अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा से उपचुनाव के लिए भाजपा
और कॉंग्रेस के प्रत्याशियों ने नामांकन का पर्चा भर दिया है. बीते नवंबर माह में सल्ट
के विधायक सुरेंद्र सिंह जीना की कोरोना के कारण हुई मृत्यु के चलते उपचुनाव हो रहा
है. यह दुखद है कि पहले सुरेंद्र सिंह जीना की पत्नी और फिर स्वयं सुरेंद्र सिंह जीना
कोरोना की चपेट में आ कर जान गंवा बैठे.
सल्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव 17 अप्रैल को होना है और
02 मई को मतगणना होगी.
भाजपा ने सल्ट से दिवंगत विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के
भाई महेश जीना को अपना प्रत्याशी बनाया है,कॉंग्रेस ने गंगा पंचोली
को और उत्तराखंड क्रांति दल ने मोहन उपाध्याय को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.
सल्ट के उपचुनाव की घोषणा से कुछ ही दिन पहले भाजपा के
केंद्रीय नेतृत्व ने विधायकों के असंतोष के कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा कर गढ़वाल
संसदीय सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री नामित कर दिया. 57
विधायकों के प्रचंड बहुमत वाली पार्टी को अपने विधायकों में से एक भी सुयोग्य व्यक्ति
नहीं मिला जिसे वह मुख्यमंत्री बना सकती ! इसलिए विधानसभा चुनाव के दस महीने पहले भाजपा
आलाकमान ने एक सांसद को मुख्यमंत्री बना कर राज्य पर दो उपचुनाव थोप दिये. मुख्यमंत्री
नामित किए गए तीरथ सिंह रावत को छह महीने के भीतर विधायक चुन कर के आना होगा और सांसद
के रूप में उनके द्वारा खाली सीट पर भी उपचुनाव होगा.
यूं उत्तराखंड राज्य पर भाजपा और कॉंग्रेस के हाईकमान
निरंतर अपने फैसलों से उपचुनावों का बोझ डालते रहे हैं. राज्य में 2002 में विधानसभा
का पहला चुनाव हुआ. कॉंग्रेस को बहुमत हासिल हुआ और उनके आलाकमान ने नारायण दत्त तिवारी
को मुख्यमंत्री नामित कर दिया. तिवारी के विधानसभा पहुँचने के लिए रामनगर के तत्कालीन
विधायक योगंबर सिंह रावत ने विधानसभा से इस्तीफा दिया. 2007 में भाजपा सत्ता में आई
और भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए. खंडूड़ी तब गढ़वाल
सीट से सांसद थे. खंडूड़ी के विधायक होने के लिए तब कॉंग्रेस
के धूमाकोट के विधायक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत
से सीट खाली करवाई गयी. खंडूड़ी इस सीट से विधानसभा पहुंचे और उनके द्वारा खाली
की गयी गढ़वाल लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर टीपीएस रावत लोकसभा पहुंचे. 2012 में
उत्तराखंड में कॉंग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बनाए गए. विजय बहुगुणा
ने भी विधानसभा पहुँचने के लिए सितारगंज के भाजपाई विधायक किरण मंडल से सीट खाली करवाई.
2014 में विजय बहुगुणा की जगह हरीश रावत मुख्यमंत्री बनाए गए. उनके विधानसभा पहुँचने
के लिए धारचूला के काँग्रेसी विधायक हरीश धामी ने सीट खाली की. पहली कामचलाऊ सरकार
के दो मुख्यमंत्रियों नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के अतिरिक्त
निर्वाचित सरकारों में केवल रमेश पोखरियाल “निशंक” और त्रिवेंद्र
सिंह रावत ही वो अपवाद थे,जिनके
मुख्यमंत्री बनने पर उपचुनाव नहीं हुआ.
अब पुनः तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने पर दो उपचुनाव
होंगे. गढ़वाल संसदीय सीट का उपचुनाव और मुख्यमंत्री को विधानसभा पहुंचाने के लिए उपचुनाव.
भाजपा के पास यह विकल्प था कि सल्ट के उपचुनाव में मुख्यमंत्री
तीरथ सिंह रावत को उतार कर वह साठ हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे इस राज्य को एक
उपचुनाव के खर्च से बचा सकती थी. चूंकि तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री हैं तो उनके लिए
किसी क्षेत्र विशेष की बाध्यता भी आड़े नहीं आनी चाहिए थी. वे पौड़ी वालों के जितने मुख्यमंत्री
हैं,उतने ही तो अल्मोड़ा वालों के भी हैं. अगर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी व्यक्ति
के लिए राज्य में सुरक्षित सीट तलाशनी पड़े तो फिर यह उसके राज्य का मुखिया होने पर
ही प्रश्न चिन्ह है. आदमी मेरठ में आरएसएस का प्रचारक रह सकता है,लेकिन अपने राज्य के एक विधानसभा सीट से, मुख्यमंत्री
होने के बावजूद उपचुनाव लड़ने का साहस नहीं कर सकता,यह विचित्र
विरोधाभास है.
-इन्द्रेश मैखुरी
1 Comments
वैसे भाजपा ने तीरथ जी को सल्ट से उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया यह भी सोचने का विषय है !!
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