हमारे विश्वविद्यालय में एक छात्र
नेता थे,जिनके बारे में हमारे एक सीनियर की टिप्पणी थी कि ये दुनिया में सब कुछ होना
चाहता है. दुनिया में सबसे बड़ा गुंडा अगर कोई है तो ये होना चाहता
है और दुनिया में सबसे शरीफ यदि कोई है तो वह भी इसे ही बनना है. एक दशक से अधिक समय
बाद यह बात बरबस याद आई जब देखा कि आंदोलनजीवी कह कर आंदोलनकारियों की खिल्ली उड़ाने
वाले महापुरुष अपने आप को दूसरे देश के स्वतंत्रता के आंदोलन का आंदोलनकारी बता रहे
हैं !
फोटो : आशुतोष शर्मा जी के फेसबुक पोस्ट
से साभार
आशुतोष शर्मा के मूल फेसबुक पोस्ट का लिंक :https://www.facebook.com/photo?fbid=4435159156511779&set=a.254611864566550
आंदोलनजीवी कह कर आंदोलनकारियों
की खिल्ली उड़ाने वाले और फिर स्वयं को दूसरे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सेदार
बताने वाले महापुरुष की पार्टी में उत्तराखंड में एक महारथी हैं. तमाम राजनीतिक पार्टियों में चक्कर लगा कर,वे वापस यहां पहुंचे हैं, गोया धरती के गोल होने की तसदीक
कर रहे हों ! 1994 में जब उत्तराखंड आंदोलन चल रहा था तो इन महारथी के पौड़ी में लोगों
ने कपड़े फाड़ दिये और मंच से नीचे धकेल दिया. राज्य बना ये महारथी मंत्री हो गए. उसके
बाद उत्तराखंड आंदोलन पर बन रही एक फिल्म में खुद के आंदोलनकारी होने की भूमिका निभाते
वे देखे गए. फिल्म का क्या हुआ,पता नहीं, पर इसी तरह कोई भी,खुद को किसी भी आंदोलन का महारथी
घोषित कर सकता है !
इस लेख को इस लिंक पर सुन भी सकते हैं -https://anchor.fm/indresh-maikhuri3/episodes/ep-etk6om
स्वतंत्रता सेनानियों के असली और फर्जी होने का किस्से
पेशावर विद्रोह के नायक कॉमरेड चंद्र सिंह गढ़वाली के हवाले से डॉ.प्रभात उप्रेती की
किताब “सफदर -एक आदमकद इंसान” में दर्ज है. यह किताब मुख्यतया भारत में नुक्कड़ नाटक
आंदोलन के शहीद सफदर हाशमी के 1976 में गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहने के दिनों का संस्मरणात्मक
ब्यौरा है. उस दौरान श्रीनगर(गढ़वाल) में आयोजित स्वतंत्रता सेनानियों के एक सम्मेलन
में पेशावर विद्रोह के नायक कॉमरेड चंद्र सिंह गढ़वाली भी शामिल हुए,जहां उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्र पत्र दिये जाने का विरोध किया
और इस क्रम में बताया कि किस तरह के फर्जी लोग स्वयं को स्वतंत्रता सेनानी बता रहे
हैं. गढ़वाली जी ने कहा “ ये ...ले तो उनको भी स्वतंत्रता सेनानी बता रहे हैं,जो उस समय चमोली पुल पर मच्छी मार रहे थे, ब्लास्टिंग
में हाथ उड़ गया,पुलिस पकड़ कर ले गयी और देश आजाद हुआ तो ये स्वतंत्रता
सेनानी घोषित हो गए ! ” इस किस्से से बखूबी समझ सकते हैं कि फर्जी तरीके से स्वयं को
स्वतंत्रता सेनानी कैसे घोषित किया जाता है.
वैसे यह होली का मौसम है,जिसमें हंसी ठिठोली करने का भी चलन है. मुमकिन है कि “मुमकिन है” नारे वाले
महापुरुष जो अपने देश का चुनाव साधने के लिए पड़ोसी देश में होली मिलन करने गए हैं, होली के मौसम में ठिठोली कर रहे हों ! लगता तो ऐसा भी है कि देश के मुखिया
के पद को वर्ल्ड टूर पैकेज समझने वाले महापुरुष चूंकि कोरोना के चलते साल भर से अपने
ही देश में फंसे हुए थे तो इस फंसान के बाद जो पहला अवसर आया,उसमें वर्ष भर का खुमार उन्होंने एक ही किस्से में निकाल दिया. इसमें उड़ान
इतनी ऊंची हो गयी कि उनकी पार्टी बरसों-बरस जिस बांग्लादेश के खिलाफ घुसपैठियों के
नाम पर घृणा अभियान चलाये रही,वे खुद को उसी बांग्लादेश की स्वाधीनता
का नायक घोषित कर बैठे ! मुमकिन है कि कल्पना की यह ऊंची उड़ान, कोरोना का वो साइड इफैक्ट हो,जो वैज्ञानिकों की पकड़
में न आया हो !
-इन्द्रेश मैखुरी
2 Comments
फिर से शानदार
ReplyDeleteशुक्रिया भाई साहब
ReplyDelete