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एक डरी हुई हुकूमत !

 






रिक्शा चलाने वाले, लकड़ी का फ्रेम बनाने वाले,ध्याड़ी पर पोस्टर चिपकाने वाले, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले दिल्ली पुलिस द्वारा बेहद “बहादुरी पूर्वक” गिरफ्तार कर लिए गए ! और क्यूँ करना पड़ा दिल्ली पुलिस को यह बहादुरी का कारनामा ? क्यूंकि ये जो निरीह किस्म के लोग हैं,जो ध्याड़ी-मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं,इन्होंने भारी गुनाह किया था. यह गुनाह था कि इन्होंने दिल्ली में कुछ पोस्टर चिपकाए थे. दरअसल इन पोस्टरों की इबारत ऐसी थी,जिसने इस देश की सर्वशक्तिशाली हुकूमत और उसके 56 इंची मुखिया से सवाल पूछने की हिमाकत की थी. इन पोस्टरों पर लिखा था- “मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यूं भेज दिया.” इस गुनाह के लिए दिल्ली में अब तक 25 एफ़आईआर दर्ज किए जा चुकी हैं और ध्याड़ी-मजदूरी करने वाले 25 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. उनमें से कुछ लोग जमानत पर रिहा हो चुके हैं.


देश में कोरोना की दूसरी लहर के चलते हाहाकार मचा हुआ है. ऑक्सीजन, आईसीयू, दवाओं के अभाव में हजारों लोग जान गंवा चुके हैं. लाशें जलाने के लिए शमशान कम पड़ रहे हैं. इसलिए लाशें नदी तटों पर रेत में दबाई जा रही हैं. लावारिस अवस्था में लाशें उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक नदियों में बह रही हैं,उन्हें कुत्ते नोच रहे हैं. इसके बावजूद इस देश की प्रचंड बहुमत वाली सरकार को ये तमाम घटनायें द्रवित नहीं करती,लेकिन एक पोस्टर से वह बौखला उठती है, आपा खो बैठती है. मजदूरी कमाने के लिए पोस्टर लगाने वालों को भी वह सर्वशक्तिमान हुकूमत अपनी नाफरमानी के लिए जेल भेज कर सबक सिखाना चाहती है. यह आत्ममुग्धता और तानाशाही की इंतहा है.


यह वो पोस्टर है,जिसके चिपकाने के लिए साधारण ध्याड़ी मजदूरों को तक केंद्र सरकार ने जेल भिजवा दिया.






 यह पोस्टर इस अहद के साथ साझा किया जा रहा है कि यदि इस पोस्टर को प्रदर्शित करना गुनाह है तो यह लेखक भी इसके लिए जेल जाने के लिए स्वयं को प्रस्तुत करता है.


और अकेला पोस्टर ही नहीं है,जिसने इस देश की महाशक्तिशाली सत्ता और सत्ताधारी पार्टी को बेचैन किया हुआ है. बल्कि वे तो कविता से भी हलकान हैं. जिस गुजरात मॉडल का भाजपा ढिंढोरा पीटती रही है,उसी गुजरात से यह कविता भी आई है. यह कविता लिखी है गुजराती कवियत्री पारुल कक्कड़ ने. पारुल कोई वामपंथी या उदारवादी नहीं हैं,बल्कि वे भाजपा की अब तक प्रिय रही हैं. अब तक आरएसएस से जुड़े पत्रकार, पारुल कक्कड़ को गुजराती कविता की अगली सबसे बड़ी कवियत्री बता रहे थे. लेकिन आज भाजपा की ट्रोल आर्मी, पारुल को चरित्रहीन, अनैतिक,देशद्रोही आदि-आदि विश्लेषणों से नवाज रही है,जिनसे आम तौर पर वह अपने विरोधियों को नवाजती रहती है. अंग्रेजी न्यूज़पोर्टल- द वायर- के अनुसार पारुल के सोशल मीडिया एकाउंट और उनकी कविता को शेयर करने वाले एक लाख से अधिक सोशल मीडिया एकाउंट्स में 28000 से अधिक स्त्री विरोधी गालियां दी जा चुकी हैं. और यह सब इसलिए कि पारुल ने 14 पंक्तियों की एक कविता गुजराती में लिख दी,जिसका हिन्दी,बांग्ला,असमिया,अंग्रेजी समेत कई  भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. आइये वह कविता भी देख लेते हैं,जिससे गुजरात में खलबली मची हुई है :


   एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

नित लगातार जलती चिताएँ
राहत माँगे पलभर
नित लगातार टूटे चूड़ियाँ
कुटती छाती घर घर
देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति
काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती
हो हिम्मत तो आके बोलो
मेरा साहेब नंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा


-हिन्दी अनुवाद : इलियास शेख


इस देश के महाशक्तिशाली सत्ता,उसके शिखर पुरुष, तड़पते लोगों को देख कर भले ही विचलित न होते हैं पर अपने विरुद्ध चिपका एक पोस्टर,अपने विरुद्ध लिखी एक कविता,उन्हें हिला कर रख देती है. उनके सीने की चौड़ाई का जितना भी ढोल पीटा गया हो पर पोस्टर और कविता से थरथराने वाले लोग और उनकी हुकूमत बेहद डरी हुई है. इससे यह भी पता चलता है कि पोस्टर पर लिखे शब्द और कवितायें अब भी तानाशाह हुकूमतों को भयभीत करने वाले सबसे बड़े अस्त्र हैं.


-इन्द्रेश मैखुरी

 

 

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