हताश-निराश
ज़ेबा गुल और उसके आठ बच्चे, पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में
एक ट्रांज़िट केंद्र के छोटे से कमरे में चुपचाप बैठे हैं. युद्ध से बचने और
सुरक्षा हासिल करने की उनकी कोशिश विफल हो चुकी है.
तुर्की
का बार्डर पार करने की कोशिश के दौरान पकड़े जाने पर उन्होंने अभी एक हफ्ता ईरान की
पुलिस की कैद में बिताया है और अब वे वापस अपने प्रांत तखर, जिस पर कब्जा हो चुका है, की
ओर चलने की तैयारी में हैं.
“
हमारा गाँव तालिबान और सरकारी फौजों द्वारा घेर लिया गया था. दोनों तरफ से हवाई
हमले और गोलीबारी, रोज़मर्रा की बात थी,” 35 वर्षीय गुल कहती हैं. गुल का पति गिरफ्तारी से बचने के बाद अभी
भी ईरान में है.
जब
तक मामला बहुत खतरनाक नहीं हो गया था,
गुल का पति खेती करता था. उनकी योजना थी कि वे बस थोड़े समय के लिए ही ईरान में
रहेंगे क्यूंकि महामारी और अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते वहां काम ढूंढना मुश्किल था
और जीवन वहां बहुत मंहगा था. इस परिवार की प्राथमिकता, उनके बच्चों की सुरक्षा थी और वे बच निकलने के लिए इतने व्यग्र थे
कि उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि वे तुर्की के किस शहर में पहुंचेंगे.
गुल
कहती हैं - “ अफ़ग़ानिस्तान रहने के लिए अच्छी जगह नहीं है- वहां युद्ध है और सुरक्षा के हालात अच्छे नहीं हैं.”
इस
परिवार ने एक स्मगलर को बार्डर पार कराने के लिए 650 डॉलर प्रति व्यक्ति देना
मंजूर किया, शर्त यह थी कि वह उन्हें
सफलतापूर्वक बार्डर पार कराएगा. लेकिन उनकी इस कोशिश को इरान की सीमा पुलिस ने
नाकाम कर दिया. गुल के पति के अलावा सब गिरफ्तार कर लिए गए.
गुल
कहती है – “ हम बर्बाद हो गए और अब तखर लौटना
पड़ेगा. यह सुरक्षित नहीं है.”
कोई
संपत्ति नहीं, काम मिलने की बहुत कम संभवनाओं और रोज झड़पों का सामना करने के हालात के
बीच इस परिवार के पास वापस लौटने की कोई खास वजहें नहीं हैं,
सिवाय चंद रिश्तेदारों के. उनकी कहानी कोई बहुत विशेष नहीं है ; हाल के हफ्तों में तालिबानी लड़ाके पूरे देश में फैल गए हैं और नागरिक दोतरफा
गोलीबारी के बीच फंसे हुए हैं. 21 जुलाई को पेंटागन (अमेरिकी रक्षा विभाग) ने कबूल
किया कि आधे से अधिक जिला केंद्र, जो अफ़ग़ानिस्तान की 34
प्रांतीय राजधानियों में से 17 के इर्दगिर्द हैं, वे तालिबान
के कब्जे में हैं.
अफ़ग़ानिस्तान
कुछ अतिरिक्त परेशानियों से भी जूझ रहा है, जिसमें भयानक सूखा, कोविड का
प्रभाव और घटती विदेशी आर्थिक मदद शामिल है- ब्रिटेन ने अंतरराष्ट्रीय सैन्य वापसी
और तालिबान के व्यापक कब्जे के बीच, प्रत्यक्ष आर्थिक मदद
में 78 प्रतिशत की कटौती कर दी है.
संयुक्त
राष्ट्र के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान को इस वर्ष 1.3 बिलियन डॉलर की वैश्विक सहायता की
जरूरत है, लेकिन उसमें से उसे एक चौथाई ही मिल पायी है, जिसके
चलते मानवतावादी संगठन जमीन पर कोई सहायता नहीं पहुंचा पा रहे हैं.
2020 में महामारी की शुरुआत से बार्डर पार से
लोगों का अबड़े पैमाने पर वापस आना शुरू हुआ. अंतरराष्ट्रीय पलायन संगठन के
आपातकालीन रिसपौंस ऑफिसर निक बिशप के अनुसार इस वर्ष अब तक लगभग 550000 लोग
अफ़ग़ानिस्तान वापस लौटे हैं. वे कहते हैं कि यह सामान्य दर से दोगुना है और इनमें
से 55 प्रतिशत प्रत्यर्पित करके जबरन वापस भेजे गए हैं.
“
आम तौर पर हम हर साल 500000 लोगों को देखते हैं ; इसमें काफी चक्रीय पलायन प्रवाह होता है, जो कि खेती के मौसमी पलायन से जुड़ा होता है, इसलिए
इस संख्या को देखना कोई असामान्य बात नहीं. पर पिछले पाँच सालों में
सामाजिक-आर्थिक हालत बेहद बिगड़ गयी है- 90 प्रतिशत अफ़ग़ानी
1.50 पाउंड प्रति दिन पर जिंदा रहते हैं.” बिशप कहते हैं.
“
जैसे संघर्ष तीखा होता जाएगा , ज्यादा लोग विस्थापन की ओर धकेले जाएंगे. देश के विभिन्न हिस्सों में नयी
शक्तियां हैं और बहुत सारे लोग चिंतित हैं कि शिक्षा और महिलाओं के भविष्य के
मामले में आगे क्या होने वाला है.”
पूरे
अफ़ग़ानिस्तान में स्मग्लिंग नेटवर्क लोगों को बार्डर पार कराने ले जाता है और इरान
के रास्ते तुर्की में प्रवेश, इस नेटवर्क का आम रास्ता है.
हफ़ीजुल्लाह, उसकी गर्भवती
पत्नी, शाइस्ता और उनके दो बच्चे हेरात
के ट्रांजिट कैंप में हैं, जहां वे तेहरान में गिरफ्तार करने
के बाद लाये गए हैं.
हफ़ीजुल्लाह, शाइस्ता और उनके
दो बच्चों ने ट्रांज़िट सेंटर पहुंचाए जाने से दो महीने पहले तखर में अपना घर छोड़ा
था. तेहरान के लिए बेहद जोखिम भरी यात्रा उन्होंने की, जहां
से वे तुर्की और अंततः यूरोप जाना चाहते थे पर इससे पहले कि वे ऐसा कर पाते, हफ़ीजुल्लाह को इरानी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
“
मेरे पास तखर में कोई काम नहीं था और वहां बहुत लड़ाई थी...... आत्मघाती हमले हो
रहे थे, अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था की हालत बेहद खराब है,” हफ़ीजुल्लाह कहते हैं, वो अपना उपनाम नहीं
बताना चाहते. “ हम 18 घंटे तक चलते रहे, वो भी बिना खाने के, ताकि इरान में प्रवेश कर कर सकें. बच्चे रो रहे थे,
मेरी पत्नी और मैं दोनों डरे हुए थे कि पुलिस हमको गोली मार देगी.”
हफ़ीजुल्लाह कहते हैं कि तेहरान में अवैध रूप से
एक दुकान में सहायक के तौर पर 200 अफ़ग़ानी ( 1.83 पाउंड) प्रति दिन पर वे तब तक काम
करते रहे, जब तक कि बक़ौल उनके, किसी ने अधिकारियों से उनकी
शिकायत नहीं कर दी.
संयुक्त
राष्ट्र के अनुसार इस साल की शुरुआत से लड़ाई के कारण, लगभग 223000 लोग
अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं. तुर्की की मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार प्रति
दिन लगभग 500 से 1000 अफ़ग़ानी अवैध रूप से बार्डर पार
करके तुर्की में प्रवेश कर रहे हैं.
बिशप
कहते हैं, “तुर्की-इरान की सीमा पर भारी तारबाड़ है. हकीकत यह कि अफ़ग़ानों को यदि
बार्डर पार करना है तो परिवार से अलग होना पड़ेगा और वान झील पार करने की कोशिश
करनी होगी. कई सारे अफ़ग़ानों की मौतें होंगी.” उनके अनुसार इस वर्ष हवाई मार्ग से
प्रत्यर्पित करके 8400 अफ़ग़ान, तुर्की से वापस भेजे जा चुके
हैं.
उनके
अनुसार मौके की ताक में बैठे अपराधी इरान में अफ़ग़ानों को
निशाना बना रहे हैं.
“
कई सारे अफ़ग़ानों को अवैध वसूली के लिए बंधक बनाया गया
है. 17 लोगों का एक परिवार,अपना सब कुछ बेच कर
इरान आ गया, जहां से वे तुर्की जाना चाहते थे और वहां उनसे
20000 डॉलर की अवैध वसूली की गयी. उनको वह पैसा भी इकट्ठा करना पड़ा- फिर उन्हें
इरानी अधिकारियों के हवाले कर दिया गया,” बिशप बताते हैं.
“
लोग अपने लिए नए समाधान तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. अफ़ग़ान घर पर ही रहना पसंद करते, वे बहुत राष्ट्रवादी हैं. यह संकेत है कि पूरे देश में आर्थिक सुरक्षा का
व्यापक दबाव है.”
नोट : यह ब्रिटिश अखबार – द गार्जियन में 28 जुलाई 2021 को छपी
रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद है. यह रिपोर्ट गार्जियन के लिए हेरात से चार्ल्स फॉकनर ने भेजी है.
हिंदी अनुवाद :
इन्द्रेश मैखुरी
गार्जियन की
मूल खबर का लिंक :
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