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छोटा बच्चा देखा है कभी आपने जो नया-नया लिखना
सीख रहा हो और उसके हाथ में नयी-नयी पेंसिल आई हो ! वो हर जगह पेंसिल चलाता है,कॉपी पर, दीवार पर,जहां भी खाली जगह दिखे,वहाँ पर.घर की दीवारें बताती हैं कि इस घर में छोटा बच्चा है,जिसके हाथ में पेंसिल आ गयी है. शब्द बन रहा है,नहीं
बन रहा है,कोई आकृति बन रही है कि नहीं बन रही है,इससे बच्चे का कोई लेना-देना नहीं होता,उसे बस
पेंसिल चलानी होती है. आप उसकी आड़ी-टेढ़ी रेखाओं में शब्द तलाशते रहिए,उसे उन रेखाओं को देख कर वैसे ही और रेखाएँ खींचने की चाह तीव्र होती है.
आप सोचते रहिए कि बच्चे की पेंसिल से ये क्या आकृति बनी,बच्चे
के लिए तो वो सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है और वह वैसी ही और रचना चाहता है.
2017 में उत्तराखंड में मोदी जी आए. उन्होंने कहा
देहरादून के इंजन को दिल्ली के इंजन से जोड़ दीजिये,डबल इंजन की
सरकार बनाइये और उत्तराखंड में विकास ही विकास पाइए ! उत्तराखंड वालों ने भरोसा कर
लिया,देहरादून के इंजन को मोदी जी के इंजन से जोड़ दिया.
फिर मोदी जी ने कलम वैसे ही नौसिखिये बच्चे के हाथ
में पकड़ा दी,जिसे अभी कलम पकड़ने का शऊर ही नहीं था. लेकिन जैसा
कि ऊपर बताया ही गया है कि नया-नया कलम पकड़ा हुआ बच्चा क्या-क्या करता, मोदी जी ने भी जिस बच्चे के हाथ में कलम पकड़ाई,उस
बच्चे ने भी वैसा ही कारनामा शुरू किया. उसने जैसा मर्जी आई,वैसा
लिखना शुरू किया,जहां मर्जी आई,वहाँ
लिखना शुरू किया. आड़े-तिरछे,भद्दे,बदरंग,बेतरतीब लेखे की कभी परवाह न की. वह तो छोटे बच्चे की तरह ही अपने कलम
पकड़ने पर ही मुदित था,अपने आप पर रीझा हुआ था. चार साल तक
उसके संगी-साथी भी उसकी इन आड़ी-टेढ़ी रेखाओं और कारस्तानियों को ऐतिहासिक बताते
रहे. बच्चे के माँ-बाप भी खुश होते हैं अपने बच्चे के पेंसिल पकड़ने पर. अब यह
बच्चा जिसके हाथ में कलम थमा दी गयी थी,बच्चा तो अपने हाईकमान
का था,राज्य का तो मुख्यमंत्री था. सो उसके लिखे हर आड़े-टेढ़े
को ऐतिहासिक बताना भी उसके संगी-साथियों, दरबारियों और
चारण-भाटों का अनिवार्य दायित्व था.
चार साल बाद जो भी वजह हो पर उन्हें बैठाने वालों को
भान हुआ कि अरे उनके गोलू-मोलू ने सारी दीवारें बदरंग कर दी हैं,सारे कागजों पर लिखने के नाम पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खींच दी हैं ! इसलिए अब
दिल्ली ने उत्तराखंड में रंगरोगन करने के लिए रंगरेज भेजा. सो रंगरेज बाबू ने
एक-एक कर आड़ी-तिरछी रेखाओं वाले पन्ने फाड़-फाड़ कर उड़ाने शुरू किए. जो चार साल तक
आड़ी-तिरछी रेखाओं वाले पतरों को ऐतिहासिक बताते रहे,वे अब इन
पन्नों के फाड़-फाड़ कर उड़ाए जाने को ऐतिहासिक करार दे रहे हैं ! बहरहाल रंगरेज बाबू
पन्ने फाड़ रहे हैं,दीवारों पर सफेदी कर रहे हैं और बीच-बीच
में पिच्च से खुद भी जो उगल रहे हैं,वह सफेदी को स्याह करने
वला ही सिद्ध हो रहा है. पन्ने फाड़ने की जो गति है,उससे
आखिरी में केवल फटी हुई कॉपी ही रह जानी है.
नए-नए कलम पकड़े बच्चे और नौसिखिये-अनाड़ी मुख्यमंत्री में
फर्क इतना है कि बच्चे की शरारत और उसकी गलतियों पर मोहित हुआ जा सकता है क्यूंकि ये
शरारत और गलतियां अहितकारी नहीं होती,जबकि राज्य के नौसिखिये-अनाड़ी
मुख्यमंत्री के अनाड़ीपने की कीमत पूरे राज्य को चुकानी पड़ती है. अर्ज यह भी है कि स्वयं
को अभिमन्यू बताने वालों को बच्चे से उनके अनाड़ीपन की तुलना पर कोई खास आपत्ति तो नहीं
होनी चाहिए !
पन्ने फाड़ने और फैसले पलटने की इस रफ्तार से पुरानी
हिन्दी फिल्म के गीत की पैरोडी सूझ रही है :
पलट मेरी जां,तेरे कुर्बां
जाता किधर है,फैसला इधर है,
अरे पलट !
-इन्द्रेश
मैखुरी
2 Comments
वाह ! बेहतरीन सटीक लेख
ReplyDelete👏👏👏👏👏👏👏👏
वाह !बेहतरीन सटीक लेख
ReplyDelete👏👏👏👏