कोरोना की दूसरी लहर के साथ ही देश में ऑक्सीजन का संकट बड़े पैमाने पर खड़ा हो गया है. यह संकट इस
कदर बड़ा है कि इसे मेडिकल आपातकाल जैसी स्थिति बताया जा रहा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट
के अनुसार, सामान्य
समयों में कुल ऑक्सीजन का 15 प्रतिशत ही चिकत्सीय उपयोग में आता है. शेष औद्योगिक प्रयोजन
में उपयोग किया जाता है. अंग्रेजी न्यूज़ पोर्टल स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार 12 अप्रैल
तक भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता 3842 मीट्रिक टन
थी. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल ऑक्सीजन का उत्पादन 7127 मीट्रिक टन है,जबकि कोरोना
के बढ़ते केसों के बीच मेडिकल ऑक्सीजन की मांग बढ़ कर 8000 मीट्रिक टन हो
गयी है.
महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,गुजरात,दिल्ली,उत्तर प्रदेश जैसे राज्य हैं,जहां ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. ऑक्सीजन
के लिए राज्यों के बीच छीनाझपटी जैसी नौबत आ चुकी है. ऐसी स्थिति के मद्देनजर ही केंद्रीय
गृह मंत्रालय को नोटिस निकालना पड़ा कि दूसरे राज्य को भेजी जा रही ऑक्सीजन के वाहन, राज्य अथवा स्थानीय अधिकारियों द्वारा रोकना अवैध होगा.
ऑक्सीजन के इस जानलेवा संकट के बीच देश में एक राज्य है,जो न केवल इस संकट से बचा हुआ है बल्कि इस संकट की घड़ी में अन्य राज्यों की
मदद भी कर रहा है. उस राज्य का नाम है- केरल.
ऐसा नहीं है कि केरल में ऑक्सीजन की मांग नहीं बढ़ी. अंग्रेजी
न्यूज़ पोर्टल-न्यूज़मिनट की रिपोर्ट के अनुसार 07 अप्रैल 2021 को केरल के कोरोना मरीजों
को प्रति दिन 20.6 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता थी और गैर कोरोना मरीजों के लिए
प्रति दिन 42.35 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता थी. इसके बाद, एक पखवाड़े के भीतर ही कोरोना मरीजों के लिए यह मांग बढ़ कर 31.60 मीट्रिक टन
प्रतिदिन हो गयी. गैर कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन की मांग में भी आंशिक वृद्धि हुई
और यह भी बढ़ कर 42.65 मीट्रिक टन प्रति दिन हो गयी. मांग में आए इस उछाल के बावजूद
वहां कोई अफरातफरी नहीं मची क्यूंकि वहां की सरकार और प्रशासन इस स्थिति से निपटने
के लिए तैयार था. राज्य सरकार ने हर मरीज की ऑक्सीजन जरूरतों का आकलन किए और उसके अनुसार
आपूर्ति सुनिश्चित की.
परंतु प्रश्न
यह है कि केरल ऐसा कैसे कर पाया. दरअसल केरल की पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली वाम मोर्चे
की सरकार ने महामारी के शुरू होने के साथ ही मार्च 2020 से राज्य की ऑक्सीजन जरूरतों
की निगरानी करना शुरू किया और तदनुसार अपनी उत्पादन क्षमताओं में वृद्धि की. न्यूज़मिनट
की रिपोर्ट के अनुसार केरल में प्रति दिन 199 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन
होता है,जबकि राज्य की प्रति दिन की औसत जरूरत 89.75 मीट्रिक टन है.
इंडिया टाइम्स में प्रकाशित केरल की स्वास्थ्य मंत्री
के.के.शैलजा के बयान के अनुसार अप्रैल 2020 में ऑक्सीजन उत्पादन 50 लीटर प्रति मिनट
था,जो अप्रैल 2021 में बढ़ कर 1250 लीटर प्रति मिनट हो गया है.
कोरोना से निपटने में केरल बीते वर्ष भी अव्वल था और इस
वर्ष भी ऑक्सीजन सप्लाइ में आगे है. बीते वर्ष कोरोना से निपटने के केरल के प्रयासों
को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 23 जून 2020 को अंतरराष्ट्रीय सेवा दिवस
के मौके पर आयोजित समारोह में केरल की स्वास्थ्य मंत्री के.के.शैलजा
को वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया. कोरोना से निपटने के केरल के प्रयासों के लिए
ब्रिटेन की पत्रिका-प्रोस्पेक्ट ने केरल की स्वास्थ्य मंत्री के.के.शैलजा को दुनिया
के 50 शीर्ष बुद्धिजीवियों की श्रेणी में पहला स्थान दिया.
महामारी के बीच महाराष्ट्र और अन्य गैर भाजपा राज्यों
की सरकारें, केंद्र पर ऑक्सीजन और दवा आपूर्ति के मामले में भेदभाव
का आरोप लगा रही हैं. ऐसे में कम्युनिस्ट शासित केरल ऑक्सीजन आपूर्ति के मामले में
दलगत घेरेबंदी से इतर मनुष्यता की मिसाल पेश कर रहा है. केरल से गोवा,तमिलनाडू, कर्नाटक जैसे राज्यों को ऑक्सीजन आपूर्ति, बिना किसी दलगत भेदभाव के की गयी. 18 अप्रैल को गोवा की भाजपा सरकार के स्वास्थ्य
मंत्री विश्वजीत राणे ने ट्विटर पर लिखा, “ मैं केरल की माननीय
स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर मैडम के प्रति आभार प्रकट करता हूं, जिन्होंने गोवा के कोविड मरीजों के लिए 20 हजार लीटर ऑक्सीजन उपलब्ध करवा
कर हमारी मदद की. गोवा के लोग कोविड 19 के विरुद्ध हमारी लड़ाई में आपके सहयोग के लिए
आपके आभारी हैं.”
प्रचार भले ही किसी का भी हो लेकिन बीते वर्ष और इस वर्ष
भी महामारी के संकट के बीच केरल की वाम मोर्चे की सरकार ने दिखाया कि प्रबंधन,नियोजन और संवेदनशीलता में सबसे आगे वही है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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