सल्ट उपचुनाव में अन्य बातों के अलावा कॉंग्रेस की
अंदरूनी उठापटक ने भी इसे काफी रोचक बनाए रखा. काँग्रेस में हमेशा ही अंदरूनी खींचातान
चलती रहती है,लेकिन
इस बार यह बेहद खुली थी. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कोशिश कर रहे थे कि वे कैसे भी
सल्ट का “रण” “जीत” लें और रणजीत लगे हुए थे कि कैसे उनकी बखिया उधेड़ी जाए !
इस उपचुनाव
के प्रचार के अंतिम दिन उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बारे में कॉंग्रेस
के पूर्व विधायक और हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में मुख्यमंत्री के सलाहकार रहे
रणजीत
रावत ने जो कुछ कहा, वह सनसनीखेज तो है ही,लेकिन बड़े कद के नेताओं के बौनेपन को भी प्रदर्शित करता है. जनता जिनको नायक
समझती है,वे किस कदर डरे हुए, दक़ियानूसी
और अंधविश्वासी लोग हैं,यह भी नजर आता है. रणजीत रावत कहते हैं
कि हरीश रावत के शासनकाल में भाजपा ने उनके विधायक तोड़ लिए और राष्ट्रपति शासन लगा
तो सरकार बचाने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेते हुए हरीश रावत ने सूअर कटवाए,बंदर कटवाए, शमशान में शराब से स्नान किया.
अपनी कुर्सी जाती देख कर व्यक्ति क्या-क्या कर सकता है, यह सत्ता की अंदरूनी काली कोठरी में एक समय दांत कटी रोटी रखने वाला व्यक्ति, दूसरे के बारे में बता रहा है,जो संयोगवश इस राज्य का
उस वक्त मुख्यमंत्री था. यह पूरा विवरण ही
उबकाई और जुगुप्सा पैदा करने वाला है.
हर वक्त सोशल मीडिया में सक्रिय रहने वाले हरीश रावत ने
इस बारे में कोई टिप्पणी अब तक नहीं की है.वैसे बाबाओं,तंत्रिकों और अंधविश्वासों के फेर में हमारे देश में मुख्यधारा की राजनीति
के तमाम चेहरे हमेशा से ही फंसे रहे हैं. अभूतपूर्व शक्तिशाली बताए जा रहे प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का बच्ची के बलात्कार की सजा काट रहे आसाराम बापू के साथ वीडियो सोशल
मीडिया में घूमता रहता है,जिसमें वे आसाराम के आशीर्वाद के लिए
बेहद कृतज्ञ दिखाई देते हैं. रामरहीम से लेकर रामपाल तक जेल की हवा खा रहे तथाकथित
संतों से सत्ताधारियों के रिश्ते भले किससे छुपे हैं ?
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से लेकर देवराहा बाबा तक
के दर पर इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी नतमस्तक रहते थे. तांत्रिकों के पास हरीश रावत
के जाने से खुद को आहत बताने वाले रणजीत रावत शायद चंद्रास्वामी को भूल गए हैं,जिन्हें कॉंग्रेस
के ही काल में राष्ट्रीय तांत्रिक जैसा दर्जा हासिल था !
रणजीत
रावत ने बात तो खोली पर आधी खोली है. जरा गौर करिए तो वे सिर्फ हरीश रावत की तांत्रिकों
क्रियाओं से आहत होते हैं,उनके राज में पनपे भ्रष्टाचार से नहीं. डेनिस शराब का जो जलवा जो हरीश रावत
के राज में था,उसे कौन भूल सकता ! उत्तराखंड के शराब के बाजार
में डेनिस का कहर इस कदर व्याप्त था कि बाकी शराब कंपनियां डेनिस वर्चस्व के खिलाफ
उच्च न्यायालय,नैनीताल गयी और वहाँ हरीश रावत की कॉंग्रेस सरकार
के खिलाफ कॉंग्रेस के बड़े नेता पी.चिदंबरम शराब कंपनियों की तरफ से वकील के तौर पर
खड़े हुए. इस मामले में उच्च न्यायालय ने हरीश रावत सरकार के खिलाफ बेहद तल्ख टिप्पणी
की थी. आईएएस अफसर मोहम्मद शाहिद के स्टिंग में तो शाहिद मुख्यमंत्री कार्यालय में
लेनदेन के मामले में तब मुख्यमन्त्री के सलाहकार रहे रणजीत रावत का नाम भी लेते हैं.
ऐसे बहुत
से मसले हैं,जिनमें हरीश रावत के मुख्यमंत्री काल में जनहित में फैसला नहीं लिया गया पर
रणजीत रावत इनसे आहत नहीं हुए. वे हरीश रावत द्वारा अपनी सरकार बचाने के लिए की गयी
तांत्रिक क्रियाओं से आहत हुए. रणजीत रावत के बयान से ऐसा भान होता है कि हरीश रावत
पहले तो ऐसे न थे और सत्ता बचाने के लिए हरीश रावत ऐसे हो गए तो रणजीत रावत का मन खिन्न
हो उठा.
हकीकत यह है कि हरीश रावत तो पहले से ऐसे ही थे.
उन्होंने मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल की शुरुआत भी ऐसे ही अंधविश्वास के साये में
की थी. जिस मुख्यमंत्री की कुर्सी को पाने के लिए हरीश रावत ने 14 साल उठापटक की थी, मुख्यमंत्री
बनने के बाद शुरुआती तीन दिन वे उस कुर्सी पर नहीं बैठे ! मुख्यमंत्री कार्यालय में
वे सोफ़े पर बैठ कर काम करते रहे क्यूंकि किसी ज्योतिषी ने उन्हें शुभ मुहूर्त तीन दिन
बाद होने की बात कही थी. मुख्यमंत्री आवास में रहने के बजाय वे बीजापुर गेस्ट हाउस
में रहे क्यूंकि मुख्यमंत्री आवास के बारे में यह अंधविशवास प्रचलित है कि वहां रह
कर कोई मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता !
गौर करने की बात यह है कि इतने अंधविश्वास,टोटके और तंत्र
जिनका जिक्र रणजीत रावत कर रहे हैं,वे भी हरीश रावत और उनके नेतृत्व
में कॉंग्रेस की हार नहीं टाल सके. पर रणजीत रावत शुरुआती टोटकों से आहत नहीं हैं,केवल आखिरी के तंत्र मंत्र से आहत हैं,ये बात हजम नहीं
होती. जो रणजीत रावत की हरीश रावत से अदावत है,साफ लगता है कि
उसकी जड़ें कहीं और हैं. लोक में कहावत है कि चोर का माल चंडाल खाये ! पर ऐसी परिस्थिति
में मुख्यमंत्री और उनके सलाहकार के झगड़े के संदर्भ में कोई कहावत अब तक देखने में
नहीं आई ! हो सकता है,यह झगड़ा कुछ नयी कहावतों के सृजन का सबब
बने !
-इन्द्रेश मैखुरी
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उफ्फ
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