिली और नकारेपन पर पर्दा पड़ा रहे,इसीलिए कुत्ता कथा गढ़ी जा रही है. एक स्थानीय पत्रकार मित्र का कहना था कि
चमोली जिले के सरकारी अफसर इस बात को लेकर परेशान थे कि स्थानीय मीडिया तो वह मैनेज
कर लेंगे पर दिल्ली वाली मीडिया कैसे मैनेज होगी ! कुत्ता कथा, एनटीपीसी के स्वास्थ्य शिविर की खबर, खोज अभियान, परियोजना की सुरक्षा आदि पर किसी
तरह का कोई प्रश्न न उठाने से साफ है कि उनको मैनेज करने की चिंता ही नहीं करनी है.
दिल्ली में इतना बड़ा मीडिया
मैनेजमेंट केंद्र है कि उसके सामने न मैनेज होना बिरलों के बस की ही बात है.
प्यारे मीडिया जनों आप सत्ता की गोदी में खेलने के चरम
सुख को हासिल करने के लिए प्राप्त होने के हर अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहते हों तो
बेशक उठाएँ पर इतनी मनुष्यता जरूर रखें कि इसके लिए बेजुबान जानवरों को हथियार न बनायें
!
-इन्द्रेश मैखुरी
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😢😢😢😢😢
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