उत्तराखंड में कुछ समय से सोशल मीडिया और खास तौर
पर ट्विटर पर एक हैश टैग ट्रेंड कर रहा है- #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून ! यह कैसे शुरू हुआ पता नहीं,लेकिन राज्य के युवा जो ट्विटर पर सक्रिय हैं, उनके बीच यह खूब प्रसारित
हो रहा है.
हालांकि
यह हैशटैग तीन-साल देर से चल रहा
है. 2018 में त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री रहते, औद्योगिक प्रयोजन
के नाम पर पहाड़ में ज़मीनें बेचने पर लगी सब पाबंदियों हटा दी गयी. 2019 में मैदानी
इलाकों के लिए भी त्रिवेंद्र रावत जी की सरकार ने यह प्रावधान कर दिया.
कल ट्विटर पर एक युवा ने मुझसे पूछा कि आप भू कानून के अभियान का समर्थन क्यूं नहीं करते ! मैं 2018 से इस कानून की खिलाफत करता रहा हूँ. केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने विधानसभा में इस विधेयक का विरोध किया और उनके मार्फत जानकारी मिलने पर मैंने इसके खिलाफ निरंतर लिखा-बोला.
2018 में ही फेसबुक लाइव के जरिये जमीन-खरीद बिक्री के कानून में बदलाव के खतरों से आगाह किया, जिसे नीचे दिये वीडियो में देखा जा सकता है
असल लड़ाई तो 2018 में भू कानून
में बदलाव को निरस्त करवाने की है. भू कानून में क्या-क्या बदलाव किया गया,देश के अन्य पहाड़ी राज्यों में क्या प्रावधान हैं, इसको
समझने के लिए पुराना लेख पुनः प्रस्तुत है :
उत्तराखंड में भाजपा की डबल इंजन की सरकार का यदि
किसी बात पर सर्वाधिक ज़ोर नज़र आ रहा है तो वह है,ज़मीनों की
बिक्री को सुगम बनाने में.
जमीन खरीद-बिक्री के कानून को बदलने के लिए सरकार
कितनी उद्यत है,इसका अंदाज लगाने के लिए सरकार द्वारा कानून में
किए गए बदलाव के घटनाक्रम को देखिये. 06अक्टूबर 2018 को उत्तराखंड सरकार भू कानून
को बदलने के लिए अध्यादेश ले कर आई. फिर 06 दिसंबर 2018 को भू कानून में बदलाव का
संशोधन विधेयक,विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पारित करवाया
गया. 04 जून 2019 को मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया
गया कि उत्तराखंड के मैदानी जिलों-देहारादून,हरिद्वार,उधमसिंह नगर में भूमि
की हदबंदी(सीलिंग) खत्म कर दी जाएगी.इन जिलों में भी
तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी. इसके लिए सरकार ने अध्यादेश लाने का
ऐलान भी किया.
आइये,अब यह समझ लेते हैं कि उत्तराखंड सरकार जमीन के क़ानूनों में कैसा फेरबदल कर रही है. इसके लिए उत्तराखंड की विधानसभा में सरकार द्वारा पास करवाए गए संशोधन अधिनियम पर चर्चा करना समीचीन होगा.
04-06 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड की
विधानसभा के शीतकालीन सत्र हुआ. इस सत्र में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि
सुधार अधिनियम,1950 में
संशोधन का विधेयक पारित करवाया. इस संशोधन के तहत उक्त विधेयक में धारा 143(क)
जोड़ कर यह प्रावधान किया गया कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे
या फिर उससे कोई भूमि क्रय करे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग से कोई
प्रक्रिया नहीं अपनानी पड़ेगी. औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही उसका भू
उपयोग स्वतः बादल जाएगा और वह -अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा.
इसके साथ ही उक्त अधिनियम में धारा 154(2) जोड़ी
गयी. उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं
भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अनुसार बाहरी व्यक्ति साढ़े बारह एकड़ जमीन खरीद सकता
है. उत्तराखंड में 2002 में बाहरी व्यक्तियों के लिए भूमि खरीद की सीमा 500 वर्ग
मीटर की गयी और फिर 2007 में यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी गयी. उत्तराखंड सरकार
द्वारा विधानसभा में पारित करवाए गए अधिनियम के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में,भूमि खरीद की इस सीमा को औद्योगिक प्रयोजन के लिए पूरी तरह खत्म कर दिया
गया.इस तरह से पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि की बेहिसाब खरीद का रास्ता सरकार
ने इस अधिनियम को पारित करवा कर खोल दिया है. इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि
इतना महत्वपूर्ण विधेयक,विधानसभा में सरकार द्वारा बिना किसी
चर्चा के ही पारित करवाने की कोशिश की गयी. इस मामले में केदारनाथ के विधायक मनोज
रावत ही एकमात्र विधायक थे,जिन्होंने विधानसभा में इस विधेयक
को पहाड़ में ज़मीनों की खुली लूट करने वाला विधेयक करार दिया. मनोज रावत तो यहाँ तक
आरोप लगाते हैं कि उक्त विधेयक की प्रति विपक्षी विधायकों को उपलब्ध ही नहीं
कारवाई गयी. प्रति केवल नेता प्रतिपक्ष को दी गयी. बिना विधायकों
को विधेयक की प्रति दिये,बिना विधानसभा में चर्चा के यदि
उत्तराखंड सरकार को ज़मीनों की खुली बिक्री का कानून पास करवाना चाहती थी तो यह उसके इरादों के प्रति
संदेह ही पैदा करता है.
उत्तराखंड में कृषि भूमि का रकबा निरंतर घट रहा है.
अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा उत्तराखंड के कृषि परिदृश्य पर जारी पुस्तिका में
कहा गया है कि उत्तराखंड में कृषि भूमि का रकबा अब केवल 9 प्रतिशत के आसपास रह गया
है. लेकिन उत्तराखंड की सरकार की चिंता में पर्वतीय कृषि तो कम से कम नहीं है.
इसलिए पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि की निर्बाद्ध बिक्री का कानून सरकार द्वारा
पास कर दिया गया.
इस संदर्भ में यह भी जान लेते हैं कि देश के अन्य
राज्यों,खास तौर पर पर्वतीय राज्यों में में भी,क्या इस तरह जमीन
की बेरोकटोक,असीमित बिक्री के कानून हैं ?
उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश है,जहां कानूनी प्रावधानों के चलते कृषि भूमि की खरीद लगभग नामुमकिन है. हिमाचल प्रदेश टिनैन्सी एंड लैंड रिफार्म एक्ट
1972 की धारा 118 में प्रावधान है कि कोई भी जमीन,जो कि कृषि
भूमि को किसी गैर कृषि कार्य के लिए नहीं बेची जा सकती. धोखे से यदि बेच दी जाये
तो जांच के उपरांत यह जमीन सरकार में निहित हो जाएगा.
जमीन,मकान के लिए भूमि
खरीदने के लिए सीमा निर्धारित है और यह भी प्रावधान है कि जिससे जमीन खरीदी जाये, वह जमीन बेचने के कारण आवासविहीन
या भूमिविहीन नहीं होना चाहिए.
एक अन्य पहाड़ी राज्य-सिक्किम में भी भूमि की बेरोकटोक
बिक्री पर रोक के लिए कानून,बीते वर्ष ही बना है. सिक्किम के
कानून- दि सिक्किम रेग्युलेशन ऑफ ट्रान्सफर ऑफ लैंड(एमेंडमेंट) एक्ट 2018 की धारा
3(क) में यह प्रावधान है कि लिम्बू या तमांग समुदाय के व्यक्ति अपनी जमीन किसी
अन्य समुदाय को नहीं बेच सकते. जमीन अपने समुदाय के भीतर बेची जा सकती है पर कम से
कम तीन एकड़ जमीन व्यक्ति को अपने पास रखनी होगी. केंद्र द्वारा अधिसूचित ओबीसी को
3 एकड़ जमीन अपने पास रखनी होगी. राज्य द्वारा अधिसूचित ओबीसी को 10 एकड़ जमीन अपने
पास रखनी होगी.
मेघालय का कानून भी भूमि बिक्री पर पाबंदी लगता है. दि मेघालय ट्रान्सफर ऑफ लैंड(रेगुलेशन)एक्ट 1971
कहता है,कोई भी जमीन
आदिवासी द्वारा गैर आदिवासी को या गैर आदिवासी द्वारा अन्य गैर आदिवासी को सक्षम
प्राधिकारी की अनुमति के बिना हस्तांतरित नहीं की जा सकती.सक्षम प्राधिकारी गैर
आदिवासी को जमीन खरीदने की अनुमति देने में यह ख्याल रखेगा कि इस व्यक्ति को यहाँ
रहने के लिए यह जमीन आवश्यक है या नहीं. अनुमति देने वाला सक्षम प्राधिकारी यह भी
ध्यान रखेगा कि जिस इलाके में गैर आदिवासी जमीन खरीद रहा है,उस
इलाके के जनजाति के लोगों का आर्थिक हित इसके जमीन खरीदने से होगा या नहीं,जनजाति के लोगों को शिक्षा में, उद्योग में अधिक
अवसर मिलें,जमीन बेचने की अनुमति देने में इसका ख्याल रखा
जाएगा.
इस तरह देखें तो देश के किसी भी प्रदेश में ज़मीनों की
बेरोकटोक बिक्री का कानून नहीं है. हर राज्य ने अपनी स्थानीय स्थितियों के अनुरूप
ज़मीनों की बिक्री पर कुछ न कुछ पाबन्दियाँ लगाई हैं. उत्तराखंड एकमात्र ऐसा राज्य
है,जहां सरकार ने जमीन की बिक्री पर किसी भी तरह से रोक लगाने वाले कानूनों
को खत्म कर दिया है.
जिस समय उत्तराखंड की विधानसभा में पर्वतीय क्षेत्रों की बेरोकटोक बिक्री का कानून पास हो रहा था तो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष डा. इन्दिरा हृदयेश ने उस पर केवल इतना ही पूछा कि यह कानून मैदानी इलाकों पर लागू क्यूँ नहीं है. 04 जून को मंत्रिमंडल द्वारा मैदानी इलाकों में भी भूमि खरीद की सीलिंग खत्म कर सरकार ने लगता है कि नेता प्रतिपक्ष की तम्मना पूरी कर दी है !
पर प्रश्न यह है कि आखिर ऐसी क्या आफत आन पड़ी कि
उत्तराखंड सरकार जमीन के कानून में संशोधन पर संशोधन किए जा रही है ?इसके पीछे भाजपा सरकार का वही रटा-रटाया तर्क है कि पूंजी निवेश के लिए
भूमि खरीद संबंधी कानून बदले जा रहे हैं. इसकी शुरुआत हुई देहारादून में पिछले साल
07-08 अक्टूबर को हुए इन्वेस्टर्स मीट से. इस इन्वेस्टर्स
मीट के लिए ही उत्तराखंड सरकार भू कानून में बदलाव का
अध्यादेश लायी और फिर विधानसभा में विधेयक ले कर आई. पूंजी निवेश का आंकड़ा भी बड़ा
रोचक है. जिस समय इन्वेस्टर्स मीट हुआ,उस
समय सरकार की ओर से ऐलान किया गया कि 1 लाख 20 हजार
करोड़ रुपये के निवेश के लिए एम.ओ.यू.(मेमोरैंडम ऑफ अण्डरस्टैंडिंग)
यानि सहमति पत्रों पर दस्तखत हो चुके हैं. 04 जून 2019 को मंत्रिमंडल
की बैठक में फैसला लिया गया कि उत्तराखंड के मैदानी जिलों-देहारादून,हरिद्वार,उधमसिंह नगर में भूमि की हदबंदी(सीलिंग)
खत्म करने की घोषणा के तर्क के तौर पर फिर निवेशकों के लिए जमीन की खरीद सुगम करना
बताया गया. इसके साथ ही समाचार पत्रों में सरकार के हवाले से कहा गया कि अब तक
निवेशक सरकार के साथ 1 लाख 24 हजार करोड़ रुपए के एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर
कर चुके हैं. यानि अक्टूबर 2018 से लेकर जून 2019 तक एम.ओ.यू. की रकम का आंकड़ा
लगभग वहीं का वहीं खड़ा है,जबकि इस बीच प्रदेश के पहाड़ी
क्षेत्रों में तो जमीनों की बेरोकटोक खरीद का कानून भी पास हुए 6 महीने हो चुके
हैं. जिस निवेश के नाम पर ज़मीनों की खुली बिक्री के कानूनों को उचित ठहराने की
कोशिश की जा रही है,अगर वह भी नहीं हो रहा है
तो प्रश्न यह है कि ये ज़मीनों की खुली बिक्री के कानून बना कर सरकार किसका हित
साधना चाहती है ? कहीं ज़मीनों की खुली,
बेरोकटोक बिक्री जमीन के सौदागरों और बड़े भू भक्षियों के चाँदी काटने की राह आसान
करने के लिए तो नहीं है ?
-इन्द्रेश
मैखुरी
4 Comments
भैजी मैं इस पर आपका यूट्यूब वीडियो देख रहा था शायद नेटवर्क ठीक नहीं होने की वजह से उसमें ऑडियो साफ नहीं है अगर इस पर दुबारा से एक वीडियो आप बना देते तो !! क्योंकि लोग इसके बारे में सिर्फ सोशल मीडिया मीम के जरिये ही समझ बना रहे हैं आप अगर हमारे राज्य के कानून और इसके साथ ही हिमांचल से तुलना करते हुए एक इंफोर्मेटिव वीडियो फिर से बना दें तो ...🙏🙏
ReplyDeleteमैं खुद आपके विश्लेषणों से समझ बनाता हूँ
मैं कोशिश करता हूं
Deleteआपके द्वारा गहन विचार मंथन कर भू कानून का सटीक विश्लेषण किया गया है🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteSir इसके बारे में थोड़ा ज्यादा पढ़ना चाहता हूं। कुछ बताये कहाँ से रिसोर्सेज जुटाऊं।
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