लगभग साल भर पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति
डोनल्ड ट्रंप ने भारत को लगभग धमकाते हुए भारत से कोरोना के उपचार के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
नामक दवाई भेजने को कहा. भारत सरकार कोरोना के इलाज में उस समय उसकी उपयोगिता को देखते
हुए,उस
के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चुकी थी. परंतु मानवीय मदद के नाम पर उक्त दवा अमेरिका
को भेजी गयी.
साल भर बाद विशेषज्ञों का मत है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
नामक इस मलेरिया रोधी दवा का कोरोना के इलाज में कोई महत्व नहीं है. इसके कार्डियक
साइड इफेक्ट्स को देखते हुए यूरोपियन यूनियन ने तो इसे प्रतिबंधित कर दिया
है. लेकिन भारत में यह अभी भी कोरोना के उपचार में “चल भी सकती है- may do” श्रेणी में चल रही है.
भारत में कोरोना के उपचार में ऐसी बहुत सारी चीजें प्रयोग
में लायी जा रही हैं,जिन्हें वैज्ञानिक खारिज कर चुके हैं.
इनमें से ऐसी बहुत सारी दवाइयों हैं,जिनके लिए मारामार मची हुई
है और उनकी कालाबाजारी तक हो रही है. ऐसे ही एक इंजेक्शन का नाम है- रेमडेसीवर. विशेषज्ञ चिकित्सकों का मत है कि यह जीवन रक्षक
दवाई नहीं है. यह केवल उनके अस्पताल में रहने की अवधि को घटाने के काम आता है,जो न्यूनतम ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं. जो वेंटीलेटर
और हाई ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं,उनके लिए यह किसी काम का नहीं है.
ऑनलाइन पोर्टल- स्क्रॉल में छपे साक्षात्कार में होली फैमिली अस्पताल दिल्ली के क्रिटिकल
केयर डिपार्टमेंट के डॉ.सुमित रे के अनुसार रेमडेसीवर उनके लिए उपयोगी है,जिनको बहुत कम मात्रा में-2 से 4 लीटर- ऑक्सीजन की जरूरत
हो. चूंकि यह जीवन रक्षक दवा नहीं है तो यदि आपका मरीज नाजुक आवस्था में है तो रेमडेसीवर
के लिए भागदौड़ और पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है.
स्क्रॉल में प्रकाशित साक्षात्कार में डॉ. गुंजन चंचलानी कहती हैं कि शुरू में
बुखार नियंत्रित करने की ही दवा देने की जरूरत है और दूसरे हफ्ते में
स्टेरॉइड्स,वह भी सही मात्र में,न कम और न ज्यादा.
रेमडेसीवर के
बारे में एक लेख 09 मई 2020 को अंग्रेजी पोर्टल- द साइंस
वायर में छपा. इस लेख का शीर्षक बड़ा रोचक है. शीर्षक है : रेमडेसीवर
– अ ड्रग इन सर्च ऑफ अ डिजीज़ यानि कि रेमडेसीवर- ऐसी दवा जो बीमारी की खोज में है
! रेमडेसीवर की उपयोगिता बताने के लिए यह शीर्षक ही पर्याप्त है. उक्त लेख बताता है
कि शुरू में रेमडेसीवर हेपेटाइटिस सी के लिए बनी थी पर इसे स्वीकृति नहीं मिली. फिर
इबोला, सार्स, मेर्स और मरबर्ग वाइरस इन्फ़ैकशन
पर भी यह इतनी प्रभावकारी सिद्ध नहीं हुई कि इसे स्वीकृति मिल पाती. कोरोना ने इसे
एक तरह से पुनर्जीवन दे दिया.
इसी तरह की मारमार प्लाज़्मा के लिए भी मची हुई है. मदद की गुहार लगाते लोगों में धीरे-धीरे प्लाज़्मा की मांग करने वालों के संख्या बढ़ती जा रही है. लगभग हर दूसरी मदद की गुहार प्लाज़्मा डोनेशन की है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने तो बकायदा अखबार में विज्ञापन जारी करके प्लाज़्मा डोनेशन की अपील की है. लेकिन प्लाज़्मा की प्रभावशीलता को भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) ही खारिज कर चुका है. डॉ अनूप अग्रवाल अमेरिका में डॉक्टर हैं और आईसीएमआर के प्लाज़्मा की प्रभावशीलता पर परीक्षण के प्रमुख थे. उन्होंने 29 अप्रैल 2021 को अंग्रेजी अखबार- द हिंदू- में एक लेख लिखा,जिसका शीर्षक है- मिसइन्फॉर्मड एंड मिसलीडिंग ! यह शीर्षक कोरोना के उपचार के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों पर सीधा प्रहार है.
आईसीएमआर और ब्रिटेन के शोध के हवाले से
वे लिखते हैं कि प्लाज़्मा कोरोना में जीवन नहीं बचाता है. वे लिखते हैं कि अर्जेन्टीना
का अध्ययन बताता है कि जहां बीमारी मंद अवस्था में है,वहाँ यदि
प्लाज़्मा बीमारी होने के तीन दिन में चढ़ा दिया जाये तो यह बीमारी को गंभीर रूप नहीं
लेने देता. वे लिखते हैं कि भारत के मामले में तीन दिन की अवधि मुश्किल है क्यूंकि
प्लाज़्मा आसानी से नहीं मिलता और दो से पाँच दिन तो आरटी-पीसीआर रिपोर्ट में आने में
लग जाते हैं. डॉ.अग्रवाल लिखते हैं कि कोई अच्छा शोध इसका समर्थन नहीं करता और डबल्यूएचओ
ने तो इसके आम(रूटीन) उपयोग के खिलाफ राय जाहिर की है.
आश्चर्यजनक है
कि तमाम विशेषज्ञों द्वारा उक्त दवाओं और उपचारों के बारे में नकारात्मक राय देने के
बावजूद वे इस साल 22 अप्रैल को जारी की गयी कोरोना की इलाज के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य
मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में शामिल हैं. 22 अप्रैल को इन दिशानिर्देशों को पुनरीक्षित
करने के बावजूद इसमें साल भर पहले यानि तब के उपचार और दवाएं शामिल हैं,जब दुनिया कोरोना के बारे में बेहद कम जानती थी और भारत में अभी केस आने शुरू
ही हुए थे. भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय अभी भी वहीं क्यूं अटका हुआ है,पता नहीं !
ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में कोरोना का उपचार भी वैसी
ही अराजकता का शिकार है,जैसा कोरोना का प्रबंधन है. चेतो सरकार,पहले ही बहुत देर हो चुकी है.
-इन्द्रेश मैखुरी
संदर्भ :
3. https://www.thehindu.com/opinion/op-ed/misinformed-and-misleading/article34433205.ece
4. https://science.thewire.in/health/remdesivir-a-drug-in-search-of-a-disease/
3 Comments
महत्वपूर्ण एवं शानदार लेख
ReplyDeleteबाप रे बाप !
ReplyDeleteइसका मतलब है आदमी के शरीर को प्रयोगशाला की तरह ट्रीट कर जान-बूझकर खिलवाड़ किया जा रहा है।
तभी तो अधिकांश मौत वही देखने को मिल रही हैं, जहां अस्पताल का दखल है।
😡😡😡😡😡😡😡😡
महत्वपूर्ण जानकारी!
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