दो-एक बरस पहले हमारे एक परिचित की पंद्रह-सोलह साल
की बेटी की आवाज़ एकाएक बंद हो गयी. पहाड़ में जैसा होता है कि पहले लोग झाड़-फूँक, देवता,छल आदि के जरिये
ही निवारण की कोशिश करते हैं. इससे मसला नहीं निपटा तो निकटस्थ शहर के डाक्टर को दिखाया
गया. डॉक्टर इस मसले में कुछ ज्यादा बता नहीं पाये. उन्होंने लड़की के माता-पिता से
कहा कि वे लड़की को आगे ले जायें. उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र के अस्पतालों
में यदि कोई काम सर्वाधिक मुस्तैदी से होता है तो वो है, मरीजों
को आगे खिसकाना, पहाड़ के अस्पतालों में मरीज के पर्चे पर सर्वाधिक
लिखी जाने वाली इबारत है- रेफर टु हायर सेंटर !
बहरहाल जब डाक्टर ने उन्हें अपनी बेटी को आगे दिखाने को
कहा तो उन्होंने, मुझ से कहा कि आगे जाना है. चूंकि डाक्टर
ने उनसे कहा था कि लड़की को नाक,कान,गला
यानि ईएनटी वाले डॉक्टर को दिखाना है तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं पता करूँ कि श्रीनगर(गढ़वाल)
के मेडिकल कॉलेज में ईएनटी का अच्छा डॉक्टर कौन होगा,जिसे बेटी
को दिखाना ठीक रहेगा. श्रीनगर(गढ़वाल) में अंजलि मेडिकल स्टोर के संचालक बृजेश भट्ट
जी से इस बाबत पूछताछ करने पर उन्होंने सुझाव दिया कि लड़की को मनोचिकित्सा विभाग में
दिखाना चाहिए.
उनके सुझाव पर अमल करते हुए लड़की को श्रीकोट स्थित वीर
चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय मेडिकल कॉलेज के बेस अस्पताल में मनोचिकित्सक डॉ.मोहित सैनी
के पास ले गए. डॉक्टर मोहित सैनी ने लड़की और लड़की के माता-पिता से बात की और इलाज की
प्रक्रिया शुरू कर दी. चूंकि जिस डॉक्टर को लड़की के माता-पिता ने पहले दिखाया था,उन्होंने ईएनटी को दिखाने की सलाह दी थी तो मैंने, डॉ.मोहित सैनी से कहा कि क्या ईएनटी को भी दिखा लें तो उन्होंने कहा कि दिखा लीजिये
पर आना आपको यहीं पड़ेगा. हुआ भी यही, ईएनटी वालों ने पूरी जांच
करने के बाद वापस, मनोचिकित्सा विभाग में भेज दिया.
उसके बाद लड़की को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया. डॉक्टर
और उनके स्टाफ ने उसकी काउंसलिंग की, कुछ दवाई भी दी. अगली
दोपहर तक लड़की थोड़ा-थोड़ा बोलने लगी और शाम तक तो वो लड़की पूरी तरह बोलने लगी, जिसके गले से कल तक आवाज़ ही नहीं आ रही थी. यह दृश्य देखना,चमत्कार को देखने जैसा ही था.
पर मैं यह किस्सा आपको क्यूं सुना रहा हूँ ? वो इसलिए कि बीते दिनों प्रख्यात समाजसेवी अनूप नौटियाल जी की अगुवाई वाले
एसडीसी फ़ाउंडेशन की एक रिपोर्ट मैंने देखी. उत्तराखंड के अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों
को लेकर सूचना अधिकार के तहत एसडीसी फ़ाउंडेशन ने कुछ जानकारी एकत्र की, जिसे उन्होंने बीते अगस्त के महीने में सार्वजनिक किया. यह सूचना एसडीसी फ़ाउंडेशन
द्वारा उत्तराखंड सरकार के चिकित्सा,स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग
से ली गयी.
उक्त रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के 13 में से 11 जिलों
में मनोचिकित्सक नहीं हैं. मनोचिकित्सक कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाज इस लेख के शुरू में वर्णित वाकये से लगा सकते हैं.
हालांकि सूचना अधिकार में जो आंकड़ा उत्तराखंड सरकार के
चिकित्सा,स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा दिया गया,
उसमें मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डॉक्टरों का आंकड़ा शामिल नहीं है. लेकिन हमारे यहाँ
पहाड़ में तो मेडिकल कॉलेजों की स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं है. श्रीनगर(गढ़वाल) स्थित
मेडिकल कॉलेज को ही देख लीजिये, जहां कार्डियोलॉजिस्ट तक नहीं
है. आज के दौर में जब हृदय रोग बेहद आम हो चला है तब जरा कल्पना कीजिये कि किसी मेडिकल
कॉलेज में कार्डियोलॉजिस्ट के न होने का अर्थ कितने लोगों के लिए जानलेवा हो सकता है
!
एसडीसी फ़ाउंडेशन की पूरी रिपोर्ट इस लिंक पर जा कर देख सकते हैं :
एसडीसी फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार चमोली जिले में
विशेषज्ञ डॉक्टरों के 62 पदों के बरक्स केवल 17 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, पौड़ी जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 152 पद हैं, जिनमें
से केवल 42 पदों पर ही विशेषज्ञ डॉक्टर नियुक्त हैं, अल्मोड़ा
में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 127 पद हैं पर नियुक्त केवल 49 डॉक्टर हैं और पिथौरागढ़ में
विशेषज्ञ डॉक्टरों के 59 पदों में से केवल 22 पर ही डॉक्टर नियुक्त हैं.
पूरे राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 1147 पदों में
से 654 पद रिक्त हैं और 493 विशेषज्ञ डॉक्टर ही काम कर रहे हैं. एसडीसी फ़ाउंडेशन द्वारा
जारी रिपोर्ट के अनुसार केवल 43 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर ही उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों
में नियुक्त हैं. निश्चित ही विशेषज्ञ डॉक्टरों के पदों की इतनी बड़ी संख्या में रिक्तता, उन मरीजों के लिए बेहद घातक है, जिन्हें इलाज के लिए
विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता है.
इन पंक्तियों को लिखते वक्त स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी
दो खबरें सामने हैं. पहली खबर यह है कि इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर की गयी, उत्तरकाशी की गर्भवती युवती की मौत हो गयी. उत्तराखंड में गर्भवती युवतियों
की मौत के सिलसिले को देखें तो पाएंगे कि औसतन हर माह एक गर्भवती स्त्री की मौत हो
रही है.
दूसरी खबर यह है कि चंपावत में भाजपा के प्रदेश प्रभारी
दुष्यंत गौतम की तबीयत बिगड़ी और उसके बाद वे हेलीकाप्टर से दिल्ली चले गए. हालांकि
समाचारों को पढ़ने से लगता है कि कोई ज्यादा गंभीर मामला नहीं था पर फिर भी डॉक्टरों
ने उन्हें आराम की सलाह दी तो वे हेलीकाप्टर से दिल्ली भेजे गए.
ये दो खबरें उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति
और उसमें आम और खास के साथ होने वाले सलूक की बानगी हैं. जो सक्षम होगा, वह सामान्य बीमारी में भी एयरलिफ्ट हो जाएगा और जो साधनहीन होगा, वह एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर होने में ही प्राण गंवा बैठेगा !
-इन्द्रेश मैखुरी
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