पत्रकार प्रिया रमानी के विरुद्ध पत्रकार और मोदी
सरकार में विदेश राज्य मंत्री रहे एमजे अकबर
द्वारा दायर किए गए आपराधिक मानहानि
के दावे को दिल्ली की एक अदालत ने खारिज कर दिया है.
इस मुकदमें की कार्यवाही को देखें तो यह साफ दिखता है
कि एमजे अकबर ने अपने रसूख का इस्तेमाल, अपने यौन व्यवहार के
विरुद्ध उठने वाले स्वरों को दबाने के लिए किया. 2017 में हॉलीवुड से खड़ा हुआ- मी टू
अभियान जब भारत पहुंचा तो कार्यस्थलों पर अपनी महिला सहयोगियों के साथ व्यवहार के मामले
में कई नामचीन लोगों के चेहरों से शराफत की नकाब उतर गयी. एमजे अकबर,उनमें से एक थे जो कई अखबारों और पत्रिकाओं के संपादक रह चुके थे. राजीव गांधी
के जमाने में अकबर काँग्रेसी थे और मोदी काल आया तो वे मोदी सरकार में विदेश राज्य
मंत्री हो गए.
अकबर के विरुद्ध 12 महिलाओं ने यौन शोषण और छेड़छाड़ का
आरोप लगाया. लेकिन अकबर ने मानहानि का दावा करने के लिए प्रिया रमानी को ही चुना, जिनका अन्य महिलाओं की तुलना में कम शोषण हुआ था या यूं कहें कि उनका यौन
शोषण करने में अकबर कामयाब नहीं हो पाये थे. प्रिया रमानी द्वारा अदालत में दिये गए
बयान के अनुसार 1993 में अमेरिका से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद वे पत्रकारिता
में नौकरी की तलाश कर रही थीं. इसी सिलसिले में उन्होंने एशियन एज,मुंबई में भी अपना रिस्यूमे भेजा. दिसंबर महीने में अखबार के संपादक एमजे अकबर
जब मुंबई आए तो प्रिया उनसे मिली. अकबर ने प्रिया को शाम को सात बजे ओबरॉय होटल में
साक्षात्कार के लिए बुलाया. प्रिया के अनुसार उन्हें लगता था कि साक्षात्कार होटल की
लॉबी या कॉफी शॉप में होगा. लेकिन अकबर ने उन्हें कमरे में बुलाया जो कि उनका शयनकक्ष
था. इस छोटे से कमरे में अकबर ने प्रिया से विवाह,बॉयफ्रेंड आदि
तमाम निजी सवाल पूछे,संगीत की पसंद पूछी और खुद ही पुराने हिन्दी
फिल्मी गीत सुनाये ! परंतु पत्रकारिता संबंधी कोई सवाल नहीं पूछा. फिर अकबर ने जब प्रिया
को एक छोटे से सोफ़े में अपने बगल में बैठने को कहा तो वे वहां से उठ कर चली आई. प्रिया
रमानी के अनुसार वे उसके बाद अकबर से कभी अकेले में नहीं मिली.
अकबर ने प्रिया रमानी पर मानहानि का दावा किया,लेकिन छेड़छाड़ और यौन दुर्व्यवहार के इससे अधिक गंभीर आरोप लगाने वाली महिलाओं
पर वे चुप्पी साध गये. प्रिया रमानी मानहानि मामले में प्रिया के पक्ष में गवाही देने
वाली गजाला वाहब ने तो अकबर के यौन व्यवहार को लेकर बेहद संगीन आरोप लगाए हैं. उन्होंने
अदालत में गवाही देते हुए अकबर द्वारा बार-बार छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए. उनके अनुसार
वे अकबर के व्यवहार से इस कदर परेशान हो चुकी थी कि अंततः उन्होंने अकबर के अधीन नौकरी
ही छोड़ दी.
यह अकबर की कुटिलता को ही दर्शाता है कि उनके विरुद्ध कई महिलाओं द्वारा अत्यंत गंभीर यौन शोषण के आरोप लगाने के बाद उन्होंने एक महिला को ही मानहानि के दावे के लिए चुना,जिसके आरोप अन्य से थोड़ा कमतर थे. मुकदमें की कार्यवाही के दौरान दिये गए अकबर के बयानों को पढ़ें तो ऐसा लगता है कि आरोपों से इंकार के अलावा उन महिलाओं के बारे में उन्हें कुछ याद नहीं,जिनके यौन शोषण या यौन दुर्व्यवहार का आरोप उन पर है. ऐसा प्रतीत होता है कि बीती लंबी समयावधि को भी अकबर ने अपने बचाव का हथियार बनाने की कोशिश की.
दिल्ली जिला न्यायालय के अतिरिक्त मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट
रविंद्र पांडेय ने अपने 91 पृष्ठों के फैसले में लिखा कि वे अदालत में दी गयी गवाहियों
के आधार पर आरोपी प्रिया रमानी के इस दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं कि शिकायत कर्ता(एमजे
अकबर) उत्कृष्ट साख वाले व्यक्ति नहीं हैं. अदालत ने यह भी कहा कि कोई व्यक्ति सामाजिक
जीवन में चाहे कितना ही सम्मानित क्यूं न हो,इसके बावजूद वह कई बार
अपने निजी जीवन में वह महिलाओं के प्रति अत्याधिक क्रूरता प्रदर्शित कर सकता है. अदालत
ने कहा कि इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार बंद
दरवाजों के अंदर ही होता है.समय आ गया है कि हमारा समाज यौन उत्पीड़न और पीड़ितों पर
उसके प्रभाव को समझे. अदालत ने यह भी कहा कि आपराधिक मानहानि की शिकायत की आड़ में किसी
महिला को यौन दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए सजा नहीं दी जा सकती क्यूंकि
किसी की छवि को महिला के जीवन और गरिमा के अधिकार की कीमत पर नहीं बचाया जा सकता जो
कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त हैं.
अदालत ने प्रिया रमानी को आपराधिक मानहानि के आरोप से
बरी कर दिया. प्रश्न यह है कि अदालत की कार्यवाही के दौरान एमजे अकबर पर जो यौन उत्पीड़न
के आरोप पुनः पुष्ट हुए, उनकी सजा कब मिलेगी ? महिलाएं कार्यस्थलों और अन्य स्थानों पर शोषण-उत्पीड़न के भय से सुरक्षित कब
होंगी,यह भी बड़ा सवाल है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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