कुछ महीनों पहले उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी में नियुक्ति में गड़बड़ियों की आशंका प्रकट करते हुए, उत्तराखंड के राज्यपाल को लिखा हुआ, एक शिकायती पत्र
मेरी नजरों से गुजरा. पत्र बेहद भदेस भाषा में लिखा गया था. शिकायती पत्र नहीं चुगली
पत्र प्रतीत होता था ! गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति और पढ़ाई के दौरान बहुतेरे
शिकायत पत्र मैंने देखे. उन पत्रों में शिकायत चाहे कितनी भी सही या गलत रही हो, लेकिन भाषा बेहद दुरुस्त एवं कानून सम्मत होती थी.कह सकते हैं कि गढ़वाल विश्वविद्यालय
के जिन शिकायती पत्रों का उल्लेख मैं कर रहा हूँ,उनकी भाषा, मानक भाषा होती थी. इसलिए उत्तराखंड
मुक्त विश्वविद्यालय संबंधी उक्त शिकायती पत्र को देख कर मुझे बेहद निराशा हुई और ज्यादा
अफसोस इस बात को लेकर हुआ कि उच्च शिक्षा से संबंधित व्यक्ति ने उक्त शिकायती पत्र, प्रदेश के राज्यपाल का भेजा था.
लेकिन उक्त शिकायती पत्र की भाषा जैसी भी रही हो,उसकी एक बड़ी विशेषता थी. वह शिकायती पत्र नहीं बल्कि एक तरह की भविष्यवाणी
था. इस पत्र के राज्यपाल को भेजे जाने और कोई कार्यवाही न होने के बाद जब उत्तराखंड
मुक्त विश्वविद्यालय में नियुक्तियां हुई तो वे कतिपय अपवादों को छोड़ कर, उन्हीं की हुई, जिनकी नियुक्ति होने की आशंका प्रकट करते हुए उक्त शिकायती पत्र, राज्यपाल को भेजा गया था.
उक्त शिकायती पत्र की याद मुझे तब आई जब बीते दिनों उत्तराखंड
मुक्त विश्वविद्यालय फिर नियुक्तियों में गड़बड़ियों के मामले में सुर्खियों में आया.
तमाम समाचार माध्यमों में इस विश्वविद्यालय में 56 नियुक्तियों के फर्जी होने की खबरें
आयीं.
समाचारों में बताया गया कि उक्त नियुक्तियों में गड़बड़ियाँ राज्य सरकार
के ही ऑडिट विभाग ने साल भर पहले पकड़ी, लेकिन उन पर कोई कार्यवाही
नहीं हुई. इस मसले पर उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि ऑडिट तो कहता रहता
है. जिन नियुक्तियों में गड़बड़ियाँ बताई गयी, उनके पीछे प्रत्यक्ष
या परोक्ष रूप से मंत्री जी की शह की भी चर्चा है.
ऊपर जिस शिकायती पत्र का जिक्र है, उसमें भी खुल कर मंत्री के नियुक्तियों में दखल होने की बात कही गयी है.
वैसे मंत्री जब कहते हैं कि ऑडिट तो कहता रहता है तो वे
एक तरह से संवैधानिक और वैधानिक प्रक्रिया की खुलेआम खिल्ली उड़ा रहे हैं. किसी मंत्री
को ऐसा करने की जरूरत क्यूं पड़ेगी, अगर ऐसी नियुक्तियों
के तार,उससे न जुड़े हों तो ?
56 नियुक्तियों में गड़बड़ियों की खबर सामने आते ही राज्यपाल
बेबी रानी मौर्य ने बयान दिया कि उक्त नियुक्तियों में उनकी संस्तुति नहीं ली गयी है
और ये नियुक्तियाँ रद्द की जाएंगी. राज्यपाल ने कहा कि इस प्रकरण में उन्होंने जांच
के आदेश दे दिये हैं. यह मुमकिन है कि उक्त प्रकरण में ऐसा हुआ हो, लेकिन इस लेख के शुरुआत में जिस शिकायती पत्र का उल्लेख है, वह तो राज्यपाल महोदया को ही भेजा गया था. उसमें लगाए गए गंभीर आरोपों पर
कार्यवाही के मामले में औपचारिक रवैये के बजाय कड़ा रुख अपनाया जाता तो मुमकिन है कि
नियुक्तियों के मामले में नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते विश्वविद्यालय के मनमानेपन
पर कुछ अंकुश लगता है.
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय और नियुक्तियों में गड़बड़ी
की खबरें,ऐसा लगता है कि इनका चोली दामन का साथ है. विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय निदेशकों
की नियुक्तियों के मामले में गड़बड़ियों के आरोप लगे, प्राध्यापकों
की नियुक्तियों के मामले में गड़बड़ियों के आरोप लगे और 56 पदों पर नियुक्ति का मामला
तो ऑडिट में ही पकड़ा गया है. इसके अलावा आरक्षण के रोस्टर में गड़बड़ियों के गंभीर आरोप
भी समाचार पत्रों की सुर्खियां बने. प्रोफेसरों के नियुक्ति में महिला आरक्षण पूरी
तरह गायब कर दिया गया और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में
मनमाने तरीके से छेड़छाड़ करने का गंभीर आरोप लगा.
वैसे जबसे भाजपा की सरकार सत्तासीन हुई है और धन सिंह
रावत उच्च शिक्षा के मंत्री बने हैं तो उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय कोई इकलौता विश्वविद्यालय
नहीं है, जहां नियुक्तियों में गड़बड़ियों के आरोप और सबूत खुलेआम तैर रहे हैं. 2018
में दून विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए
गए डॉ.चंद्रशेखर नौटियाल की नियुक्ति को 2019 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रद्द
कर दिया. कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति एन.के.जोशी की नियुक्ति का मामला भी इस तरह
संदेहास्पद है और उच्च न्यायालय में विचारधीन है. बीते दिनों प्रदेश के एक और विश्वविद्यालय
में पीआरओ पद का विज्ञापन निकला है, विज्ञापन निकलते ही, किसके लिए निकला है, इसकी चर्चा भी तेज हो गई है ! देश
को विश्वगुरु बनाने का दम भरने वाली पार्टी की सरकार, अपने को
लाभ पहुंचाने के लिए जब विश्वविद्यालयों में कचरा भर रही है तो इन विश्वविद्यालयों
का कबाड़ होना तय है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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