उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज
ने एक बयान सामने आया है. बक़ौल सतपाल महाराज- कार्यकर्ता की बात सुनेंगे और कार्यकर्ताओं के काम करेंगे. कार्यकर्ताओं ने कहा कि सिंचाई
विभाग में बड़े ठेके निकलते हैं तो उनको यानि कार्यकर्ताओं को काम नहीं मिल पाता है.
इसलिए कार्यकर्ताओं की बात सुनते हुए सतपाल महाराज और उनकी सरकार ने सिंचाई
विभाग में छोटे-छोटे ठेकों का बंदोबस्त कर दिया है ताकि कार्यकर्ताओं को काम मिले.
सतपाल महाराज का यह बयान बड़ा रोचक है. रोचकता के इसमें
कई पहलू हैं. सतपाल महाराज स्व घोषित या यूं कहें कि उनके पिता द्वारा घोषित भगवान
हैं. धार्मिक प्रवचन करते-करते वे राजनीति में आए हैं. तो आम तौर पर उनको भक्तों और
कथा सुनने वालों की ही आदत होगी. लेकिन इस बयान से पता चला कि वे कथा करते ही नहीं
सुन भी लेते हैं !
दूसरी बात यह कि कार्यकर्ताओं की याद ऐसे वक्त में आई, जबकि चुनाव कुछ ही महीने दूर है. तो एक तरह से छोटे-छोटे ठेके, चुनावी खर्चा है, जो चुनावी बेला नजदीक देख कर बांटने
की तैयारी है. इससे यह पुनः सिद्ध होता है कि उनकी पार्टी में कार्यकर्ता मतलब ठेकेदार
है, जिसकी उनसे यही गुहार है कि महाराज ठेकों का आकार थोड़ा छोटा
रखो, ताकि हम भी खा-कमा सकें. यह भी ठीक है कि सरकार है तो ठेकेदारनुमा
कार्यकर्ता खा-कमा सकते हैं और कार्यकर्ता नुमा ठेकेदार जब खाएंगे-कमाएंगे, तभी तो वे चुनाव जितवाने में पूरा ज़ोर लगाएंगे !
सतपाल महाराज के बयान से यह ध्वनित होता है कि सिंचाई
विभाग के जो छोटे-छोटे ठेके निकाले जाएँगे, वे भाजपा कार्यकर्ताओं
को दिये जाएँगे. मन में यह जिज्ञासा है क्या कोई चुनी हुई सरकार ऐसा प्रावधान कर सकती
है कि अमुक विभाग से ठेके निकलेंगे और सिर्फ हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं को बांटेंगे
? क्या टेंडर की शर्तों में लिखा होगा कि उक्त ठेके को लेने के
लिए भाजपा कार्यकर्ताओं होना अनिवार्य शर्त होगी ?
यह तो ठेकेदार कार्यकर्ताओं या कार्यकर्ता ठेकेदारों की
बात हुई हुई. पर महाराज इस प्रदेश में और भी तो बहुत बेरोजगार हैं, जिन्हें रोजगार की दरकार है. प्रदेश सरकार के सेवायोजन कार्यालय नाममात्र
के रह गए हैं, जहां से रोजगार मिलना आसमान से तारे तोड़ना जितना
ही कठिन है. कार्यकर्ताओं के लिए ठेकों का इंतजाम करने वाले सतपाल महाराज जिस सरकार
में मंत्री हैं, पीसीएस की परीक्षा, उस
सरकार के राज में एक बार भी नहीं हुई. फॉरेस्ट गार्ड की परीक्षा हुई तो उसमें घपला
हो गया. बेरोजगारी दर निरंतर बढ़ रही है.एक
आंकड़े के अनुसार प्रदेश में बेरोजगारी दर पिछले पाँच सालों में छह गुनी बढ़ गयी है.
ये जो नौजवान हैं, जो पढ़ लिख कर दर-दर
की ठोकरें खा रहे हैं,कुछ इनके बारे में भी सोचो महाराज ! माना
ये ठेकेदार नहीं, चुनाव में पैसा नहीं लगा सकते पर सत्ता तक तो
इन्हीं के कंधों पर सवार हो कर पहुँचते हो !
-इन्द्रेश मैखुरी
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