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उनका शौक अंतरराष्ट्रीय हो चला है !

 

 







हम विश्वविद्यालय में पढ़ते थे, हॉस्टल में रहते थे. हॉस्टल में भिन्न भिन्न तरह के, विविध प्रकार के महापुरुषों का निवास होता था, अभी भी होता होगा ! सबके अलग-अलग तरह के शौक, अलग-अलग तरह के शगल !


इन अलग-अलग शगल और जुनून वालों में से एक महापुरुष जो वर्तमान हालात में याद आ रहे हैं,उनकी कथा बड़ी निराली थी, शौक उनका अजूबा था. उनसे पहले और उनके बाद, ऐसे शौक वाले किसी दूसरे महापुरुष से अब तक मेरा तो कम-से-कम वास्ता नहीं पड़ा !


उनका ऑपरेटिंग टाइम रात था. प्राणियों की विभिन्न श्रेणी होती हैं, उनमें से रात्रिचर भी एक श्रेणी होती है,अंग्रेजी में nocturnal कहते हैं, उन्हें. तो ये महाशय भी रात्रिचर प्रजाति के प्राणी थे. रात में खा-पी कर निकलते थे, हॉस्टल से. सारी रात विचरण करते थे और सुबह तकरीबन तीन-चार बजे के आसपास लौटते थे. और वे करते क्या थे,सारी रात ? शहर के विभिन्न मोहल्लों में घूमते थे. जिन घरों में रात्रि के पहर में हलचल महसूस करते थे,तत्काल उनकी खिड़की पर पहुँच कर अंदर झाँकते थे.


दरअसल उनका प्रिय शगल था एकांत के क्षणों में प्रेमालाप करते जोड़ों को देखना ! इसके लिए वे रात-भर शहर की खाक छाना करते. कई दीवारों चढ़ते, अंदर झाँकते, फिर आगे बढ़ जाते. इस काम में उनके पास औज़ार भी होता- एक एल्युमिनियम का लंबा-पतला-मजबूत तार. यह,दृश्य और उनके बीच लगे पर्दे को बेहद सावधानी से खिसकाने के काम आता था.


यह सारा काम वे इस कदर कुशलता से करते कि कभी सुना नहीं कि किसी दीवार पर चढ़े हुए या किसी खिड़की से झाँकते हुए पकड़े गए हों !


बीते दिनों अचानक पता चला कि इस देश की और दुनिया भर की सरकारें विपक्षी नेताओं, एक्टिविस्टों, पत्रकारों, व्यापारियों और जाने किस-किस के जीवन में फोन के जरिये ताका-झांकी कर रही हैं. ताका-झांकी करने के लिए विशेष स्पाइवेयर उपयोग किया गया है- पेगासस. मुझे बरबस हॉस्टल में रहते हुए, ताका-झांकी के लिए रात भर शहर की खाक छानने वाले वे महाशय याद आए और याद आया, उनका औज़ार- एल्युमिनियम का तार !






जिस शौक को तब से अब तक हम विकार समझे हुए थे, पता चला कि वह शौक तो अंतरराष्ट्रीय हो चुका है और न केवल शौक अंतरराष्ट्रीय हो चुका है बल्कि उसकी तकनीक भी इतनी हाईटेक हो चुकी कि मारे-मारे फिरने की भी कोई जरूरत नहीं ! बस यह खर्चा कई सौ करोड़ का है, पर शौक में खर्च की कौन परवाह करता है, विज्ञापन की वो टैगलाइन सुनी ही होगी आपने- शौक बड़ी चीज है !


-इन्द्रेश मैखुरी

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