बीते दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह
धामी ने नगर निगम,देहरादून
का दौरा किया,
सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों ने कहा गया कि औचक निरीक्षण किया. इस “औचक
निरीक्षण” में किसी के भौचक होने की खबर तो नहीं है और ऐसा भी लगता है कि देहरादून
के नगरनिगम में सब कुछ चकाचक ही था. अपनी ही पार्टी का मेयर हो तो खामी भी कैसे
निकालते !
यूं जब निरीक्षण औचक हुआ और मामला चकाचक हुआ तो याद
आया कि बीते बरस यानि 2020 में शहर को चकाचक करने के लिए, शहर की कोरोना की रक्षा के लिए सेनिटाइजर की खरीद काफी चर्चा में रही थी.
बात तो यूं थी कि सेनिटाइजर
खरीदा गया, शहर में छिड़का गया, खेल
खतम-पैसा हजम ! लेकिन बुरा हो इस मुए सूचना के अधिकार कानून का कि जो बात पिछले
साल हो चुकी, उसे यह कानून इस साल बाहर ले आया. दरअसल इस साल
आरटीआई क्लब से जुड़े आरटीआई कार्यकर्ता अमर सिंह धुंता ने सूचना अधिकार में नगर
निगम से बीते वर्ष मार्च तक खरीदे गए सोडियम हाइपोक्लोराइड
की प्रतिशत सहित सूचना मांगी.
नगर निगम को इसमें कुछ भी संदेह न हुआ, उन्होंने सूचना दे डाली, जिसके साथ बिल भी संलग्न
किए गए थे.
सूचना अधिकार में जो दस्तावेज़ सामने आए वे बताते हैं कि नगर निगम, देहरादून ने मार्च 2020 में तकरीबन 1 लाख 10 हजार लीटर से अधिक, एक प्रतिशत वाला सोडियम हाइपोक्लोराइड खरीदा.
यह खरीद देहरादून के ही आफताब ट्रेडर्स से की गयी. एक लाख लीटर से अधिक की यह खरीद 60 रुपया प्रति लीटर की दर से की गयी. इस फर्म से की गयी खरीद के भुगतान की रफ्तार, इस कदर तेज थी कि 17 मार्च और 20 मार्च 2020 की तिथि वाले बिलों का भुगतान 23 मार्च 2020 को चेक द्वारा कर दिया गया, 23 मार्च 2020 की तिथि के बिल का भुगतान 25 मार्च को, 30 मार्च व 31 मार्च वाले बिल का भुगतान 03 अप्रैल को तथा 06 अप्रैल,10 अप्रैल, 11 अप्रैल व 13 अप्रैल का भुगतान 15 अप्रैल 2020 को, 14 अप्रैल, 15 अप्रैल व 16 अप्रैल के बिलों का भुगतान 22 अप्रैल 2020 को नगर निगम द्वारा कर दिया गया.
ये तिथियाँ बड़ी रोचक हैं. इनमें से भुगतान की अधिकांश तारीखें वो हैं, जब कोरोना के राष्ट्रव्यापी संक्रमण के चलते लॉकडाउन
लागू हो चुका था. लॉकडाउन ने जीवन के सभी क्षेत्रों की रफ्तार भले उस समय बाधित कर
दी थी, लेकिन ऐन लॉकडाउन के बीच बिलों के भुगतान की जो गति नगर
निगम, देहरादून की रही, उससे ऐसा प्रतीत
होता है कि नगर निगम के लिए इन बिलों का भुगतान ही उस समय सर्वोच्च प्राथमिकता और इमर्जेंसी
थी.
लेकिन बात तो इतने पर ही खत्म नहीं होती. नगर निगम से
सूचना मांगने वाले आरटीआई कार्यकर्ता अमर सिंह धुंता ने उत्तराखंड जल संस्थान, देहरादून से भी मार्च 2020 में खरीदे गए सोडियम
हाइपोक्लोराइड की प्रतिशत सहित सूचना मांगी.
जल संस्थान से सूचना अधिकार में प्राप्त दस्तावेज़ बताते
हैं कि 12.5 से 15 प्रतिशत वाला सोडियम हाइपोक्लोराइड, जल संस्थान द्वारा 28
रुपये 50 पैसे प्रति लीटर की दर से खरीदा. गौरतलब है कि अधिक प्रतिशत वाला यह सोडियम
हाइपोक्लोराइड, उत्तराखंड जल संस्थान ने सोनीपत(हरियाणा) की कंपनी
से खरीदा.
आरटीआई एक्टिविस्ट अमर सिंह धुंता ने स्वयं बाजार से सोडियम
हाइपोक्लोराइड के कोटेशन लिए तो 1 प्रतिशत वाले की कीमत 12 रुपये 50 पैसा प्रति लीटर
और 10 प्रतिशत वाले की कीमत 22 रुपये 50 पैसे प्रति लीटर का कोटेशन उन्हें प्राप्त
हुआ.
जल संस्थान की खरीद और खुले बाजार की कोटेशन की दरों से
साफ है कि नगर निगम, देहरादून ने बाजार दर से कई गुना मंहगी
दरों पर सेनीटाईजेशन के लिए प्रयोग होने वाला सोडियम हाइपोक्लोराइड खरीदा. साथ ही जितनी बड़ी मात्रा में
यह खरीदा गया,उतनी बड़ी मात्रा यदि प्रयोग हो जाती तो पूरा देहरादून
सेनीटाइजर में नहाया हुआ दिखता क्यूंकि गणित यह है कि एक
प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइड का मतलब है कि छिड़काव में यदि एक लीटर सोडियम हाइपोक्लोराइड प्रयोग हो रहा है तो उसमें एक लीटर पानी मिलाया
जाएगा. हजारों लीटर हाइपोक्लोराइड और उतने ही पानी के छिड़काव की ऐसी परिस्थिति में
एक भला तो यह होता कि स्मार्ट सिटी के गड्ढे भी सेनीटाइजर
से भरे होते !
इस प्रकरण में अमर सिंह धुंता, अब इतनी बड़ी मात्रा में बाजार भाव से लगभग पाँच गुना मंहगी दरों पर खरीदे
गए सेनीटाइजर के भंडारण और ढुलान की सूचना मांग रहे हैं तो नगर निगम की हालत साँप-छछूंदर
हो रखी है. वे धुंता जी से कह रहे हैं कि या तो आप, नगर निगम
आ कर सूचना ले लो या फिर हम आपके घर आ कर सूचना देते हैं. लेकिन सूचना डाक से भेजने
को वे तैयार नहीं हैं !
बहरहाल जब मुख्यमंत्री जी ने नगर निगम का औचक निरीक्षण
किया तो न उन्हें किसी ने बताया होगा कि आपदा को अवसर बनाते हुए पाँच गुना मंहगी दरों
पर सेनिटाइजर खरीदे गया, न उन्हें खुद पता चला होगा ! ऐसी गड़बड़
चीजें देखने थोड़े वे नगर निगम गए थे ! वे तो निर्देश देने गए थे कि निगम में लोगों
की समस्याओं का त्वरित समाधान हो,उनके बैठने की व्यवस्था की जाये
और काउंटर पर टाइमिंग चस्पा की जाये ! बताइये कितने कामकाजी मुख्यमंत्री हैं, तीन बातें कहने के लिए सीधा औचक निरीक्षण करने पहुँच गए, नगर निगम और यह भी कह दिया कि ऐसा औचक निरीक्षण वे करते रहेंगे !
लेकिन नगर निगम के इस औचक निरीक्षण का वीडियो जो जारी किया गया,वह बड़ा जबरदस्त था.
उसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि वह, किसी मुख्यमंत्री के निरीक्षण का वीडियो न हो कर, फिल्मी
एक्शन हीरो का एक्शन शूट हो ! वीडियो देख कर प्रदेश के वीडियो मोर्चे के अव्वल अफसर
दीपक रावत का बरबस ही ध्यान आ गया कि मुख्यमंत्री ने रावत साहब की टक्कर का वीडियो
बना डाला.
रावत साहब के जिक्र से ध्यान आया कि जिस ट्रान्सफर लिस्ट
में रावत साहब पुनः मेलाधिकारी कुम्भ के पद पर इन्हीं मुख्यमंत्री द्वारा आरूढ़ किए
गए थे, उसी लिस्ट में विनय शंकर पांडेय,हरिद्वार के जिलाधिकारी
बनाए गए थे. पांडेय साहब का जिक्र करना यहां इसलिए समीचीन है क्यूंकि ऊपर जिस सेनिटाइजर
खरीद की दास्तान है, उस खरीद के वक्त पांडेय साहब ही देहरादून
नगर निगम के नगर आयुक्त थे. अखबारों में सेनिटाइजर खरीद
के इस गड़बड़झाले की खबर छपी तो बाजार दर से पाँच गुना मंहगा सेनिटाइजर खरीदने को सही
ठहराने वाला बयान पांडेय साहब का ही छपा. यह अलग बात है कि खबर और बयान छापने वाला
पत्रकार अगले ही दिन अपने अखबार में नगर निगम बीट गंवा बैठा.
तो ऐसे कारसाज़ अफसर को एक्शन वीडियो वाले मुख्यमंत्री
ने अपने हाथ से जारी जिलों की पहली ट्रान्सफर लिस्ट में हरिद्वार जैसे प्रमुख जिले
की कमान सौंप दी. उनके अनुभव और कार्यकुशलता (जिसकी एक बानगी ऊपर दी गयी है) का लाभ
नगर निगम में नहीं बल्कि एक पूरे जिले में धामी जी उठाना चाहते होंगे ! या यह भी हो
सकता है कि हम ही कुछ घालमेल करके देख रहे हों ! मुख्यमंत्री जी का औचक निरीक्षण अपनी
जगह, पाँच गुना सेनिटाइजर खरीद अपनी जगह और जिले की कुर्सी अपनी जगह हो, इनका कोई आपसी संबंध हो ही ना ! “.....है तो मुमकिन है” नारे वाले डबल इंजन
में कुछ भी मुमकिन है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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