अखबार में खबर है कि कुमाऊँ मंडल के सबसे बड़े सरकारी
मेडिकल कॉलेज- सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज को विगत वर्ष पीएम केयर्स
फंड से जो वेंटिलेटर उपलब्ध करवाए गए,वे खराब निकले. दैनिक
अखबार-अमर उजाला की खबर के अनुसार अस्पताल को 45 वेंटिलेटर्स मिले थे,जिनमें से 28 वेंटिलेटर्स को ठीक करवाया जा चुका है,जबकि
17 वेंटिलेटर्स को ठीक कराने के लिए उनके तकनीशियन और इंजीनियरों की राह देखी जा रही
है. इसी खबर के अनुसार बागेश्वर जिले को भी पीएम केयर्स फंड से दो वेंटिलेटर मिले थे,जिनके इन्स्टालेशन में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
आज सुबह के अखबार में इस खबर का शीर्षक पढ़ते ही लगा कि
यह बात तो सुनी हुई जैसी लग रही है ! तब याद आया कि इसी तरह का मामला तो महाराष्ट्र
में भी हो चुका है.
महाराष्ट्र के औरंगाबाद के सरकारी मेडिकल कॉलेज को भी
पीएम केयर्स फंड से 113 वेंटिलेटर्स मिले थे और इनके बारे
में शिकायत आई कि इन वेंटिलेटर्स ने पहले दिन से ही ठीक से काम नहीं किया. इन खराब
वेंटिलेटर्स का मामला सामने आने पर बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने इस मामले
का स्वतः संज्ञान लेते हुए खराब वेंटिलेटर्स के मामले में
सुनवाई शुरू की.
अदालत को सौंपी गयी विशेषज्ञ डाक्टरों की रिपोर्ट में
कहा गया कि जैसे ही इन वेंटिलेटर्स को चालू किया गया,मरीजों ने सांस लेने में दिक्कत और अन्य परेशानियों की शिकायत करना शुरू कर
दिया. औरंगाबाद मेडिकल कॉलेज और जिले के अन्य अस्पतालों को दिये गए, इन वेंटिलेटर्स में लगातार शिकायत आने के बाद कंपनी के तकनीशियन और इंजीनियर, मई में इन्हें ठीक करने आए. दो दिन की मशक्कत के बाद इन्हें दुरुस्त करने
का दावा किया गया. एक रात ये वेंटिलेटर्स ठीक से चले भी पर अगली दोपहर से फिर पुरानी
दिक्कतें शुरू हो गयी.
औरंगाबाद के प्रकरण में यह भी उल्लेखनीय है कि सारे वेंटिलेटर्स
जिनमें गड़बड़ थी, उनकी आपूर्ति करने वाली एक ही कंपनी थी- ज्योति सीएनसी,राजकोट,गुजरात.
उच्च न्यायालय के सामने इस मामले में एमेकस क्यूरी(न्याय
मित्र) के तौर पर नियुक्त अधिवक्ता सत्यजीत
एस.बोरा ने बताया कि एक भी वेंटिलेटर ठीक से काम नहीं कर रहा है.
भारत सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसीटर
जनरल अजय जी. तलहर ने उक्त मामले में पैरवी करते हुए इस बात से ही इंकार कर दिया
कि उक्त वेंटिलेटर पीएम केयर्स फंड से दिये गए हैं. उच्च
न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात का उल्लेख किया है कि पूर्व में उक्त वेंटिलेटर्स पीएम केयर्स फंड से सप्लाई किए जाने की बात ज़ोरशोर
से प्रचारित की गयी थी. लेकिन बाकी तर्क केंद्र सरकार के वकील ने वेंटिलेटर निर्माता
कंपनी के बचाव में ही दिये और कंपनी को सही ठहराया. इस पर उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति
रविंद्र वी.घुघे और न्यायमूर्ति बी.यू.देबद्वार की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि “एडिशनल सॉलिसीटर जनरल
हम से ऐसे तर्क कर रहे हैं, जैसे कि वे वेंटिलेटर निर्माता कंपनी
के वकील हों.” उच्च न्यायालय ने केंद्रीय स्वास्थ्य
मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह चिकित्सा विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर प्रश्न चिन्ह लगाने
की बजाय खराब मशीनों को दुरुस्त करवाने पर ध्यान लगाए.
इस तरह देखें तो महाराष्ट्र के औरंगाबाद के सरकारी मेडिकल
कॉलेज के बाद उत्तराखंड के सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में भी खराब वेंटिलेटर्स का
मामला सामने आया है. दोनों ही मामलों में तुरंत खराब होने वाले वेंटिलेटर्स पीएम केयर्स
फंड से सप्लाई किए गए थे.
जिस समय पीएम केयर्स फंड बना, तब से ही विभिन्न वजहों से इस पर सवाल उठते रहे हैं. लेकिन बावजूद इसके, कई लोगों ने अपने जीवन भर की जमा पूंजी पीएम केयर्स फंड में इसलिए दान कर
दी कि इस कोष में जमा धन का उपयोग व्यापक जनहित में किया जाएगा.
लेकिन इस कोष से आपूर्ति किए गए खराब वेंटिलेटर्स का मामला
तो इंगित कर रहा है कि और जो हो, जनहित में तो कोष का उपयोग नहीं
हो रहा है. जनता के पैसे से बने कोष से घटिया वेंटिलेटर्स की आपूर्ति करके, जनता के पैसे और सेहत से इस खिलवाड़ की केयर करने वाला कोई है, पीएम साहब ?
-इन्द्रेश मैखुरी
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