2017 में उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में
आई भाजपा ने साढ़े चार साल में तीसरा मुख्यमंत्री बना दिया है. भारी बहुमत के बावजूद
राजनीतिक अस्थिरता का नया मॉडल उत्तराखंड में भाजपा ने स्थापित किया है.
लेकिन सिर्फ यही मॉडल नहीं है जो भाजपा ने स्थापित किया
है. इसके अलावा “चाल,चरित्र,चेहरे” की
बात करने वाली भाजपा के चाल-चलन और चरित्र पर बीते साढ़े चार साल में उसके अपने चेहरे
दाग लगाते रहे हैं.
यह सिलीसिला शुरू हुआ नवंबर 2018 में. उत्तराखंड भाजपा
के तत्कालीन संगठन महामंत्री संजय कुमार पर भाजपा कार्यालय में काम करने वाली महिला
ने यौन शोषण का आरोप लगाया. जनवरी 2019 में इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज हो
सकी.
फिर द्वाराहाट के भाजपा विधायक महेश नेगी का प्रकरण सामने
आया. अगस्त 2020 में एक महिला ने महेश नेगी पर दुराचार का आरोप लगाया. उक्त महिला ने
यह भी दावा किया कि महेश नेगी उसकी बेटी के जैविक पिता हैं. इस मामले में अदालत में
महेश नेगी के डीएनए टेस्ट की याचिका भी उक्त महिला ने लगाई है. लेकिन अभी तक महेश नेगी
डीएनए टेस्ट कराने से बचते रहे हैं.
अब तीसरे मामले पर आते हैं. यह तीसरा मामला उस वक्त समाने
आया जबकि भाजपा में तीसरा मुख्यमंत्री बनाए जाने की पटकथा लिखी जा चुकी थी. 02 जुलाई
को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत दिल्ली से वापस लौटे और रात को ग्यारह बजे के करीब उन्होंने
राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया.
लेकिन इसी 02 जुलाई की तारीख को, एक अन्य प्रमुख खबर जो बड़ी होने के बावजूद मुख्यमंत्री के इस्तीफे की खबर
के बीच दब सी गयी, वो थी कि हरिद्वार जिले के ज्वालापुर से
भाजपा विधायक सुरेश राठौर के विरुद्ध न्यायालय ने बलात्कार का मुकदमा दर्ज करने का
आदेश जारी किया, जिसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया. राठौर
के विरुद्ध दुराचार का आरोप लगाने वाली भाजपा महिला मोर्चे की ही एक पूर्व पदाधिकारी
हैं, जिस पर इसी मामले में राठौर को ब्लैकमेल करने का आरोप लगने
के बाद उक्त महिला को पार्टी से निष्काषित कर दिया गया था.
उक्त तीनों ही मामलों को देखें तो भाजपा के नेता और विधायकों
की संलिप्तता के अलावा तीनों में ही महिलाएं भाजपा दफ्तर में काम करने वाली, भाजपा की पदाधिकारी और नेताओं की करीबी हैं.
साढ़े चार साल में डबल इंजन के ट्रिपल मुख्यमंत्री के अलावा
दुराचार का भी यह ट्रिपल रिकॉर्ड, भाजपा पदाधिकारी और विधायकों ने
उत्तराखंड में स्थापित किया है ! भाजपा वही पार्टी है, जिसने
बड़े ज़ोरशोर से “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का नारा दिया था.
साढ़े चार साल में उत्तराखंड में भाजपा संगठन के एक प्रमुख पदाधिकारी और दो विधायकों
के दुराचार के आरोपों में फँसने और उसके बाद दो विधायकों के विरुद्ध पार्टी द्वारा
कोई कार्यवाही न किए जाने से यह समझा जा सकता है कि भाजपा “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” के
नारे के प्रति कितनी संजीदा है !
साढ़े चार साल में भाजपा के एक प्रमुख पदाधिकारी और दो
विधायकों पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगने और उक्त मामलों में पार्टी के शतुरमुर्ग सरीखे
रुख से पुनः सोशल मीडिया पर चलता वह मैसेज याद आता है कि बेटी बचाओ-भाजपा का नारा नहीं
चेतावनी थी !
-इन्द्रेश मैखुरी
0 Comments