यह 1997 का साल था. पुराना टिहरी बांध
में जल समाधि दिये जाने के दिन-महीने-साल गिन रहा था और पहाड़ी ढलान पर नया टिहरी उग
आया था.
आबादी के एक हिस्से के अलावा जेल भी टिहरी से नयी टिहरी
स्थानांतरित की जा चुकी थी. टिहरी/ नयी टिहरी की जेल, टिहरी और उत्तरकाशी दोनों जिलों के काम आती है.
इसी 1997 के साल में डॉ.नागेंद्र
जागूड़ी ‘निलांबरम’ की अगुवाई में
उत्तरकाशी में प्रधान डाक घर को लेकर आंदोलन चलाया गया. लंबे अरसे तक जब कोई सुनवाई
नहीं हुई तो आंदोलन के नेता डॉ.नागेंद्र जागूड़ी ‘निलांबरम’ ने तय किया कि अब गिरफ्तारी दी जाएगी. जुलाई 1997 में गिरफ्तार हो कर हम 20-25
लोग नयी टिहरी की नयी-नवेली जेल भेज दिये गए. मेरी वह पहली जेल यात्रा थी. हालांकि
उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय रहने के चलते भारी-भरकम धाराओं वाले दो मुकदमें मुझ बीए
के विद्यार्थी पर 1995 में ही लादे जा चुके थे. जिस वक्त 1997 में हम नयी टिहरी जेल
गए तो मैं बीए द्वितीय वर्ष की परीक्षा, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
उत्तरकाशी से दे चुका था. बीए सेकेंड इयर में पास होने का रिज़ल्ट नयी टिहरी की जेल
में ही पता चला.
नयी टिहरी जेल के बाहर ही श्रीदेव सुमन की कोठरी पुनः
स्थापित की गयी थी. वह कोठरी जिसमें श्रीदेव सुमन ने 84 दिन भूख हड़ताल की,1997 में पुरानी टिहरी में डुबोए जाने का इंतजार कर रही थी. वक्त का फेर देखिये, जिस कोठरी में 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन के पार्थिव देह को
भिलंगना की धाराओं में बहा दिया, अंततः वह जेल और कोठरी भी उसी
भिलंगना में डूब गयी !
हम जब नयी टिहरी जेल भेजे गए तो वह जुलाई का महीना था.
उसी समय पता चला कि नयी टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन के शहादत दिवस यानि 25 जुलाई को
आम लोगों को प्रवेश दिया जाता है, वे जेल घूम सकते हैं, देख सकते हैं. संभवतः श्रीदेव सुमन की स्मृतियों को लोगों के मानस में जीवंत
बनाए रखने के लिए यह परंपरा शुरू की गयी होगी. लेकिन जेल की सलाखों के भीतर खुद बंद
और बाहर से हमें देखते हुए लोग,यह दृश्य ऐसा आभास दे रहा था, जैसे हम चिड़िया घर में बंद जानवर हों, जिन्हें देखने
टिकट ले कर दर्शक आए हों !
बहरहाल हम में से कुछ लोग अपने बैरेक के बाहर के एक शौचालय
की छत पर चढ़ गए और नारे लगाने लगे, जनगीत गाने लगे ताकि
लोगों को पता चल सके कि इस जेल में बंद लोगों में आंदोलनकारी भी शामिल हैं. 1994 के
उत्तराखंड आंदोलन के बाद का समय था तो हमने उत्तराखंड राज्य के पक्ष में भी खूब नारे
लगाए.
नयी टिहरी जेल के बाहर बनी सुमन की उस कोठरी में वे भारी-भरकम लोहे की बेड़ियाँ भी सुरक्षित
रखी हुई थी. जेल से रिहा होते समय हमने वे बेड़ियाँ पहन कर देखी और महसूस करने की कोशिश
की कि हमारा वह शहीद पुरखा कैसे इन बेड़ियों को शरीर पर धारण किए हुए प्रतापनगर और टिहरी
ले जाया जाता होगा. राजा से उत्तरदाई शासन की मांग करने का जवाब थी, लोहे की बेड़ियाँ, काल कोठरी और 1944 की 25 जुलाई को
शहादत.
उन बेड़ियों को नमन, उस कोठरी को
नमन, श्रीदेव सुमन की शहादत को नमन !
-इन्द्रेश मैखुरी
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