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सेहत ही नहीं आर्थिक हालत भी नाजुक है कोरोना के कारण

 





कोरोना की दूसरी लहर में अस्पताल,दवा,ऑक्सीजन आदि के लिए मची त्राहि-त्राहि को पूरे देश ने देखा. अब सामने आ रही रिपोर्टें बता रही हैं कि कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों की सेहत को ही नष्ट नहीं किया बल्कि उनके आर्थिक हालत को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है.


अंग्रेजी अखबार- इंडियन एक्स्प्रेस में छपी एक रिपोर्ट, कोरोना के इलाज में आर्थिक रूप से टूट चुके लोगों की एक बानगी पेश करती है. इंडियन एक्सप्रेस में- wrecked by hospital bills, some turn to online fundraisers शीर्षक से सुकृता बरुआ की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना और कोरोना से उबरने के बाद उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के मरीजों के परिजनों की आर्थिक हालत इलाज कराते-कराते इस कदर बिगड़ चुकी है कि अब वे ऑनलाइन क्राउड फंडिंग के जरिये अस्पतालों के मंहगे बिल चुकाने की कोशिश कर रहे हैं.





उक्त रिपोर्ट, ऑनलाइन क्राउड फंडिंग करने वाले दो प्लैटफ़ार्म- केट्टो (Ketto) और मिलाप के हवाले से बताती है कि इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर में बड़ी तादाद में लोगों ने उनके प्लैटफ़ार्म पर कोरोना के इलाज के खर्च के लिए पैसा जमा करने के अभियान चलाये. इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केट्टो पर इस वर्ष 20 अप्रैल से 31 मई तक कोविड संबंधी मामलों के लिए धन एकत्र करने के चार हजार अभियान चलाये गए,जिसमें से 40 प्रतिशत अस्पताल और इलाज के लिए थे. ऐसे अभियानों में लक्षित रकम 5 लाख से 50 लाख रुपये तक थी.


मिलाप पर कोविड उपचार के लिए धन एकत्र करने के लिए दो हजार अभियान चले और इनमें से अधिकांश आईसीयू और वेंटिलेटर का खर्च वहन करने के लिए थे. रिपोर्ट के अनुसार इस प्लैटफ़ार्म पर इन अभियानों में अब तक अड़तालीस करोड़ रुपए एकत्र हुए है.


केट्टो के सह-संस्थापक वरुण शेठ के हवाले से रिपोर्ट बताती है कि पिछले वर्ष कोरोना के समय जो अधिकांश धन एकत्र करने के अभियान चले, वे प्रवासी मजदूरों को घर पहुँचने में मदद करने के लिए या आजीविका गंवा चुके लोगों की मदद के लिए चले. जबकि इस वर्ष जो अभियान चले वे इलाज संबंधी खर्चों की पूर्ति के लिए चले. यानि पिछले वर्ष सामूहिक मदद के लिए अभियान चलाए जा रहे थे,जबकि इस वर्ष लोग व्यक्तिगत दिक्कतों से उबरने के लिए इन ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स का उपयोग कर रहे थे.


यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऑनलाइन पहुँच कितने लोगों की है और उसमें भी धन एकत्र करने के लिए इस तरह के ऑनलाइन प्लैटफ़ार्म का इस्तेमाल कितने लोग कर पाएंगे और कितने मानसिक रूप से ऐसा करने को तैयार हुए होंगे ? यानि कि मंहगे इलाज के चलते खराब आर्थिक स्थिति में इलाज का खर्च पूरा करने के लिए धन एकत्र करने के लिए ऑनलाइन प्लैटफ़ार्म का इस्तेमाल करने वाली एक बहुत छोटी संख्या ही होगी.


लेकिन यह छोटी संख्या यह बताने के लिए पर्याप्त है कि महामारी के समय मंहगे इलाज ने किस तरह लोगों को आर्थिक रूप से तोड़ दिया है. निश्चित ही इलाज के चलते आर्थिक रूप से टूट चुके लोगों को तत्काल सरकार द्वारा मदद पहुंचाई जानी चाहिए. दूरगामी सबक इसका यह है कि स्वास्थ्य सुविधाएं, जो कि जीवन रक्षक सुविधाएं हैं, वे मुनाफे की व्यवस्था यानि निजी हाथों में नहीं होनी चाहिए. स्वास्थ्य सुविधाओं के राष्ट्रीयकरण के जरिये ही लोगों को इलाज कराने के चलते पैदा होने वाली आर्थिक तबाही से बचाया जा सकता है.


 -इन्द्रेश मैखुरी  

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