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हालत बहुत खराब है, चलो इमेज सुधारें !

 






भारत में कोरोना के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. बीते चौबीस घंटे में 4 लाख से अधिक लोगों के संक्रमित होने और 3980 मौतों की खबर है. ऑक्सीजन, आईसीयू, दवाइयों को लेकर हाहाकार बीते कुछ दिनों से आम परिघटना बनती जा रही है.


ऐसी विकट स्थितियों के बीच कोई थोड़ी भी संवेदनशील सरकार होगी तो वह हालात को काबू करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास चलाएगी. सरकारी प्रयासों की गवाही आए दिन देश के उच्चतम न्यायालय से लेकर विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों द्वारा सरकार पर की जा रही टिप्पणियों दे रही हैं. सरकार को रेत में गर्दन डाले शतुरमुर्ग से लेकर, ऑक्सीजन से होती मौतों को नरसंहार तक, बड़ी अदालतें कह चुकी हैं.


लेकिन लगता है कि केंद्र की सरकार हालात की विकटता और अदालती टिप्पणियों से बेपरवाह है. इसलिए स्थितियों की गंभीरता की चिंता तो उसे उतनी नहीं है,अलबत्ता छवि निर्माण की चिंता जरूर है. लोगों के त्राहि-त्राहि करने के बीच भी केंद्र सरकार की सर्वोपरि चिंता यही है कि उसकी छवि पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ना चाहिए. इसलिए छवि चमकाने के लिए बकायदा कार्यशाला आयोजित की जा रही है. अंग्रेजी अखबार-हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 05 मई को दिल्ली में केंद्र सरकार की छवि निर्माण और उसके बारे में बनती धारणा को बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार के 300 प्रमुख अफसरों की एक वर्चुअल कार्यशाला आयोजित की गयी. 90 मिनट की इस कार्यशाला को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी संबोधित किया. कार्यशाला का शीर्षक था- इफेक्टिव कम्युनिकेशन यानि प्रभावशाली संचार.





इस कार्यशाला का मकसद बताया गया- सरकार की सकरात्मक छवि निर्माण, परसेप्शन यानि धारणाओं को “मैनेज” करना और सरकार को त्वरित कार्यवाही करने वाली, मजबूत, मेहनत करने वाली और संवेदनशील के रूप में पेश करना.


कोरोना काल में जब सत्ता पक्ष के लोग तक इलाज के मामले में असहाय हैं तो  ठोस धरातलीय कार्यवाही के बजाय इस तरह की इमेज बिल्डिंग की कार्यशाला आयोजित करना, इलाज के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे लोगों के साथ एक भद्दा मज़ाक है.  कार्यशाला के निर्धारित उद्देश, केंद्र सरकार के नाकारेपन की कहानी भी खुद बयां कर रहे हैं. कोई सरकार संकट के वक्त में अपने लोगों के साथ खड़ी होगी तो उसकी छवि स्वतः ही लोगों के बीच में सकारात्मक बनेगी. तब इसके लिए सरकार को अफसरों को छवि बनाने के लिए घुट्टी नहीं पिलानी पड़ेगी. काम करने वाली सरकार को अपने बारे में बनती धारणाओं को “मैनेज” करने की घुट्टी नहीं पिलानी पड़ती ! चरम महामारी के बीच यदि कोई सरकार 300 प्रमुख अफसरों को छवि निर्माण की घुट्टी पिलाने के लिए वर्चुअली इकट्ठा कर रही है तो उस सरकार की प्राथमिकता स्पष्ट तौर पर जनता के जीवन से अधिक खुद का प्रचार है.


दरअसल केंद्र की मोदी सरकार की महारत एक ही काम में है और वो है प्रचार व  मीडिया मैनेजमेंट. संवेदनशील हो कर आम जन के बारे में सोचने के मामले में वे कच्चे हैं. इसलिए महामारी के संकट के बीच भी उन्हें यही सूझ रहा है कि संकट कम करने को तो ज्यादा कुछ कर नहीं सकते, चलो इमेज ही बनाए रखें !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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