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इलाहबाद उच्च न्यायालय ने जो कहा वह सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात नहीं पूरे देश की हकीकत है

 




बीते दिनों उत्तरा प्रदेश के प्रमुख महानगरों में कोरोना के चलते बिगड़ती स्थिति के संबंध में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेकर जो फैसला सुनाया,वह उत्तर प्रदेश में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने वाला है. इलाहबाद उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने अपने 15 पन्नों के फैसले में लिखा,वह किसी भी संवेदनशील सरकार के लिए शर्मिंदगी का सबब होना चाहिए,जिसे सरकार के जमीर को झकझोरना चाहिए. परंतु फिर सवाल पैदा होता है कि सरकार इतनी संवेदनशील होती तो ऐसे हालात पैदा होते ही क्यूं ?


होने को तो इस फैसले में उत्तर प्रदेश के पाँच बड़े शहरों-प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर और बनारस में लगभग ध्वस्त हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था पर टिप्पणी है और उसके मद्देनजर कुछ कदम उठाने के निर्देश दिये गए हैं. लेकिन गौर से पढ़ें तो ऐसा मालूम पड़ता है,जैसे अदालत ने सारे देश की हकीकत बयान कर दी हो.


अपने फैसले में दोनों न्यायमूर्ति लिखते हैं कि किसी सभ्य समाज में यदि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा यदि चुनौतियों का सामना नहीं कर पाती और लोग उचित इलाज के अभाव में मर जाते हैं तो इसका मतलब है कि सही विकास हुआ ही नहीं है. अदालत ने लिखा की हमारा मत है कि लोकतंत्र में जनता की वैध अपेक्षाएं हैं कि वह सरकार से अन्य जनहित के मुद्दों की तरह सार्वजनिक स्वास्थ्य के मसलों के हल की उम्मीद करे. आज जो स्वास्थ्य में समस्याएं विकराल रूप ले चुकी हैं,इसके लिए वे जिम्मेदार हैं जो राजकाज के संचालन की जगहों पर बैठे हैं और यह बात इसलिए भी अधिक रेखांकित करने वाली है क्यूंकि यहां लोकतंत्र है,जिसका मतलब जनता की सरकार,जनता के लिए,जनता के द्वारा होता है.


उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों के संदर्भ में अदालत ने लिखा कि हमें बताया गया है कि हर मोहल्ले के हर पांचवें घर में लोग इंफ्लुएंज़ा जैसे संक्रमण लोग ग्रसित हो रहे हैं और ट्रेकिंग-ट्रेसिंग और टेस्टिंग व्यवस्था यदि असफल न भी कही जाये तो भी वह जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रही है. पर्याप्त स्टाफ के अभाव के कारण रिपोर्टें न तो 72 घंटे से पहले अपडेट हो रही हैं,ना ही सैंपलों का ठीक से रखरखाव हो रहा है. केवल वीवीआईपी लोगों को ही 6 से 12 घंटे के भीतर रिपोर्ट मिल रही है. इसलिए लोगों के जल्दी टेस्ट करने की योजना छलावा है.


अदालत के अनुसार बड़ी संख्या में चिकित्सा और स्वास्थ्य कर्मी कोरोना से संक्रमित हो कर क्वारंटीन हैं और इसलिए चिकित्सा स्वास्थ्य की व्यवस्था की व्यवस्था को एक तिहाई लोग चला रहे हैं और वे भी चौबीसों घंटे काम करने के चलते पस्त हो रहे हैं. अगर मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ को राहत न दी गयी तो सारा तंत्र ध्वस्त हो जाएगा और राहत व उपचार केवल वीआईपी और वीवीआईपी तक सीमित हो जाएगा. सरकारी अस्पतालों में मरीजों की आईसीयू में भर्ती वीआईपी लोगों की संस्तुति पर पर हो रही है.  रेमडिसीवर भी केवल वीआईपी संस्तुति पर मिल रही है.


अदालत ने लिखा कि यह शर्मनाक है कि सरकार को कोरोना की दूसरी लहर की तीव्रता का अंदाज़ा होने के बावजूद उसने उससे निपटने की कोई योजना पहले नहीं बनाई. अदालत ने लिखा कि अगर लोग पर्याप्त चिकित्सीय सहायता के अभाव में मरते हैं तो इसके लिए दोष सरकारों को ही दिया जाएगा,जो एक वर्ष के अनुभव और सबक के बावजूद महामारी से निपटने में विफल रही हैं.


उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनावों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अदालत ने कहा कि सरकार और राज्य चुनाव आयोग के चुनाव कराने के फैसले ने शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों को महामारी के वर्तमान में आसन्न संकट की ओर धकेल दिया. जन स्वास्थ्य पर चुनाव को तरजीह देते हुए पुलिस को मतदान स्थलों पर भेज दिया गया.


अदालत ने कहा कि जहां चुनाव हो रहे हैं,वहां की तस्वीरें बता रही हैं कि सामाजिक दूरी का पालन नहीं किया गया. विभिन्न राजनीतिक रैलियों में लोगों द्वारा कभी भी मास्क नहीं पहने गए. ऐसी रैलियों के आयोजकों के विरुद्ध महामारी अधिनियम और अन्य क़ानूनों के तहत पुलिस को कार्यवाही करने का आदेश अदालत ने दिया. उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में बिना मास्क और बिना उचित दूरी वाली बड़ी-बड़ी रैलियों के आयोजकों के विरुद्ध कार्यवाही का आदेश उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने दे दिया. देश भर में महामारी के चरम के बीच  चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाते और उस भीड़ की संख्या पर प्रफुल्लित होते प्रधानमंत्री और हर रैली में बिना मास्क के भारी भीड़ के बीच घूमते गृह मंत्री के विरुद्ध भी कोई अदालत ऐसा आदेश करने का साहस इस देश में करेगी ?




 

अदालत ने लिखा कि लोग हम पर हँसेंगे कि हमारे पास चुनावों में खर्च करने के लिए पर्याप्त है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खर्च करने के लिए बेहद कम है. अदालत की इस टिप्पणी के आइने में कोरोना के चलते देश भर में मचे हाहाकार के बीच ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां करते प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का अक्स देख सकते हैं. 

 

 इलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा इस फैसले में पाँच शहरों में लॉकडाउन के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय चली गयी और  उक्त लॉकडाउन के आदेश पर उच्चतम न्यायालय ने स्थगनादेश(स्टे) भी दे दिया. लेकिन इलाहबाद उच्च न्यायालय के कही गयी बातें उत्तर प्रदेश के उस योगी राज की पोल पट्टी तो खोलती हैं,जिसके कसीदे भाजपाई पूरे देश में पढ़ते घूमते हैं. साथ ही व्यापक रूप में देखें तो यह सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात नहीं पूरे देश में सरकारी नाकामी की दास्तान है.


-इन्द्रेश मैखुरी

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