अगस्त 2015 की बात है. देश भर में संघर्षशील
संगठनों एवं व्यक्तियों के अखिल भारतीय मंच- ऑल इंडिया पीपल्स फोरम (एआईपीएफ़) की
बैठक झारखंड की राजधानी रांची में हुई. बैठक का आयोजन जहां हुआ, उस जगह का नाम
था-बागीचा. पेड़-पौधों की छांव में बेहद सुरम्य,शांत जगह. इतने ही शांत और बातचीत में बेहद सौम्य और कोमल थे, बागीचा के मुखिया. उनका नाम था- फादर स्टेन स्वामी. पहली बार उनका नाम
सुन कर मुझे अचरज हुआ कि ये कैसा नाम है,फादर भी हैं और
स्वामी भी ! हर दम मुस्कुराते व्यक्ति थे फादर स्टेन स्वामी,
जिन्होंने अपनी जिंदगी के पचास से अधिक वर्ष आदिवासियों की बेहतरी के काम में
लगाए.
पिछले साल खबर आई कि फादर स्टेन स्वामी को भीमा
कोरेगांव हिंसा के मामले में एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया. कोई भी व्यक्ति जिसने प्रत्यक्ष
फादर स्टेन स्वामी को देखा हो तो वह तुरंत ही कह सकता है कि यह झूठी कहानी है.
वे पार्किंसन्स रोग से
ग्रसित थे. 80 वर्ष से अधिक उनकी उम्र थी. जो आदमी हाथ में गिलास तक नहीं पकड़ पाता
हो, वह हिंसा फैला सकता है,इस बात पर मूर्ख ही विश्वास करेगा.
उनके विरुद्ध हिंसा के आरोपों की हकीकत इस से समझी जा
सकती है कि एनआईए ने गिरफ्तार करने के बाद पूछताछ करने के लिए उनकी कस्टडी तक नहीं
मांगी. लेकिन जेल में 84 साल के बूढ़े स्टेन स्वामी को प्रताड़ित करने के लिए कई-कई
तरीके आजमाए गए. पार्किंसन्स रोग की वजह से उनके हाथ काँपते थे तो उन्होंने पानी
आदि पीने के लिए स्ट्रा की मांग की. सोचिए एक मामूली से स्ट्रा के लिए फादर स्टेन
स्वामी को अदालत में अर्जी लगानी पड़ी और एनआईए अदालत ने मुंबई की तलोजा जेल के
अधिकारियों को स्ट्रा के मामले में जवाब देने के
20 दिन बाद का समय दिया ! बाद में फादर स्टेन स्वामी की वह अर्जी एनआईए
अदालत द्वारा खारिज कर दी गयी. उसके बाद उनके वकीलों ने अदालत में फिर अर्जी लगाई
कि अपने पैसे से स्ट्रा और सिपर खरीद कर स्टेन स्वामी को देने की अनुमति दी जाए. इस
पर भी जवाब देने के लिए एनआईए कोर्ट ने तलोजा जेल के अधिकारियों को एक हफ्ते का
समय दिया ! और आखिर तक अदालत स्टेन स्वामी को स्ट्रा देने का आदेश न कर सकी. वह तो
जब दुनिया भर में हल्ला मचा तो जेल अधिकारियों को मजबूरन स्टेन स्वामी को स्ट्रा
देना पड़ा.
स्टेन स्वामी ने अपने मित्रों को पत्र लिखवा कर भेजा
कि जेल में ठंड से बचाव के लिए उन्हें एक स्वेटर, कंबल और दो
जोड़ी जुराब चाहिए. पर यह सामग्री भी जेल अधिकारियों ने उन तक नहीं पहुँचने दी.
हिंसा भड़काने के लिए जिस यूएपीए में उन्हें और उनके
जैसे कई औरों को बंदी बनाया गया है, उसकी असलियत तो कुछ
दिन पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने देवांगना कालिता,नताशा
नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा की जमानत के मामले में दिये गए फैसले में खोल दी.
इस फैसले के बारे में इस लिंक पर जा कर पढ़ा जा सकता है
: https://www.nukta-e-najar.com/2021/06/cases-fit-only-on-the-criteria-of-political-enemity.html
असम के किसान नेता और विधायक अखिल गोगोई के मामले में
तो एनआईए की अदालत ने ही यूएपीए के तहत लगाए गए आरोपों में वजन नहीं पाया. 01
जुलाई 2021 को अपने फैसले में एनआईए के विशेष जज प्रांजल दास ने लिखा कि अखिल
गोगोई और अन्य तीन के खिलाफ यूएपीए और देशद्रोह की धाराओं के तहत मामला ही नहीं
बनता. एनआईए अदालत ने यह भी लिखा कि एनआईए की जांच इस मामले में निराशाजनक है.
अदालत ने कहा कि एनआईए जैसी एजेंसी से देश हित को देखते हुए जांच में उच्च
मानदंडों की अपेक्षा की जाती है. अदालत ने यह भी कहा कि जांच को कानून के दायरे के
बाहर नहीं जाना चाहिए.
फादर स्टेन स्वामी के मामले से अखिल गोगोई के केस की
तुलना करना इसलिए समीचीन है क्यूंकि दोनों ही पर एक ही तरह के आरोप लगाए गए थे.
मुमकिन है कि मुकदमें की कार्यवाही आगे चलती तो स्टेन स्वामी के केस में भी अदालत
उसी नतीजे पर पहुँचती, जिस नतीजे पर अखिल गोगोई के केस में
पहुंची कि मुकदमें में आरोप गठित (चार्ज फ्रेम) करने लायक भी सबूत नहीं हैं ! पर
अफसोस कि ऐसा न हो सका.
फादर स्टेन स्वामी ही नहीं,भीमा कोरेगांव मामले में जो भी जेल में बंद हैं, वे
सब ऐसे ही बूढ़े-बुजुर्ग हैं जो सत्तर और अस्सी साल के बीच हैं. ये सारे हाथ में
गिलास पकड़ने की स्थिति में नहीं हैं और इस देश की बलशाली हुकूमत कहती हैं कि ये
बंदूक उठाने वाले थे ! जिन्होंने ज़िंदगी में चींटी भी नहीं मारी, उन पर जीवन की संध्या बेला में हिंसा का आरोप है ! स्पष्ट है कि देश के
हुकूमत इसलिए बौखलाई है क्यूंकि अशक्त शरीर के बावजूद ये रीढ़ की हड्डी तान कर
गरीबों, वंचित के पक्ष में अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध खड़े
रहे हैं.
आपातकाल के दौरान जेल भेजे गए प्रख्यात पत्रकार
दिवंगत कुलदीप नैयर की जेल डायरी में एक प्रसंग है. कुलदीप नैयर के ससुर और पूर्व राज्यपाल
भीमसेन सच्चर सहित आठ बुजुर्ग स्वतंत्रता स्नेनियों ने आपात काल की ज़्यादतियों को लेकर
तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को पत्र लिखा. इस पत्र के सरकार तक पहुँचते ही
ये आठ स्वतंत्रता सेनानी बूढ़े जेल भेज दिये गए. भीमा कोरेगांव समेत अन्य मामलों में
जेल भेजे गए लोगों का अपराध आपातकाल में जेल भेजे गए आठ स्वतंत्रता सेनानी बूढ़ों से
अधिक बड़ा नहीं है. पर शक्तिशाली से शक्तिशाली सत्ता भी विचारवान और प्रतिबद्ध लोगों
से भय खाती है. इसलिए ये सब जेल में अपनी जन प्रतिबद्धता की कीमत चुका रहे हैं, सेहत से हाथ दो रहे हैं, जान गंवा रहे हैं !
फादर स्टेन स्वामी को इंकलाबी सलाम !
-इन्द्रेश मैखुरी
0 Comments