24 अप्रैल 2021 को रामनगर(उत्तराखंड) के एक्टिविस्ट,संस्कृतिकर्मी
अजित साहनी कोरोना का शिकार हो बैठे. उनके संदर्भ में रामनगर के पत्रकार खुशाल रावत
ने अपने पोर्टल एटम बम(ATOM BOMB) के फेसबुक ग्रुप में लिखा कि
हल्द्वानी के सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती अजित साहनी को “रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो पाया. बताया
जा रहा है कि रात वेंटीलेटर पर ऑक्सीजन बंद हो गयी थी,हॉस्पिटल
में कोई देखने वाला नहीं था. सुबह उन्हीं के बगल में एक अन्य मरीज की तड़प तड़प कर
मौत हो गयी थी.” हालांकि इसके साथ ही सीएमओ डॉ. भागीरथी जोशी का बयान भी है,जिसमें कहा गया है कि “हॉस्पिटल
में ऑक्सीजन की व्यवस्था ठीक हैं रात में भी वहां डॉक्टर राउंड पर रहते हैं.” परंतु
जैसी उत्तराखंड में आम तौर पर और सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज,हल्द्वानी में भी स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर स्थिति है,उसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जैसा खुशाल रावत लिख रहे
हैं,वैसे हालत रहे हों. यह अफसोसनाक है
कि इन लचर व्यवस्थाओं की कीमत व्यक्ति को अपने प्राणों के रूप में चुकानी पड़ती है.
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति किस कदर गंभीर है और कोरोना काल में लोगों के लिए एक अदद बेड हासिल करना कितना मुश्किल है,इसकी बानगी आज के दैनिक हिंदुस्तान में छपी एक खबर से समझी जा सकती है. खबर है कि उत्तराखंड सरकार में वन,पर्यावरण और श्रम जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री हरक सिंह रावत के भांजे को कोरोना पॉज़िटिव होने के बाद आईसीयू की आवश्यकता थी.
मंत्री जी
का बयान छपा है अखबार में कि स्वयं उन्होंने दून अस्पताल, एम्स
ऋषिकेश सहित सभी छोटे-बड़े अस्पतालों को फोन किया,लेकिन एक आईसीयू
बेड नहीं मिल पाया. अखबार में प्रकाशित बयान में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा
“स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही से यह हाल हो रहा है.
अफसर सरकार के सामने बातें ज्यादा और काम कम कर रहे हैं. अफसरों के इस रवैये से सरकार
की छवि तो खराब होगी ही,साथ ही महामारी में सरकार की जनता की
मुसीबतें बढ़ेंगी.” एक व्यक्ति जो राज्य बनने के बाद से निरंतर विधायक है, नेता प्रतिपक्ष रहा है और बीते नौ वर्षों से लगातार चार मुख्यमंत्रियों के
मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री है,यदि वह इस कदर असहाय है तो
सोचिए कि आम जन की क्या हालत होगी ? वह इस जड़ और संवेदनहीन तंत्र
से कैसे पार पाएगा और कैसे अपने प्राण बचाएगा ?
सरकारी तंत्र की जानलेवा सुस्ती की दास्तान कल 24 अप्रैल के दैनिक जागरण में बयान की गयी है.
अखबार के अनुसार गढ़वाल मण्डल के टिहरी,उत्तरकाशी,पौड़ी,रुद्रप्रयाग और चमोली जिले में 60-60 लाख रुपये की लागत से ऑक्सीजन
प्लांट तो लग गए हैं,परंतु उत्पादन शुरू नहीं हुआ है. इसलिए इन
जिलों के अस्पताल भी ऑक्सीजन की सप्लाइ के लिए देहारादून की एजेंसियों पर निर्भर हैं.
कुमाऊँ मण्डल में बागेश्वर में 1.14 करोड़ रुपये की लागत से ऑक्सीजेन जनरेशन प्लांट
प्रस्तावित है पर बजट की कमी के कारण काम नहीं हो सका. चंपावत जिले में भी प्लांट अभी
नहीं लगा. खबर के अनुसार पिथौरागढ़ में एक हफ्ते के भीतर प्लांट स्थापित करने का दावा
किया जा रहा है. अल्मोड़ा में बेस अस्पताल में एक वर्ष से ऑक्सीजन प्लांट लगाने की तैयारी
चल रही पर अभी काम पूरा नहीं हुआ. नैनीताल में भी प्लांट लगाने की प्रक्रिया अभी पूरी
नहीं हुई है. उधमसिंह नगर के जिला अस्पताल में जरूर ऑक्सीजन प्लांट शुरू हो गया है
और इसका क्षमता 60 सिलेन्डर है. एक वर्ष पहले कोरोना संक्रमण फैलने के दौरान ऑक्सीजन
आपूर्ति की दिक्कतों को देखते हुए, सभी जिलों के अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने
के सरकारी निर्णय के बावजूद अधिकांश जिलों में ऑक्सीजन प्लांट शुरू न होना सरकारी तंत्र
की जानलेवा सुस्ती का एक और नमूना है,जिसकी कीमत आम आदमी को चुकानी
होगी.
मुख्यमंत्री जी अपने तंत्र
के नट-बोल्ट कसिए ताकि वह इस जानलेवा सुस्ती से बाहर निकले.
-इन्द्रेश मैखुरी
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