26 फरवरी को गैरसैण के खनसर क्षेत्र के सैकड़ों महिला-पुरुष जमा हुए.
नारा लगाते इन महिला-पुरुषों का एक 35 सूत्रीय मांग पत्र था. लेकिन उसमें सबसे प्रमुख
मांग जिसने इन्हें इकट्ठा किया,वो थी : सेरा-तेवाखर्क मोटर मार्ग का निर्माण. यह मोटर मार्ग,मुख्यमंत्री की घोषणा है.
सरकारी पत्राचार में इस मोटर मार्ग का जिक्र भी – मा.मुख्यमंत्री की घोषणा 375/2012
के रूप में होता है. लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद सड़क नहीं बनी. बीते बरस
इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने कर्णप्रयाग के विधायक सुरेन्द्र सिंह नेगी से सड़क
के बाबत बातचीत की. उनका कहना था कि विधायक जी ने उन्हें एक महीने में काम शुरू होने
का भरोसा दिलाया. लेकिन काम शुरू नहीं हुआ. फिर कोरोना और लॉकडाउन आ गया और इस तरह
मामला,एक और साल के लिए लटक गया.
इस वर्ष जनवरी के शुरू में जनप्रतिनिधियों ने स्थानीय
विधायक के मार्फत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को ज्ञापन भेज कर सड़क बनाने की
मांग की. ज्ञापन में कहा गया था कि यदि 25 जनवरी 2021 तक सड़क का काम शुरू नहीं किया
गया तो 26 जनवरी से वे स्वयं सड़क की खुदाई शुरू कर देंगे. इतने बरसों से जो काम शुरू
नहीं हुआ था,वह इतनी जल्दी कहां शुरू होने वाला था. इसलिए ग्रामीणों
ने खुद सड़क काटना शुरू कर दिया. 26 फरवरी को सड़क काटते हुए उन्हें एक महीना हो गया.
लेकिन कोई सरकारी कर्मचारी-अधिकारी उनकी सुध लेने तक नहीं गया. गोपेश्वर में एक पत्रकार
मित्र ने व्यंग्य करते हुए कहा कि अरे ग्रामीणों को पूछने नहीं जा रहे अफसर,कम से कम उस सरकारी जमीन को देखने तो जायें,जिसे खोद
कर ग्रामीण सड़क बना रहे हैं ! लेकिन लगता है कि सरकारी तंत्र को इस सबसे कोई लेना-देना
नहीं है. सेरा- तेवाखर्क मोटर मार्ग के लिए संघर्षरत
ग्रामीणों ने ऐलान किया कि वे 27 फरवरी से सड़क की खुदाई के साथ ही आमरण अनशन भी शुरू
करेंगे. देखें संवेदनहीन तंत्र को कुछ फर्क पड़ता है या नहीं !
इस सड़क के संदर्भ में लोकनिर्माण विभाग, गैरसैण के
अधिशासी अभियंता ने जिलाधिकारी चमोली को 21 जनवरी 2021 के लिखे पत्र
में बताया कि पहले चरण में तीन किलोमीटर सड़क निर्माण की विधिवत स्वीकृति प्राप्त है.
आगे अधिशासी अभियंता, गैरसैण ने लिखा कि इस मोटर मार्ग के
द्वितीय चरण की डीपीआर 17 अगस्त 2019 को मुख्य अभियंता,लोकनिर्माण
विभाग, पौड़ी को भेजी गयी. लोकनिर्माण विभाग, गैरसैण
के अधिशासी अभियंता के पत्र से समझ में आता है कि दूसरे चरण की स्वीकृति मिलना बाकी
है,जबकि इस सड़क
के पहले चरण में तीन किलोमीटर की स्वीकृति मिल चुकी है,केवल धनराशि आवंटित होना बाकी है.
सरकार बहादुर,मुमकिन है कि आपकी इच्छा
दोनों चरण, एक साथ उठा कर छलांग लगाने की हो पर यह नहीं हो रहा
तो पहले चरण के लिए धन तो आवंटित तो कर दो ताकि एक चरण ही उठ जाये और मामला कुछ आगे
बढ़ जाये ! इससे ज्यादा काहिली क्या होगी कि तीन किलोमीटर की स्वीकृति हर स्तर से हो
चुकी है,लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा होने के बावजूद धन आवंटित
नहीं हो रहा है और ग्रामीणों को खुद सड़क खोदने,धरना प्रदर्शन,क्रमिक अनशन व आमरण अनशन जैसे कदम उठाने पड़ रहे हैं !
लेकिन तेवाखर्क वाली सड़क इकलौती नहीं है,जो मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी नहीं बनी. चमोली जिले में ही नंदप्रयाग-घाट मोटरमार्ग को डेढ़ लेन किए जाने की घोषणा तो वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और उनके पूर्ववर्ती हरीश रावत दोनों ने की थी. घोषणा दो मुख्यमंत्रियों ने की और सड़क डेढ़ लेन नहीं बन सकी !
इस सड़क को डेढ़ लेन किए जाने
की मांग को लेकर घाट में बीते 85 दिनों से अधिक से निरंतर आंदोलन चल रहा है,धरना और आमरण अनशन हो रहा है. घाट से नंदप्रयाग तक 19 किलोमीटर लंबी मानव शृंखला
आंदोलनकारियों ने बनाई और तिरंगा रैली समेत सैकड़ों की भागीदारी वाले विशाल जुलूस निकाले
जा रहे हैं. लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. अब 01 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा के
बजट सत्र के पहले दिन,घाट के आंदोलनकारियों ने गैरसैण में विधानसभा
के घेराव का ऐलान किया है,जिसके लिए गाँव-गाँव जनसम्पर्क किया
जा रहा है.
चमोली जिले के
पोखरी ब्लॉक में सलना-डांडा मोटर मार्ग भी मुख्यमंत्री की घोषणा है. सड़क को शासन से
स्वीकृति मिली हुई और लोकनिर्माण विभाग को इसके लिए 61 लाख रुपये की टोकन मनी भी जारी
कर दी गयी है. लेकिन इस चार किलोमीटर सड़क में भूगर्भीय रिपोर्ट का पेंच फंस गया है.
यहां भी ग्रामीण दिसंबर महीने से स्वयं श्रमदान करके सड़क बना रहे हैं और अब तक एक किलोमीटर
सड़क काट चुके हैं. इस सड़क पर श्रमदान के दौरान 24 फरवरी को दो ग्रामीण चट्टान से फिसलने
के कारण घायल हो गए,जिनमें से एक को देहारादून रेफर करना पड़ा.
इस तरह देखें तो चमोली जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र-कर्णप्रयाग,थराली और बद्रीनाथ में सड़क के लिए संघर्ष कर रहे हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा
है कि सत्ता में बैठने वालों को उनके संघर्षों से कोई लेना-देना नहीं है.
26 फरवरी को गैरसैण में
सेरा-तेवाखर्क सड़क की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन
में शामिल होने के बाद कर्णप्रयाग को लौटते समय देखता हूं कि ट्रकों और गाड़ियों का
रेला, गैरसैण की तरफ जा रहा
है क्यूंकि 01 मार्च से भराड़ीसैण में विधानसभा का बजट सत्र होना है. ट्रकों
में लाद कर बड़े-बड़े जेनेरेटर ले जाये जा रहे हैं, गद्दीदार कुर्सियां
जा रही हैं ! सड़कों पर उत्तराखंड सरकार के प्रशस्ति गान वाले होर्डिंग टांके जा रहे
हैं और आंदोलनकारियों को रोकने के लिए बैरिकेडिंग लगाए जा रहे हैं.
मन में बरबस यह ख्याल आता है कि गैरसैण
में अपने रहने के चंद दिनों के लिए जो सरकार सुख-सुविधा और प्रचार का कोई प्रबंध करना
नहीं भूलती,उसी
सरकार को एक बड़ी आबादी का सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित रहना कैसे नहीं खलता ? क्या कुर्सी पर बैठने वालों और जनता के बीच तंत्र का बैरिकेड इतना मजबूत है
कि किसी भी जायज़ स्वर को वह सत्ता के कानों तक नहीं पहुँचने देता ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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